महाशिवरात्रि की पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त रात्रि का माना गया है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव का जन्म फाल्गुन कृष्ण पक्ष की मध्यरात्रि में हुआ था। इसलिए महाशिवरात्रि की पूजा रात्रि के चारों पहर में की जा सकती है। इस दिन कई भक्त पूरी रात जागकर शिवजी की अराधना करते हैं। मान्यता ये भी है कि इसी दिन भगवान शिव का माता पार्वती के साथ विवाह संपन्न हुआ था। जानिए महाशिवरात्रि पूजा के सबसे शुभ मुहूर्त…
महाशिवरात्रि पूजन का सबसे शुभ मुहूर्त: महाशिवरात्रि पर शिवजी की पूजा रात्रि के चारों प्रहर में की जा सकती है। लेकिन इसके लिए सबसे शुभ मुहूर्त निशिता काल माना गया है। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव अपने लिंग रूप में धरती पर इसी समय में अवतरित हुए थे। इसलिए इस काल में महाशिवरात्रि की पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है। अब देखिए महाशिवरात्रि पूजा के सभी मुहूर्त…
पूजा का सबसे शुभ मुहूर्त (निशिता काल पूजा समय): 12:09 ए एम से 01:00 ए एम, फरवरी 22 तक
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय – 06:15 पी एम से 09:25 पी एम
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय – 09:25 पी एम से 12:34 ए एम, फरवरी 22
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय – 12:34 ए एम से 03:44 ए एम, फरवरी 22
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय – 03:44 ए एम से 06:54 ए एम, फरवरी 22
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 21, 2020 को 05:20 पी एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त – फरवरी 22, 2020 को 07:02 पी एम बजे
महाशिवरात्रि पूजा विधि: शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें इसके बाद भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान कराएं। शिवजी को तीन बेलपत्र, भांग धतूरा, जायफल, फल, मिठाई, मीठा पान, इत्र अर्पित करें। उन्हें चंदन का तिलक लगाएं। केसर युक्त खीर का भोग लगाकर उसे प्रसाद स्वरूप सभी में बांट दें। फिर मन ही मन पूरे दिन भगवान शिव की अराधना करते रहें। महाशिवरात्रि के दिन पूरी रात दीपक जलाकर रखें।
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की सच्चे मन से अराधना करें। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक गंगाजल में काले तिल मिलाकर करें तथा महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी अवश्य करें। ज्योतिष अनुसार महाशिवरात्रि पर इस तरह से शिव का अभिषेक करने पर आपको अच्छे परिणाम प्राप्त होने शुरू हो जाएंगे तथा आपके जीवन में सुख शांति और समृद्धि भी बनी रहेगी।
मवाना शुगर मिल के राधा-कृष्णा मंदिर के पुजारी प्रेम वल्लभ उत्प्रेती ने बताया कि इस बार महाशिवरात्रि पर 117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ योग बन रहा है। इस साल महाविशरात्रि पर शनि अपनी स्वयं की राशि मकर में और शुक्र ग्रह अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा। यह एक दुर्लभ योग है, जब ये दोनों बड़े ग्रह महाशिवरात्रि पर इस स्थिति में रहेंगे। बताया कि इससे पहले ऐसी स्थिति वर्ष 1903 में बनी थी। इस योग में भगवान शिव की आराधना करने पर शनि, गुरु, शुक्र के दोषों से मुक्ति मिल सकती है।
शिवरात्रि पर भगवान शिव की आराधना करने से मन को शांति मिलती है। साथ ही घर में खुशियों का वास होता है। ऐसे में भगवान शिव का पार्वती समेत पूरे विधि-विधान से पूजा करें।
ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत कहते हैं कि वैसे तो महाशिवरात्रि एक सिद्ध दिन और महापर्व होता ही है पर इस बार महाशिवरात्रि पर पूरे दिन ‘सर्वार्थ सिद्धि' योग भी उपस्थित रहेगा और सर्वार्थ सिद्धि योग को सभी कार्यों की सफलता के लिए बहुत शुभ माना गया है। इससे इस बार महाशिवरात्रि के पर्व का महत्त्व कई गुना बढ़ गया है इसलिए महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के निमित्त की गयी पूजा अर्चना, दान, जप तप आदि कई गुना परिणाम देने वाले होंगे साथ ही इस दिन अपने सभी नवीन कार्यों का आरम्भ या सभी महत्वपूर्ण कार्य भी किये जा सकेंगे। कहा कि महादेव बहुत जल्द प्रसन्न होने वाले भगवान हैं।
महा शिवरात्रि पर शुक्रवार शाम 6:18 बजे प्रथम प्रहर की पूजा शुरू होगी, द्वितीय प्रहर की पूजा रात्रि 9:29 बजे से, तृतीय प्रहर की पूजा मध्यरात्रि 12:40 बजे से, चतुर्थ प्रहर की पूजा प्रातः 3:53 बजे से शनिवार 22 फरवरी 2020 के सूर्य उदयकाल 7:03 बजे तक रहेगा। इस दौरान भगवान शिव की आराधना से विशेष लाभ मिलेगा।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्रा के अनुसार शिवपुराण की विद्येश्वर संहिता में बताया गया है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिवजी के आंसुओं से हुई है। वहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण के अनुसार रूद्राक्ष में पाए जाने वाले गुण मनुष्य के नर्वस सिस्टम को दुरुस्त रखते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जाप करना चाहिए.
