महाशिवरात्रि का पर्व शिव भक्तों के लिए बेहद ही खास होता है। क्योंकि इस दिन को शिव भगवान के जन्म के रूप में मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि एक बार भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी के बीच श्रेष्ठता को लेकर विवाद चल रहा था। तब उनके विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव लिंग रूप में प्रकट हुए। एक दूसरी मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इसलिए भी ये दिन खास है।
साल में आती है 12 शिवरात्रि: एक साल में कुल 12 शिवरात्रि आती हैं यानी कि हर महीने में एक शिवरात्रि। साल में आने वाली सभी शिवरात्रियों में से फाल्गुन मास में आने वाली महाशिवरात्रि का सबसे अधिक महत्व माना जाता है। इसके बाद सावन में आने वाली बड़ी शिवरात्रि शिव भक्तों के लिए काफी महत्वपूर्ण होती है। शिवरात्रि व्रत हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को रखा जाता है। माना जाता है कि शिवरात्रि के दिन मध्य रात्रि में भगवान शिव एक लिंग के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए शिवरात्रि की पूजा रात को करने का विशेष महत्व होता है।
महाशिवरात्रि का इतिहास: शिव पुराण की कथा के अनुसार एक बार ब्रह्माजी व विष्णुजी में विवाद छिड़ गया कि दोनों में श्रेष्ठ कौन है। ब्रह्माजी सृष्टि के रचयिता होने के कारण श्रेष्ठ होने का दावा कर रहे थे और भगवान विष्णु पूरी सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में स्वयं को श्रेष्ठ कह रहे थे। तभी वहां एक विराट लिंग प्रकट हुआ। दोनों देवताओं ने सहमति से यह निश्चय किया गया कि जो इस लिंग के छोर का पहले पता लगाएगा उसे ही श्रेष्ठ माना जाएगा।
अत: दोनों विपरीत दिशा में शिवलिंग की छोर ढूढंने निकले। छोर न मिलने के कारण विष्णुजी लौट आए। ब्रह्मा जी भी सफल नहीं हुए परंतु उन्होंने आकर विष्णुजी से कहा कि वे छोर तक पहुँच गए थे। उन्होंने केतकी के फूल को इस बात का साक्षी बताया। ब्रह्मा जी के असत्य कहने पर स्वयं शिव वहाँ प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्माजी की एक सिर काट दिया, और केतकी के फूल को श्राप दिया कि शिव जी की पूजा में कभी भी केतकी के फूलों का इस्तेमाल नहीं होगा।
चूंकि यह फाल्गुन के महीने का 14 वा दिन था जिस दिन शिव ने पहली बार खुद को लिंग रूप में प्रकट किया था। इस दिन को बहुत ही शुभ और विशेष माना जाता है और महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
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वैसे तो सच्ची भावना से भगवान शिव की पूजा करने से ही ईश्वर प्रसन्न हो जाते हैं और अपनी कृपा बनाये रखते हैं लेकिन कुछ चीजों का उपयोग महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की पूजन के लिए अत्यंत फलदायी होता है जैसे- बेल पत्र, शमी की पत्तियां, ढूध, दही, भांग, शहद, गंगा जल , फूल, धतूरा, धूप, दीप, कपूर, चंदन आदि। सबसे पहले महाशिव रात्रि को स्नान कर के घर या बाहर जहां भी जाना आपके लिए सुविधाजनक हो, शिव जी को जल ॐ नमः शिवाय बोलते हुए चढ़ाएं। उसके बाद शिव जी को गंगा जल से स्नान करवाये। भगवान को बेल पत्र, शमी पत्र, पंचामृत, दूध, दही , फूल, फल चढ़ाए।
