How To Overcome Depression: महाभारत की रचना महर्षि वेदव्यास ने और इसे लिखा भगवान गणेश ने था। जब कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध शुरू होने को था तो अर्जुन के विषाद को दूर करने के लिए श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश दिया था। कहा जाता है कि गीता में जीवन से संबंधित कई तरह की परेशानियों का हल मिल जाता है। आज के दौर में कोरोना महामारी के चलते लोग काफी ज्यादा परेशान हैं। जिस कारण डिप्रेशन यानी अवसाद की बीमारी भी बढ़ती जा रही है। तो ऐसे में गीता के ये कुछ उपदेश आपको तनाव मुक्त रहने में कारगर साबित हो सकते हैं।
सलाह और विचार-विमर्श तथा मार्गदर्शन भले ही सबसे लेते रहें, लेकिन निर्णय स्वयं की बुद्धि से लेना चाहिए। श्री कृष्ण ने अर्जुन को पूरा ज्ञान देने के बावजूद यह स्वतंत्रता दी थी कि वह स्वविवेक से निर्णय लें और कार्य करें। पराश्रित नहीं, स्वआश्रित होने का आह्वान कर व्यक्ति को स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर बनने का संदेश दिया है।
तप तीन प्रकार के बताए गए है- शरीर, वाणी और मन। तीनों का उपयोग लोकहित में करना चाहिए। वाणी मनुष्य की सबसे अच्छी मित्र है। इससे व्यक्ति सारे संसार को अपना मित्र बना सकता है या शत्रु बना सकता है। अत: बोली की महत्ता, शब्दों का प्रभाव और वाणी को नियंत्रित और मर्यादित रखें।
किसी भी संकल्प को पूरा करने के लिए मन का स्थिर और अचल होना आवश्यक है। उद्देश्य प्राप्ति के लिए हमें निरंतर प्रयासरत रहना चाहिए। मन को बार बार अन्य बिंदुओं से हटाकर अपने लक्ष्य पर केंद्रित करने की प्रक्रिया को दोहराते रहना चाहिए। इस प्रक्रिया का चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलता है। और कार्य तल्लीनता से संपन्न होता है। इसलिए लक्ष्य के प्रति रुचि जागरुक करना चाहिए।
आगत-विगत कि चिंता से मुक्त होकर कर्मपथ पर आगे बढ़ते जाना चाहिए। घटनाएं प्रकृति के घटनाक्रम की कड़ी हैं और वे समयानुसार घटती रहती हैं। अनावश्यक चिंताओं में उलझना जीवन के अमूल्य समय को नष्ट करना है। इसलिए तनाव रहित होकर अपना कर्म करते जाना चाहिए।
जीवन में प्रगति के लिए मन-मस्तिष्क के साथ साथ तन का स्वस्थ रहना भी जरूरी है। कोई भी कार्य शरीर के द्वारा किया जाता है। यदि शरीर अस्वस्थ है तो वह कभी भी कोई कार्य नहीं कर पाएगा। अत: शरीर साधना बेहद जरूरी है।
भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन। कर्म करने में तेरा अधिकार है। उसके फलों के विषय में मत सोच। इसलिए तू कर्मों के फल का हेतु मत हो और कर्म न करने के विषय में भी तू आग्रह न कर।
कोई भी मनुष्य क्षण भर भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सभी प्राणी प्रकृति के अधीन हैं और प्रकृति अपने अनुसार हर प्राणी से कर्म करवाती है और उसके परिणाम भी देती है।