शिवजी के नृत्य के दो रूप हैं। एक है लास्य, जिसे नृत्य का कोमल रूप कहा जाता है। दूसरा तांडव है, जो विनाश को दर्शाता है। भगवान शिव के नृत्य की अवस्थाएं सृजन और विनाश, दोनों को समझाती हैं। शिव का तांडव नृत्य ब्रह्मांड में हो रहे मूल कणों के उतार-चढ़ाव की क्रियाओं का प्रतीक है।
मवाना शुगर मिल के राधा-कृष्णा मंदिर के पुजारी प्रेम वल्लभ उत्प्रेती ने बताया कि इस बार महाशिवरात्रि पर 117 साल बाद शनि और शुक्र का दुर्लभ योग बन रहा है। इस साल महाविशरात्रि पर शनि अपनी स्वयं की राशि मकर में और शुक्र ग्रह अपनी उच्च राशि मीन में रहेगा। यह एक दुर्लभ योग है, जब ये दोनों बड़े ग्रह महाशिवरात्रि पर इस स्थिति में रहेंगे। बताया कि इससे पहले ऐसी स्थिति वर्ष 1903 में बनी थी। इस योग में भगवान शिव की आराधना करने पर शनि, गुरु, शुक्र के दोषों से मुक्ति मिल सकती है।
शिव से बड़ा कोई योगी नहीं हुआ। किसी परिस्थिति से खुद को दूर रखते हुए उस पर पकड़ रखना आसान नहीं होता है। महादेव एक बार ध्यान में बैठ जाएं, तो दुनिया इधर से उधर हो जाए लेकिन उनका ध्यान कोई भंग नहीं कर सकता है। शिव का यह गुण हमेंं जीवन की चीजों पर नियंत्रण रखना सिखाता है।
- शिव रात्रि के दिन सबसे पहले सुबह स्नान करके भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान करवाएं।
- उसके बाद भगवान शंकर को केसर के 8 लोटे जल चढ़ाएं।
- इस दिन पूरी रात दीपक जलाकर रखें।
- भगवान शंकर को चंदन का तिलक लगाएं।
- तीन बेलपत्र, भांग धतूर, तुलसी, जायफल, कमल गट्टे, फल, मिष्ठान, मीठा पान, इत्र व दक्षिणा चढ़ाएं। सबसे बाद में केसर युक्त खीर का भोग लगा कर प्रसाद बांटें।
मंदिर के शिवलिंग पर रुद्राभिषेक करना अच्छा माना गया है। घर में भी शिवलिंग का रुद्राभिषेक किया जा सकता है। सभी प्रकार के दुखों से मुक्ति पाने के लिए शिवलिंग का जल से रुद्राभिषेक करना चाहिए। भगवान के शिव स्वरूप का ध्यान करें। तांबे के बर्तन में शुद्ध जल भरकर इस पर कुम्कुम का तिलक लगाएं। ॐ इंद्राय नमः का उच्चारण करते हुए अभिषेक वाले पात्र पर मौली बांधें। शिव के पंचाक्षरी मंत्र ओम नमः शिवाय का जाप करते हुए शिवलिंग पर पुष्प अर्पित करें। इसके बाद शिवलिंग पर जल की पतली धार से रुद्राभिषेक करें। रुद्राभिषेक के दौरान शिव के दूसरे मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं या रुद्राष्टाध्यायी के पांचवे अध्याय का भी पाठ कर सकते हैं। इसके अलावा रुद्राष्टाध्यायी के एकादशिनि रुद्री का ग्यारह आवृति पाठ किया जा सकता है।
महाशिवरात्रि पर्व इस बार 21 फरवरी को मनाया जा रहा है। वैसे तो शिवरात्रि हर महीने की चतुर्दशी तिथि को पड़ती है, लेकिन महाशिवरात्रि साल में एक बार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी में ही आती है। इस दिन शिव के भक्त व्रत रखते हैं और श्रद्धापूर्वक शिव की पूजा-अर्चना करते हैं। इसके साथ ही इस दिन श्रद्धालु जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करते हैं। शिव की भक्ति के लिए भक्त भजन भी सुनते हैं। गायक कैलाश खेर ने भगवान शिव पर कई गाने गाये हैं। महाशिवरात्रि की उत्सव में भगवान शिव के ये गाने भक्तिमय माहौल बना सकते हैं।
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