ऐसा माना जाता है कि इसी दिन शिव शंकर जी पहली बार लिंग रूप में अवतरित हुए थे। शिव का ये जन्म आधी रात को हुआ था जिस कारण महाशिवरात्रि के दिन रात्रि के चारों प्रहर में पूजा की जाती है। इस दिन रात्रि भर जागकर शिव की भक्ति की जाती है।
शिवजी के नृत्य के दो रूप हैं। एक है लास्य, जिसे नृत्य का कोमल रूप कहा जाता है। दूसरा तांडव है, जो विनाश को दर्शाता है। भगवान शिव के नृत्य की अवस्थाएं सृजन और विनाश, दोनों को समझाती हैं। शिव का तांडव नृत्य ब्रह्मांड में हो रहे मूल कणों के उतार-चढ़ाव की क्रियाओं का प्रतीक है।
अगर शाब्दिक अर्थ की बात की जाए तो महाशिवरात्रि का मतलब है 'शिव की महान रात'. शिवरात्रि के इस पर्व के साथ कई कहानियां भी जुड़ी हुई हैं, कुछ लोगों का कहना है कि इस दिन भगवान शिव ने देवता और असुरों के बीच हुए समुद्र मंथन प्रकरण के दौरान निकले विष को पी लिया था, जबकि कुछ का कहना है कि इस दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था. वहीं कुछ प्राचीन धर्म ग्रंथ यह कहते हैं कि इस दिन भगवान शिव ने ताडंव का प्रदर्शन किया था. इसलिए उनके भक्त उन्हें याद करते हैं, माना जाता है कि भगवान बुराई का नाश करते हैं और सच्चे भक्तों की पुकार सुनते हैं.
वैसे तो सच्ची भावना से भगवान शिव की पूजा करने से ही ईश्वर प्रसन्न हो जाते हैं और अपनी कृपा बनाये रखते हैं लेकिन कुछ चीजों का उपयोग महाशिवरात्रि के दिन शिवजी की पूजन के लिए अत्यंत फलदायी होता है जैसे- बेल पत्र, शमी की पत्तियां, ढूध, दही, भांग, शहद, गंगा जल , फूल, धतूरा, धूप, दीप, कपूर, चंदन आदि। सबसे पहले महाशिव रात्रि को स्नान कर के घर या बाहर जहां भी जाना आपके लिए सुविधाजनक हो, शिव जी को जल ॐ नमः शिवाय बोलते हुए चढ़ाएं। उसके बाद शिव जी को गंगा जल से स्नान करवाये। भगवान को बेल पत्र, शमी पत्र, पंचामृत, दूध, दही , फूल, फल चढ़ाए। शिव जी को फल या मिष्ठान का भोग लगाएं। शिव जी के सामने दीप जलाएं, कपूर जलाएं। पूजन के बाद शिव जी को प्रणाम कर सभी को प्रसाद बाँटना चाहिए तथा रात्रि को जागरण करना चाहिए।
बिल्वपत्र से गर्मी नियंत्रित होती है। इसमें टैनिन, लोह, कैल्शियम, पोटेशियम और मैग्नीशियम जैसे रसायन होते हैं। इससे बिल्वपत्र की तासीर बहुत शीतल होती है। तपिश से बचने के लिए इसका उपयोग फायदेमंद होता है। बिल्वपत्र का औषधीय उपयोग करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। पेट के कीड़े खत्म होते हैं और शरीर की गर्मी नियंत्रित होती है।
नमो बिल्ल्मिने च कवचिने च नमो वर्म्मिणे च वरूथिने च
नमः श्रुताय च श्रुतसेनाय च नमो दुन्दुब्भ्याय चा हनन्न्याय च नमो घृश्णवे॥
दर्शनं बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम् पापनाशनम्। अघोर पाप संहारं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुधम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अखण्डै बिल्वपत्रैश्च पूजये शिव शंकरम्। कोटिकन्या महादानं बिल्व पत्रं शिवार्पणम्॥
गृहाण बिल्व पत्राणि सपुश्पाणि महेश्वर। सुगन्धीनि भवानीश शिवत्वंकुसुम प्रिय।
