Krishna Janmashtami 2019 Vrat Vidhi, Katha, Process: कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व हिंदू धर्म के लोगों द्वारा बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं अनुसार इस दिन जगत के पावनहार श्री हरि ने कृष्ण रूप में अपना आठवां अवतार लिया था। भाद्रपद माह के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी तिथि को इनका जन्म हुआ था। जिस कारण इस तिथि को जन्‍माष्‍टमी के रूप में आज भी लोग मनाते हैं। जन्माष्टमी के दिन लोग व्रत रखते हैं और कन्हैया के जन्‍म की खुशियां मनाई जाती हैं। भक्त मध्‍यरात्रि में कन्‍हैया का श्रृंगार करते हैं, उन्‍हें भोग लगाते हैं और पूजा-अर्चना करते हैं। इसके बाद श्री कृष्ण के जन्म की कथा सुनी जाती है।

जन्माष्टमी पूजा विधि (Janmashtami Puja Vidhi in Hindi):

जन्माष्टमी का व्रत रखने वाले जातकों को इस दिन प्रात: स्नान करके सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मा आदि को नमस्कार करना चाहिए और फिर पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें। इसके बाद इस मंत्र का जाप करते हुए ‘ममाखिलपापप्रशमनपूर्वकसर्वाभीष्टसिद्धये श्रीकृष्णजन्माष्टमीव्रतमहं करिष्ये’ व्रत करने का संकल्प लें। इस व्रत को आप चाहें तो फलाहारी यानी फल इत्यादि ग्रहण करते हुए चाहे तो निर्जला भी रखा जा सकता है। जन्माष्टमी के दिन पूजा रात 12 बजे की जाती है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण होती है और संतान को दीर्घायु की भी प्राप्ति होती है।

जन्माष्टमी व्रत कथा (Janmashtami Vrat Katha):

स्‍कंद पुराण के मुताबिक द्वापर युग की बात है। तब मथुरा में उग्रसेन नाम के एक प्रतापी राजा हुए। लेकिन स्‍वभाव से सीधे-साधे होने के कारण उनके पुत्र कंस ने ही उनका राज्‍य हड़प लिया और स्‍वयं मथुरा का राजा बन बैठा। कंस की एक बहन थी, जिनका नाम था देवकी। कंस उनसे बहुत प्रेम करता था। देवकी का विवाह वसुदेव से तय हुआ तो विवाह संपन्‍न होने के बाद कंस स्‍वयं ही रथ हांकते हुए बहन को ससुराल छोड़ने के लिए रवाना हुआ। जब वह बहन को छोड़ने के लिए जा रहे था तभी एक आकाशवाणी हुई कि देवकी और वासुदेव की आठवीं संतान कंस की मृत्यु का कारण बनेगी। यह सुनते ही कंस क्रोधित हो गया और देवकी और वसुदेव को मारने के लिए जैसे ही आगे बढ़ा तभी वसुदेव ने कहा कि वह देवकी को कोई नुकसान न पहुंचाए। वह स्‍वयं ही देवकी की आठवीं संतान कंस को सौंप देगा। इसके बाद कंस ने वसुदेव और देवकी को मारने के बजाए कारागार में डाल दिया।

कारागार में ही देवकी ने सात संतानों को जन्‍म दिया और कंस ने सभी को एक-एक करके मार दिया। इसके बाद जैसे ही देवकी फिर से गर्भवती हुईं तभी कंस ने कारागार का पहरा और भी कड़ा कर दिया। तब भाद्रपद माह के कृष्‍ण पक्ष की अष्‍टमी को रोहिणी नक्षत्र में कन्‍हैया का जन्‍म हुआ। तभी श्री विष्‍णु ने वसुदेव को दर्शन देकर कहा कि वह स्‍वयं ही उनके पुत्र के रूप में जन्‍में हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि वसुदेव जी उन्‍हें वृंदावन में अपने मित्र नंदबाबा के घर पर छोड़ आएं और यशोदा जी के गर्भ से जिस कन्‍या का जन्‍म हुआ है, उसे कारागार में ले आएं। यशोदा जी के गर्भ से जन्‍मी कन्‍या कोई और नहीं बल्कि स्‍वयं माया थी। यह सबकुछ सुनने के बाद वसुदेव जी ने वैसा ही किया।

स्‍कंद पुराण के मुताबिक जब कंस को देवकी की आठवीं संतान के बारे में पता चला तो वह कारागार पहुंचा। वहां उसने देखा कि आठवीं संतान तो कन्‍या है फिर भी वह उसे जमीन पर पटकने ही लगा कि वह मायारूपी कन्‍या आसमान में पहुंचकर बोली कि रे मूर्ख मुझे मारने से कुछ नहीं होगा। तेरा काल तो पहले से ही वृंदावन पहुंच चुका है और वह जल्‍दी ही तेरा अंत करेगा। इसके बाद कंस ने वृंदावन में जन्‍में नवजातों का पता लगाया। जब यशोदा के लाला का पता चला तो उसे मारने के लिए कई प्रयास किए। कई राक्षसों को भी भेजा लेकिन कोई भी उस बालक का बाल भी बांका नहीं कर पाया तो कंस को यह अहसास हो गया कि नंदबाबा का बालक ही वसुदेव-देवकी की आठवीं संतान है। कृष्‍ण ने युवावस्‍था में कंस का अंत किया। इस तरह जो भी यह कथा पढ़ता या सुनता है उसके समस्‍त पापों का नाश होता है।