यह मंदिर माता के 51 शक्तिपीठों में से एक है। माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण की क्रीड़ा भूमि वृंदावन में मां भगवती के केश गिरे थे। आर्यशास्त्र, ब्रह्म वैवर्त पुराण एवं आद्या स्त्रोत में इस स्थान का उल्लेख किया गया है। ‘व्रजे कात्यायनी परा’ अर्थात वृंदावन में स्थित शक्तिपीठ में ब्रह्मशक्ति महामाया श्री माता कात्यायनी के नाम से प्रसिद्ध है। देवर्षि वेदव्यास ने भी श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के 22वें अध्याय में उल्लेख किया है।

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:।।
हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! पौराणिक कथाओं के अनुसार, देवी सती ने उनके पिता दक्षेस्वर द्वारा किए यज्ञ कुण्ड में अपने प्राण त्याग दिए थे। तब भगवान शंकर देवी सती के मृत शरीर को लेकर पूरे ब्रह्मांड का चक्कर लगा रहे थे। इसी दौरान भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 भागों में विभाजित कर दिया था, जिसमें से सती के केश (बाल) इस स्थान पर गिरे थे। यहां मौजूद मंदिर में माता के साथ-साथ भैरव की भी पूजा की जाती है। मंदिर में भैरव की पूजा भूतेश के रूप में की जाती है।

यहां हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्र के मौके पर देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु मां का आशीर्वाद पाने के लिए यहां आते हैं। किंवदंतियों के अनुसार राधारानी ने भी भगवान श्री कृष्ण को पाने के लिए इस मंदिर में पूजा-अर्चना की थी। श्रीमद्भागवत ग्रंथ के अनुसार कृष्ण को गोपियों ने पति रूप में पाने के लिए राधा सहित मां कात्यायनी देवी की पूजा की थी। तब से लेकर आज तक यहां आकार कुंवारी कन्याएं मां कात्यायनी से अपने इच्छित वर प्राप्ति के लिए मन्नतें मांगती हैं। मंदिर को लेकर लोगों की मान्यता है कि यहां मांगी गई हर मुराद जल्द पूरी होती है।

स्थानीय लोगों की मान्यता के अनुसार यहां भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुलदेवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी। उस प्रतिमा की पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण ने कंस का वध किया था। हर वर्ष नवरात्र के मौके पर यहां एक मेले का भी आयोजन किया जाता है। कात्यायनी पीठ मंदिर का पुनर्निर्माण साल 1923 में कामरूप मठ के स्वामी रामानंद तीर्थ महाराज से दीक्षित होकर कठोर साधना के लिए हिमालय की कंदराओं से वापस आकर स्वामी केशवानंद ने करवाया था।

मां कात्यायनी के साथ-साथ इस मंदिर में पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेश की मूर्तियां भी हैं। मंदिर के अंतर्गत गुरु मंदिर, शंकराचार्य मंदिर, शिव मंदिर तथा सरस्वती मंदिर भी दर्शनीय हैं। कात्यायनी पीठ स्थित औषधालय द्वारा विभिन्न असाध्य रोगियों का सफलतम उपचार तथा मंदिर में स्थित गौशाला में गायों की सेवा पूजा दर्शनीय है। इसके अतिरिक्त यज्ञशाला में वेदोक्तरीति से स्वाहाकार मंत्रों का श्रवण एवं विभिन्न उपासना पद्धतियों द्वारा पूजा-अर्चना को देखकर कोई व्यक्ति स्तम्भित होकर मां के समक्ष पहुंच जाता है।

नवरात्रि के दिनों में मथुरा की मां कंकाली की पूजा

नवरात्र के दिनों में कन्हैया की नगरी देवी नगरी बन जाती है। यहां के कई देवी मंदिरों में देर रात तक पूजा-अर्चना के कार्यक्रम चलते रहते हैं। इस शृंखला में यहां मौजूद बीएसए कालेज के बीच स्थित कंकाली टीला पर बना मां कंकाली देवी मंदिर अद्भुत है। भक्तों में मां कंकाली देवी की बहुत मान्यता है। मां को कृष्णा काली, कंकाली देवी और योगमाया के नाम से भी जाना जाता है।

नवरात्र के दिनों में हजारों श्रद्धालु मां कंकाली की पूजा करने के लिए यहां आते हैं। मान्यता है कि जो भक्त यहां अपनी मुराद लेकर आता है, उसकी मनोकामना मां जरूर पूरी करती हैं। माना जाता है कि कंकाली देवी का अवतार राक्षसों को मारने के लिए हुआ था। नौ दिन मां को नई पोशाक धारण कराकर विशेष शृंगार कराया जाता है।