धर्म विज्ञान शोध संस्थान के वैभव जोशी के अनुसार दूध में फैट, प्रोटीन, लैक्टिक एसिड, दही में विटामिन्स, कैल्शियम, फॉस्फोरस और शहद में फ्रक्टोस, ग्लूकोज जैसे डाईसेक्राइड, ट्राईसेक्राइड, प्रोटीन, एंजाइम्स होते हैं। वहीं, दूध, दही और शहद शिवलिंग पर कवच बनाए रखते हैं। इसके साथ ही शिव मंत्रों से निकलने वाली ध्वनि सकारात्मक ऊर्जा को ब्रह्मांड में बढ़ाने का काम करती है। धर्म और विज्ञान पर अध्ययन करने वाली इस संस्था ने शिवलिंग पर चढ़ाए जाने वाली चीजों की प्रकृति और उनमें पाए जाने वाले तत्वों की वैज्ञानिक व्याख्या के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला है।
ज्योतिषाचार्य विभोर इंदुसुत कहते हैं कि वैसे तो महाशिवरात्रि एक सिद्ध दिन और महापर्व होता ही है पर इस बार महाशिवरात्रि पर पूरे दिन ‘सर्वार्थ सिद्धि' योग भी उपस्थित रहेगा और सर्वार्थ सिद्धि योग को सभी कार्यों की सफलता के लिए बहुत शुभ माना गया है। इससे इस बार महाशिवरात्रि के पर्व का महत्त्व कई गुना बढ़ गया है इसलिए महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के निमित्त की गयी पूजा अर्चना, दान, जप तप आदि कई गुना परिणाम देने वाले होंगे साथ ही इस दिन अपने सभी नवीन कार्यों का आरम्भ या सभी महत्वपूर्ण कार्य भी किये जा सकेंगे। कहा कि महादेव बहुत जल्द प्रसन्न होने वाले भगवान हैं।
समुद्रमंथन से जब विष बाहर आया, तो सभी ने कदम पीछे खींच लिए थे क्योंकि विष कोई नहीं पी सकता था। ऐसे में महादेव ने स्वयं विष (हलाहल) पिया और उन्हें नीलकंठ नाम दिया गया। इस घटना से बहुत बड़ा सबक मिलता है कि हम भी जीवन में आने वाली नकरात्मक चीजों को अपने अंदर रखकर या इससे गुजरते हुए भी जीवन की सकरात्मकता बनाए रख सकते हैं।
इस बार महाशिवरात्रि पर 117 साल बाद दुर्लभ योग बन रहा है। शुक्रवार को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाएगा। उस दिन शनि अपनी राशि मकर व शुक्र उच्च राशि मीन में रहेंगे। भगवान शिव की अराधना से गुरु, शुक्र और शनि के दोषों से मुक्ति मिलेगी। शुक्रवार को ही बुध व सूर्य एक साथ कुंभ राशि में होंगे। इससे बुधादित्य योग बन रहा है। बीते 18 फरवरी से पांच मार्च तक कालसर्प योग है। यह समय कालसर्प योग से निवारण के लिए महत्वपूर्ण है। मीनाबाजार शिव मंदिर के पुजारी आचार्य सुजीत कुमार द्विवेदी ने बताया कि इस दिन रूद्राभिषेक करने से पातन कर्म भस्म हो जाते हैं। साधक में शिवत्व का उदय होता है। इससे मनोकामनाएं पूरी होती हैं। एक मात्र सदाशिव रूद्र के पूजन से सभी देवी-देवताओं की पूजा हो जाती है।
शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए इस महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की सच्चे मन से अराधना करें। इस दिन भगवान शिव का अभिषेक गंगाजल में काले तिल मिलाकर करें तथा महामृत्युंजय मंत्र का जाप भी अवश्य करें। ज्योतिष अनुसार महाशिवरात्रि पर इस तरह से शिव का अभिषेक करने पर आपको अच्छे परिणाम प्राप्त होने शुरू हो जाएंगे तथा आपके जीवन में सुख शांति और समृद्धि भी बनी रहेगी।
सत्य, सनातन, सुन्दर शिव! सबके स्वामी।
अविकारी, अविनाशी, अज, अंतर्यामी।। हर-हर...