आज महाशिवरात्रि पर सर्वार्थ सिद्धि योग भी है। बुध और सूर्य कुंभ राशि में एक साथ हैं। इस वजह से बुध-आदित्य योग बनेगा। इसके अलावा इस दिन सभी ग्रह राहु-केतु के मध्य रहेंगे। इस वजह से सर्प योग भी बन रहा है। शिवरात्रि पर राहु मिथुन राशि में और केतु धनु राशि में रहेगा। शेष सभी ग्रह राहु-केतु के बीच रहेंगे। सूर्य और बुध कुंभ राशि में, शनि और चंद्र मकर राशि में, मंगल और गुरु धनु राशि में, शुक्र मीन राशि में रहेगा।
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अगर शाब्दिक अर्थ की बात की जाए तो महाशिवरात्रि का मतलब है 'शिव की महान रात'. शिवरात्रि के इस पर्व के साथ कई कहानियां भी जुड़ी हुई हैं, कुछ लोगों का कहना है कि इस दिन भगवान शिव ने देवता और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन प्रकरण के दौरान निकले विष को पी लिया था, जबकि कुछ का कहना है कि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. वहीं कुछ प्राचीन धर्म ग्रंथ यह कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव ने ताडंव का प्रदर्शन किया था. इसलिए उनके भक्त उन्हें याद करते हैं, माना जाता है कि भगवान बुराई का नाश करते हैं और सच्चे भक्तों की पुकार सुनते हैं.
एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। पूरी कथा पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
वैसे तो सच्ची भावना से भगवान शिव की पूजा करने से ही ईश्वर प्रसन्न हो जाते हैं और अपनी कृपा बनाये रखते हैं लेकिन कुछ चीजों का उपयोग महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की पूजन के लिए अत्यंत फलदायी होता है जैसे- बेल पत्र, शमी की पत्तियां, ढूध, दही, भांग, शहद, गंगा जल , फूल, धतूरा, धूप, दीप, कपूर, चंदन आदि। सबसे पहले महाशिव रात्रि को स्नान कर के घर या बाहर जहां भी जाना आपके लिए सुविधाजनक हो, शिव जी को जल ॐ नमः शिवाय बोलते हुए चढ़ाएं। उसके बाद शिव जी को गंगा जल से स्नान करवाये। भगवान को बेल पत्र, शमी पत्र, पंचामृत, दूध, दही , फूल, फल चढ़ाए। शिव जी को फल या मिष्ठान का भोग लगाएं। शिव जी के सामने दीप जलाएं, कपूर जलाएं। पूजन के बाद शिव जी को प्रणाम कर सभी को प्रसाद बाँटना चाहिए तथा रात्रि को जागरण करना चाहिए।
महाशिवरात्रि पर्व की काशी विश्वनाथ मंदिर में रौनक
जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।
ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥
एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।
हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥
दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥
अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।
चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।
सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।
प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥
काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।
नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥
त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।
कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥
ऐसा माना जाता है कि इसी दिन शिव शंकर जी पहली बार लिंग रूप में अवतरित हुए थे। शिव का ये जन्म आधी रात को हुआ था जिस कारण महाशिवरात्रि के दिन रात्रि के चारों प्रहर में पूजा की जाती है। इस दिन रात्रि भर जागकर शिव की भक्ति की जाती है।