भगवान श्रीराम ने ब्राह्मण वध के प्रायश्चित के लिए उत्तराखंड के गंगा तट पर कठोर तप और साधना की थी। रावण, कुंभकरण और मेघनाथ का संहार करके लंका पर विजय पाने के बाद अयोध्या लौटे भगवान श्रीराम का भव्य समारोह में राजतिलक किया गया। भगवान राम ने कई वर्षों तक अयोध्या में राज किया। उनको एक दिन उनके गुप्तचरों ने सूचना दी कि ब्राह्मण वर्ग चाहता है कि वे ब्राह्मण वध का प्रायश्चित करें, क्योंकि उन्होंने रावण और कुंभकरण का वध करके ब्रह्महत्या का पाप किया है। इस पर भगवान श्रीराम ने ब्राह्मण वध की भावनाओं का सम्मान करते हुए राजपुरोहित गुरु वशिष्ठ से ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने का उपाय पूछा।
गुरु वशिष्ठ ने उन्हें सलाह दी कि ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए उन्हें हिमालय की देवभूमि में गंगा के पावन तट पर तपस्या करनी होगी। इस सलाह पर उनके साथ भगवान श्री राम अपने तीनों भाइयों भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण और अपने अनन्य भक्त हनुमान के साथ ऋषिकेश मुनिकीरेती में गंगा के पावन तट पर पहुंचे। भगवान श्रीराम ने गंगा तट पर स्थित तपोभूमि ऋषिकेश-मुनिकीरेती में ब्राह्मण वध का प्रायश्चित करने के लिए तप हेतु गंगा के पश्चिमी तट पर विभिन्न स्थानों का चयन किया।
सबसे पहले भरत ने ऋषिकेश में गंगा के तट पर तपस्या के लिए स्थान का चयन किया और तप-साधना शुरू की। आज उस स्थान पर भरत मंदिर स्थापित है। इस मंदिर के संचालक महन्त हर्षवर्धन शर्मा का कहना है कि यह मंदिर रामायण काल के समय स्थापित हुआ था। भरत त्याग और तपस्या के प्रतीक है। भरत के इस तप स्थल से 4 किलोमीटर दूर गंगा के पावन तट पर शत्रुघ्न ने मौन रहकर गंगा की रेती में बैठकर कठोर साधना की थी। इसलिए इस स्थान का नाम मुनिकीरेती पड़ा। गंगा के इस शांत सुरम्य तट पर शत्रुघ्न का मंदिर स्थित है। जहां पर आज भी नियमित रूप से गंगा जी की सुबह-शाम आरती होती है।
शत्रुघ्न के इस तप स्थान से 4 किलोमीटर दूर सौमित्रा-तीर्थ तप स्थल है, जिस स्थान पर भगवान श्रीराम के प्रिय अनुज लक्ष्मण ने गंगा तट पर कठोर तपस्या की थी। इसे आज लक्ष्मण झूला कहा जाता है। ब्रह्माण्ड के संचालक भगवान श्रीराम का तप स्थल है क्योंकि यहां ब्रह्माण्ड के कर्ता-धर्ता भगवान श्रीराम ने ब्राह्मण वध से मुक्ति पाने के लिए 14 वर्षों तक कठोर तप किया था। इसलिए इसका नाम श्रीराम तप स्थल पड़ा।
श्रीराम तप स्थल मंदिर के मुख्य पुजारी श्री महन्त दयाराम दास महाराज का कहना है कि जब भगवान श्रीराम ने तप करने के लिए इस स्थल का चयन किया और वे यहां तप साधना के लिए एकाग्र मन से बैठे तो गंगा के रौद्र रूप से उनकी साधना में विघ्न उत्पन्न हुआ, तो उन्होंने हनुमान से कहा कि हमें साधना के लिए किसी अन्य शांत स्थान पर जाना चाहिए। यह बात सुनकर गंगा प्रकट हुई और उन्होंने भगवान श्रीराम से कहा कि वे इसी स्थान पर साधना कर मेरा कल्याण करें और वे इस स्थान पर शांत रूप में बहेंगी।
बैरागी संप्रदाय के प्रवर्तक जगद्गगुरु रामानंदाचार्य ने बनारस से आकर 656 वर्ष पूर्व सम्वत 1421 में श्रीराम तप स्थल की खोज करके इस स्थान पर श्रीराम मंदिर की स्थापना की थी। यहां पर बैरागी संप्रदाय के आचार्य श्री रामानंदाचार्य की प्रतिमा स्थापित है। 187 वर्ष पूर्व सम्वत 1890 में बैरागी संप्रदाय के संत स्वामी रामसेवक दास महाराज और उनके शिष्य स्वामी फलाहारी बाबा राम बालकदास महाराज योगीदास ने इस आश्रम का जीर्णाद्धार किया।
अखिल भारतीय रामानंद संघ की देखरेख में इस आश्रम का संचालन मौजूदा महन्त दयाराम दास महाराज करते हैं। सिद्ध पीठ श्रीराम तप स्थल साधकों को अपनी ओर आकर्षित करता है।
भगवान श्री राम की इस तपस्थली मैं चैत्र नवरात्र का पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है और भगवान श्री राम के प्रवर्तक दिवस चैत्र शुक्ल नवमी के दिन विशेष उत्सव श्रीराम नवमी के रूप में मनाया जाता है।