आदि, अनंत, अनामय, अकल कलाधारी।
अमल, अरूप, अगोचर, अविचल, अघहारी।। हर-हर...
ब्रह्मा, विष्णु, महेश्वर, तुम त्रिमूर्तिधारी।
कर्ता, भर्ता, धर्ता तुम ही संहारी।। हर-हर...
रक्षक, भक्षक, प्रेरक, प्रिय औघरदानी।
साक्षी, परम अकर्ता, कर्ता, अभिमानी।। हर-हर...
मणिमय भवन निवासी, अतिभोगी, रागी।
सदा श्मशान विहारी, योगी वैरागी।। हर-हर...
छाल कपाल, गरल गल, मुण्डमाल, व्याली।
चिताभस्म तन, त्रिनयन, अयन महाकाली।। हर-हर...
प्रेत पिशाच सुसेवित, पीत जटाधारी।
विवसन विकट रूपधर रुद्र प्रलयकारी।। हर-हर...
शुभ्र-सौम्य, सुरसरिधर, शशिधर, सुखकारी।
अतिकमनीय, शान्तिकर, शिवमुनि मनहारी।। हर-हर...
निर्गुण, सगुण, निरंजन, जगमय, नित्य प्रभो।
कालरूप केवल हर! कालातीत विभो।। हर-हर...
सत्, चित्, आनंद, रसमय, करुणामय धाता।
प्रेम सुधा निधि, प्रियतम, अखिल विश्व त्राता। हर-हर...
हम अतिदीन, दयामय! चरण शरण दीजै।
सब विधि निर्मल मति कर अपना कर लीजै। हर-हर...
एक बार पार्वती ने भगवान शिवशंकर से पूछा, ‘ऐसा कौन सा श्रेष्ठ तथा सरल व्रत-पूजन है, जिससे मृत्यु लोक के प्राणी आपकी कृपा सहज ही प्राप्त कर लेते हैं?’उत्तर में शिवजी ने पार्वती को ‘शिवरात्रि’ के व्रत का विधान बताकर यह कथा सुनाई- ‘एक गाँव में एक शिकारी रहता था। पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था। वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका। क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया। संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी। महाशिवरात्रि की पावन कथा
महा शिवरात्रि पर शुक्रवार शाम 6:18 बजे प्रथम प्रहर की पूजा शुरू होगी, द्वितीय प्रहर की पूजा रात्रि 9:29 बजे से, तृतीय प्रहर की पूजा मध्यरात्रि 12:40 बजे से, चतुर्थ प्रहर की पूजा प्रातः 3:53 बजे से शनिवार 22 फरवरी 2020 के सूर्य उदयकाल 7:03 बजे तक रहेगा। इस दौरान भगवान शिव की आराधना से विशेष लाभ मिलेगा।
शिव चालीसा एक लोकप्रिय प्रार्थना है जो 40 छन्दों से बनी है। बहुत से लोग प्रतिदिन इस चालीसा का पाठ करते हैं। अगर रोजाना इसका पाठ कर पाना संभव न हो तो महाशिवरात्रि पर तो इसे जरूर पढ़ना चाहिए। इसे पढ़ने से शिव की आपार कृपा प्राप्त होती है। आज देश भर में महाशिवरात्रि का उत्सव मनाया जा रहा है। मंदिरों में शिव भक्तों का जुटना शुरू हो गया है। लोग इस दिन अपने घरों में या फिर मंदिरों में जाकर शिव की विशेष पूजा अर्चना करते हैं। शिव को प्रसन्न करने का सबसे आसान तरीका है शिव चालीसा, जो इस प्रकार है…
इस दिन शिव मंदिर जाएं या घर के मंदिर में ही शिवलिंग पर जल चढ़ाएं. जल चढ़ाने के लिए सबसे पहले तांबे के एक लोटे में गंगाजल लें. अगर ज्यादा गंगाजल न हो तो सादे पानी में ही गंगाजल की कुछ बूंदें मिलाएं. अब लोटे में चावल और सफेद चंदन मिलाएं और भगवान शिव को अर्पित करें. जल चढ़ाने के बाद पूजा की चावल, बेलपत्र, सुगंधित पुष्प, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र चढ़ाएं.
