Mahashivratri 2020: भगवान शिव सृष्टि के संहारकर्ता माने जाते हैं। इन्हें भोलेनाथ, महेश, रुद्र, नीलकंठ, गंगाधर आदि अनेकों नामों से जाना जाता है। अन्य देवों में शिव को भिन्न माना गया है और इसी तरह इनकी वेशभूषा भी सबसे अलग है। बाकी देवताओं की तरह न तो इनके सिर पर कोई मुकुट है न तन पर कोई खास तरह के आभूषण। ये संपूर्ण देह पर भस्म लगाए रहते हैं। इनकी जटाओं में चंद्र तो मस्तक पर तीसरी आंख है। तो वहीं गले में सर्प सुशोभित है। शिव की उपासना का पर्व महाशिवरात्रि (21 फरवरी 2020) आने वाला है।इस खास मौके पर जानिए आखिर शिव के इन प्रतीकों का क्या रहस्य है।

चंद्रमा: शिव को सोम नाम से भी जाना जाता है। जिसका अर्थ चन्द्र होता है। चंद्रमा मन का कारक है। शिव द्वारा इसे धारण करने का मतलब है मन पर नियंत्रण रहना।

त्रिशूल: शिव शंकर के एक हाथ में त्रिशूल है। ये एक ऐसा अस्त्र है जिसकी शक्ति के आगे कोई भी ठहर नहीं सकता। ये दैनिक, दैविक, भौतिक विनाश का सूचक भी है। इसमें 3 तरह की शक्तियां हैं सत, रज और तम।

जटा: शिव अंतरिक्ष के देवता माने जाते हैं। जिनका एक नाम व्योमकेश भी है अत: ये आकाश उनकी जटास्वरूप है। शिव की जटा वायुमंडल का प्रतीक हैं।

त्रिपुंड तिलक: शिव के मस्तक पर ये तिलक हमेशा लगा रहता है। तीन लंबी धारियों वाला ये तिलक त्रिलोक्य और त्रिगुण का प्रतीक माना जाता है। यह सतोगुण, रजोगुण और तपोगुण का प्रतीक भी है।

डमरू: भगवान शिव का प्रिय माना जाता है। जो नाद का प्रतीक है। शिवजी को संगीत का जनक माना जाता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि शिव शंकर से पहले किसी को नाचना गाना नहीं आता था। शिव दो तरह के नृत्य करते हैं जिसमें एक प्रकार नाद है दूसरा ध्वनि जो ब्रह्मांड में निरंतर जारी है। इसे ‘ॐ’ कहा जाता है।

गंगा: शिव की जटाओ में गंगा के समाहित होने के पीछे एक कहानी है। जिसके अनुसार जब गंगा मां को धरती पर लाने का प्रयास किया जा रहा था तब प्रश्न उठा कि गंगा के तीव्र वेग को धरती कैसे संभाल पायेगी। इसके धरती पर आने से भूचाल आ सकता है। तब भगवान शिव ने गंगा को अपनी जटाओं में समा लिया। जिसके पश्चात ही गंगा का धरती पर आना संभव हो पाया।

भस्म: भोलेनाथ शरीर पर भस्म लगाते हैं। बल्कि इन पूजा में भी भस्म का उपयोग जरूर किया जाता है। भस्म मोह और आकर्षण से मुक्ति का प्रतीक है।

सर्प: शिव के गले में सर्प लिपटा रहता है। इस नाग को पहनने की कहानी समुद्र मंथन से जुड़ी है जिसके अनुसार समुद्र मंथन से निकले विष को शिव ने अपने कंठ में रखा था। जो भी विकार की अग्नि होती है, उन्हें दूर करने के लिए शिव ने नागों की माला पहनी।

तीसरी आंख: माना जाता है कि शिव की ये आंख प्रलय लाती है। शिव का ये तीसरा नेत्र सामान्य परिस्थितियों में भी विवेक के रूप में जाग्रत रहता है। इसे ज्ञान और सर्व भूत का प्रतीक कहा जाता है।

रुद्राक्ष: ऐसी मान्यता है कि इसकी उत्पत्ति शिव के आंसुओं से हुई थी। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है और रक्त प्रवाह भी संतुलित होता है।

बाघ की खाल: शिव अपनी देह पर हस्ति (हाथी) चर्म और व्याघ्र (शेर) चर्म धारण करते हैं। हस्ती अभिमान तो व्याघ्र हिंसा का प्रतीक है। अत: शिवजी ने अहंकार और हिंसा दोनों को दबा रखा है।