Karwa Chauth 2019 Vrat Katha, Vrat Puja Vidhi, Aarti: करवा चौथ सुहागिन महिलाओं द्वारा अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के उद्देश्य से किया जाता है। यह हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। साल 2019 में करवा चौथ 17 अक्टूबर को मनाया जा रहा है। करवा चौथ पर्व में सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना हेतु बिना अन्न और जल ग्रहण किए व्रत रखती हैं। शाम को चाँद देखने के बाद पति के हाथों जल ग्रहण कर व्रत का पारण किया जाता है। इससे पहले पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। पूजा के बाद सुहागिन महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं। जानिए करवा चौथ व्रत की संपूर्ण कथा यहां…
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करवा चौथ कथा (Karwa Chauth Vrat Katha/Story) :
बहुत समय पहले की बात है, एक साहूकार के सात बेटे और उनकी एक बहन करवा थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। यहां तक कि वे पहले उसे खाना खिलाते और बाद में स्वयं खाते थे। एक बार उनकी बहन ससुराल से मायके आई हुई थी। शाम को भाई जब अपना व्यापार-व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। चूंकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
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सबसे छोटे भाई को अपनी बहन की हालत देखी नहीं जाती और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चांद उदित हो रहा हो। इसके बाद भाई अपनी बहन को बताता है कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखती है, उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ जाती है। वह पहला टुकड़ा मुंह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है। दूसरा टुकड़ा डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश करती है तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिलता है। वह बौखला जाती है।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं और उन्होंने ऐसा किया है। सच्चाई जानने के बाद करवा निश्चय करती है कि वह अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं होने देगी और अपने सतीत्व से उन्हें पुनर्जीवन दिलाकर रहेगी। वह पूरे एक साल तक अपने पति के शव के पास बैठी रहती है। उसकी देखभाल करती है। उसके ऊपर उगने वाली सूईनुमा घास को वह एकत्रित करती जाती है।
एक साल बाद फिर करवा चौथ का दिन आता है। उसकी सभी भाभियां करवा चौथ का व्रत रखती हैं। जब भाभियां उससे आशीर्वाद लेने आती हैं तो वह प्रत्येक भाभी से ‘यम सूई ले लो, पिय सूई दे दो, मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो’ ऐसा आग्रह करती है, लेकिन हर बार भाभी उसे अगली भाभी से आग्रह करने का कह चली जाती है।
इस प्रकार जब छठे नंबर की भाभी आती है तो करवा उससे भी यही बात दोहराती है। यह भाभी उसे बताती है कि चूंकि सबसे छोटे भाई की वजह से उसका व्रत टूटा था अतः उसकी पत्नी में ही शक्ति है कि वह तुम्हारे पति को दोबारा जीवित कर सकती है, इसलिए जब वह आए तो तुम उसे पकड़ लेना और जब तक वह तुम्हारे पति को जिंदा न कर दे, उसे नहीं छोड़ना। ऐसा कह कर वह चली जाती है। सबसे अंत में छोटी भाभी आती है। करवा उनसे भी सुहागिन बनने का आग्रह करती है, लेकिन वह टालमटोली करने लगती है। इसे देख करवा उन्हें जोर से पकड़ लेती है और अपने सुहाग को जिंदा करने के लिए कहती है। भाभी उससे छुड़ाने के लिए नोचती है, खसोटती है, लेकिन करवा नहीं छोड़ती है।
अंत में उसकी तपस्या को देख भाभी पसीज जाती है और अपनी छोटी अंगुली को चीरकर उसमें से अमृत उसके पति के मुंह में डाल देती है। करवा का पति तुरंत श्रीगणेश-श्रीगणेश कहता हुआ उठ बैठता है। इस प्रकार प्रभु कृपा से उसकी छोटी भाभी के माध्यम से करवा को अपना सुहाग वापस मिल जाता है। हे श्री गणेश- मां गौरी जिस प्रकार करवा को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।
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करवा चौथ व्रत पूजा विधि:
करवा चौथ के व्रत में भगवान शंकर, माता पार्वती, कार्तिकेय, गणेश और चंद्र देव की पूजा-अर्चना होती है। एक तांबे या मिट्टी के बरतन में चावल, उड़द की दाल, सिंदूर, चूड़ी, शीशा, कंघी, लाल रिबन और रुपए रखकर किसी बड़ी सुहागिन महिला या अपनी सास के पांव छूकर उन्हें भेंट करें। करवा चौथ की पूजा के लिए एक स्टील या ब्रास की थाली का इस्तेमाल करें। इसमें रूई को तेल में डुबाकर चिन्ह बनाएं। इसी थाली में चावल और कुमकुम अलग-अलग रख लें। थाली में ही पूजन के लिए दीपक, धूपबत्ती सहित अन्य सामान रखें। मिट्टी के करवों में पानी भरकर रख लें। इसके अलावा चांद को देखने के लिए एक छलनी भी रख लें। पूजा कर कथा सुनें और जब चांद पूरी तरह से दिख जाए तो उसे छलनी से देखकर अर्घ्य देकर आरती उतारें। इसके तुरंत बाद अपने पति को उसी छलनी से देखें।
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ऊँ जय करवा मइया, माता जय करवा मइया।
जो व्रत करे तुम्हारा, पार करो नइया ।।
ऊँ जय करवा मइया।
सब जग की हो माता, तुम हो रुद्राणी।
यश तुम्हारा गावत, जग के सब प्राणी ।।
ऊँ जय करवा मइया।
कार्तिक कृष्ण चतुर्थी, जो नारी व्रत करती।
दीर्घायु पति होवे , दुख सारे हरती ।।
ऊँ जय करवा मइया।