शिवहरे शिवराम सखे प्रभो,त्रिविधताप-निवारण हे विभो।
अज जनेश्वर यादव पाहि मां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥१॥
कमल लोचन राम दयानिधे,हर गुरो गजरक्षक गोपते।
शिवतनो भव शङ्कर पाहिमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥२॥
स्वजनरञ्जन मङ्गलमन्दिर,भजति तं पुरुषं परं पदम्।
भवति तस्य सुखं परमाद्भुतं,शिवहरे विजयं कुरू मे वरम् ॥३॥
जय युधिष्ठिर-वल्लभ भूपते,जय जयार्जित-पुण्यपयोनिधे।
जय कृपामय कृष्ण नमोऽस्तुते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥४॥
भवविमोचन माधव मापते,सुकवि-मानस हंस शिवारते।
जनक जारत माधव रक्षमां,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥५॥
अवनि-मण्डल-मङ्गल मापते,जलद सुन्दर राम रमापते।
निगम-कीर्ति-गुणार्णव गोपते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥६॥
पतित-पावन-नाममयी लता,तव यशो विमलं परिगीयते।
तदपि माधव मां किमुपेक्षसे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥७॥
अमर तापर देव रमापते,विनयतस्तव नाम धनोपमम्।
मयि कथं करुणार्णव जायते,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥८॥
हनुमतः प्रिय चाप कर प्रभो,सुरसरिद्-धृतशेखर हे गुरो।
मम विभो किमु विस्मरणं कृतं,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥९॥
नर हरेति परम् जन सुन्दरं,पठति यः शिवरामकृतस्तवम्।
विशति राम-रमा चरणाम्बुजे,शिव हरे विजयं कुरू मे वरम् ॥१०॥
प्रातरूथाय यो भक्त्या पठदेकाग्रमानसः।
विजयो जायते तस्य विष्णु सान्निध्यमाप्नुयात् ॥११॥
इसके बाद भोले शंकर के शिवलिंग पर दूध, शहद से अभिषेक कराना चाहिए। अभिषेक करते समय ओम नम: शिवाय का जाप करना चाहिए। इस व्रत करें तो ध्यान रखें कि चावल, आटा और दाल का सेवन नहीं करना चाहिए। अगर निराहार व्रत नहीं रख सकते तो इस दिन फ्रूट्स, चाय, दूध ले सकते हैं। शाम को कूट्टू के आटे से बनी पूड़ी, सिंगाड़े का आटा ले सकते हैं। इसके अलावा आलू और लौकी का हलवा भी ले सकते हैं।
दिल्ली के गौरी शंकर मंदिर में कुछ यूं मनाई जा रही है महाशिवरात्रि...
महादेव तेरे बगैर, सब व्यर्थ है मेरा…
मैं हूं तेरा शब्द, और तू अर्थ है मेरा…
हर हर महादेव...
Happy Maha Shivaratri…
शिवरात्रि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर लें इसके बाद भगवान शंकर को पंचामृत से स्नान कराएं। शिवजी को तीन बेलपत्र, भांग धतूरा, जायफल, फल, मिठाई, मीठा पान, इत्र अर्पित करें। उन्हें चंदन का तिलक लगाएं। केसर युक्त खीर का भोग लगाकर उसे प्रसाद स्वरूप सभी में बांट दें। फिर मन ही मन पूरे दिन भगवान शिव की अराधना करते रहें। महाशिवरात्रि के दिन पूरी रात दीपक जलाकर रखें।
निशिता काल पूजा समय - 12:09 ए एम से 01:00 ए एम, फरवरी 22
अवधि - 00 घण्टे 51 मिनट्स
22वाँ फरवरी को, शिवरात्रि पारण समय - 06:54 ए एम से 03:25 पी एम
रात्रि प्रथम प्रहर पूजा समय - 06:15 पी एम से 09:25 पी एम
रात्रि द्वितीय प्रहर पूजा समय - 09:25 पी एम से 12:34 ए एम, फरवरी 22
रात्रि तृतीय प्रहर पूजा समय - 12:34 ए एम से 03:44 ए एम, फरवरी 22
रात्रि चतुर्थ प्रहर पूजा समय - 03:44 ए एम से 06:54 ए एम, फरवरी 22
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ - फरवरी 21, 2020 को 05:20 पी एम बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त - फरवरी 22, 2020 को 07:02 पी एम बजे
भगवान शिव की साधना-आराधना से जुड़ा प्रदोष व्रत प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी वाले दिन किया जाता है। मान्यता है कि भगवान शिव को प्रसन्न करने वाले सभी व्रतों में यह व्रत बहुत जल्दी ही उनकी कृपा और शुभ फल दिलाने वाला है। इसलिए प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए।
महाशिवारात्रि पर काशी में विश्वनाथ का दर्शन करने से सभी दुखों से मुक्ति मिलती है। शिवरात्रि पर वहां भक्तों का जत्था पहुंचता है। इस बार विश्वनाथ मंदिर की सुरक्षा के लिए ड्रोन से निगरानी की जा रही है।
शिव मंदिर में जाते समय मन में पवित्र भाव रखें। ऐसा नहीं करने पर पूजा का पुण्य नहीं मिलता है। मन में उत्साह जगता है। मंदिर और भक्तों के साथपास बहुत अधिक ऊर्जा रहती है।
शिवरात्रि पर भगवान का भजन गाएं और मंत्रों का जाप करें। इससे भगवान शिव प्रसन्न होते हैं और भक्त की कामना पूरी करते हैं। भगवान शिव की आराधना करते समय ध्यान लगाएं और ऊं नम: शिवाय का उच्चारण करते रहें।
महाशिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन की रात है. साथ ही इस रात में आध्यात्मिक शक्तियां जागृत होती हैं. शास्त्रों में इस दिन ज्योतिष उपाय करने से जीवन में सभी प्रकार के तनाव खत्म होते हैं और सकारात्मक प्रमाण दिखने लगते हैं. ऐसे में ज्योतिर्विद कमल नंदलाल से जानते हैं बाबा भोलेनाथ के दिन महाशिवरात्रि पर करने वाले उन उपायों के बारे में जिसे करने से गरीब व्यक्ति भी अमीर बन जाता है.
महाशिवरात्रि के दिन शिव पुराण का पाठ और महामृत्युंजय मंत्र या शिव के पंचाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय" का जाप करना चाहिए.
महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को, हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं, जो कि सारे सृजन का स्त्रोत है। एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं और दूसरी ओर वे सबसे अधिक करुणामयी भी हैं। वे बहुत ही उदार दाता हैं। यौगिक गाथाओं में वे, अनेक स्थानों पर महाकरुणामयी के रूप में सामने आते हैं। उनकी करुणा के रूप विलक्षण और अद्भुत रहे हैं। इस प्रकार महाशिवरात्रि 2019 कुछ ग्रहण करने के लिए भी एक विशेष रात्रि है। यह हमारी इच्छा तथा आशीर्वाद है कि आप इस रात में कम से कम एक क्षण के लिए उस असीम विस्तार का अनुभव करें, जिसे हम शिव कहते हैं। यह केवल एक नींद से जागते रहने की रात भर न रह जाए, यह आपके लिए जागरण की रात्रि होनी चाहिए, चेतना व जागरूकता से भरी एक रात!
भगवान शिव ने अपनी पूजा में अक्षत के प्रयोग को महत्वपूर्ण बताया है। शिवलिंग के ऊपर अटूट चावल जरूर चढाएं। अगर संभव हो तो पीले रंग के वस्त्र में अटूट चावल सवा मुट्ठी रखकर शिवजी का अभिषेक करने के बाद शिवलिंग के पास रख दें। इसके बाद महामृत्युंजय मंत्र अथवा ओम नमः शिवाय मंत्र का जितना अधिक संभव हो जप करें। इस विधि से शिवलिंग की पूजा गृहस्थों के लिए शुभ माना गया है इससे आर्थिक समस्या दूर होती है।
भगवान शिव की पूजा में त्रिपुंड का विशेष महत्व है। भगवान शिव की पूजा करने से पहले चंदन या विभूत तीन उंगलियों में लगाकर सिर के बायीं ओर से दायीं ओर की तरफ त्रिपुंड लगाएं। बिना त्रिपुंड लेपन किए शिव का अभिषेक करना बहुत फलदायी नहीं होता है। भगवान का अभिषेक करने के बाद उन्हें भी त्रिपुंड जरूर लगाएं। इससे आरोग्य और प्रसन्नता की प्राप्ति होती है।
शिवजी की पूजा में बेल के पत्तों का बड़ा ही महत्व है। बेल को साक्षात् शिव स्वरूप बताया गया है। महाशिवरात्रि व्रत की कथा में बताया गया है कि एक शिकारी वन्य जीवों के डर से बेल के वृक्ष पर रात पर बैठा रहा और नींद ना आए इसलिए बेल के पत्तों को तोड़कर नीचे फेंकता रहा। संयोगवश उस स्थान पर शिवलिंग था। रात भर बेल के पत्ते उस शिवलिंग पर गिराते रहने से शिकारी के सामने भगवान शिव प्रकट हो गए और व्यक्ति मोक्ष का अधिकारी बन गया। शिव पुराण में कहा गया है कि तीन पत्तों वाला शिवलिंग जो कट फटा ना हो उसे शिवलिंग पर चढ़ाने से व्यक्ति पाप मुक्त हो जाता है। वैसे तो एक बेलपत्र अर्पित करने से ही भोलेनाथ प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन संभव हो तो 11 या 51 बेलपत्र जरूर चढ़ाएं।
महाशिवरात्रि के व्रत से एक दिन पहले ही पूजन सामग्री एकत्रित कर लें, जो इस प्रकार है: शमी के पत्ते, सुगंधित पुष्प, बेल पत्र, धतूरा, भांग, बेर, आम्र मंजरी, जौ की बालें, तुलसी दल, गाय का कच्चा दूध, गन्ने का रस, दही, शुद्ध देसी घी, शहद, गंगा जल, पवित्र जल, कपूर, धूप, दीप, रूई, चंदन, पंच फल, पंच मेवा, पंच रस, इत्र, रोली, मौली, जनेऊ, पंच मिष्ठान, शिव व मां पार्वती की श्रृंगार की सामग्री, दक्षिणा, पूजा के बर्तन आदि.
21 फरवरी को ये शिवरात्रि शाम को 5 बजकर 20 मिनट से शुरु होकर शनिवार 22 फरवरी को शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगी. रात्रि की पूजा शाम को 6 बजकर 41 मिनट से शुरू होकर रात 12 बजकर 52 मिनट तक होगी. शिवरात्रि में जो रात का समय होता है उसमें चार पहर की पूजा होती है.
हल्दी: भगवान शिव की पूजा में हल्दी का प्रयोग भी नहीं किया जाता है। हल्दी का सौंदर्य प्रशाधन में भी एक स्थान है और शिवलिंग पुरुषत्व का प्रतीक है, इसलिए भोलेनाथ को हल्दी अर्पित नहीं की जाती।
कहा जाता है कि शिव आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। ये अपने भक्तों की बस भक्ति देखते हैं। महाशिवरात्रि पर भक्त इन्हें प्रसन्न करने के लिए कई तरह के उपाय करते हैं। इनकी विशेष पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन धार्मिक मान्यता अनुसार कुछ चीजें ऐसी हैं जिनका शिव की पूजा में कभी प्रयोग नहीं करना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि इन चीजों के उपयोग करने से शिव नाराज हो जाते हैं। जानिए वो कौन सी चीजे हैं