Kajari Teej Puja Vidhi, Katha And Significance: हिंदू पंचांग अनुसार भागो मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को कजरी तीज पर्व मनाया जाता है। जो इस बार 25 अगस्त को मनाया जा रहा है। ये व्रत सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। ये पर्व उत्तर भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है। इस व्रत को सातुड़ी तीज और बूढ़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत को कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की प्राप्ति के लिए रखती हैं। जानिए कजरी तीज की पूजा विधि और महत्व।

कजरी तीज पर होने वाली परंपरा:
-इस व्रत में जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर पकवान बनाए जाते हैं।
-इस व्रत में पूरे दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और रात में चंद्रोदय के बाद भोजन करके व्रत तोड़ती हैं।
-इस व्रत में सात लोइयां बनाकर उन पर घी और गुड़ रखकर गाय को इसे खिलाने के बाद भोजन किया जाता है।
-इस तीज पर आस-पास की महिलाएं एकत्रित होकर नाचती गाती हैं।

कजरी तीज पूजा की तैयारी: कजरी तीज पर नीमड़ी माता की पूजा की जाती है। व्रत रखने वाली महिलाएं इस दिन सुबह स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें। इसके बाद मिट्टी और गोबर से दीवार के सहारे एक तालाब जैसी आकृति बनाई जाती है और उसके पास नीम की टहनी को रोप दिया जाता है। फिर बनाए गए तालाब में कच्चा दूध और जल डालते हैं और उसके पास दीया जलाकर रखते हैं। फिर एक थाली तैयार की जाती है जिस पर नींबू, ककड़ी, सत्तू, रोली, मौली, अक्षत, ककड़ी, केला, सेब आदि रखे जाते हैं। साथ ही एक लोटे में कच्चा दूध रखना होता है। पूजा की तैयारी करने के बाद शाम के समय श्रृंगार के बाद नीमड़ी माता की पूजा की जाती है।

पूजा की विधि: सबसे पहले नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और कुछ अक्षत चढ़ाएं। फिर नीमड़ी माता को वस्त्र और श्रृंगार सामग्री चढ़ाएं। फिर फल और कुछ दक्षिणा चढ़ाएं। फिर पूजा कलश पर रोली से टीका लगाकर उस पर लछा बांधें। फिर घी का दीपक जलाकर पूजा करें और दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नाक की नथ, नीम की डाली, साड़ी का पल्ला आदि देखें।। अंत में चंद्रमा को जल चढ़ाएं। फिर व्रत खोल लें और फलाहार ग्रहण करें। (यह भी पढ़ें- मंज़िल पाकर ही दम लेती हैं इस राशि की लड़कियां, जानिए क्या कहता है ज्योतिष शास्त्र)

चंद्रमा को अर्घ्य देने की विधि: चंद्रमा को जल के छींटे दें और फिर रोली, मोली और अक्षत चढ़ायें। इसके बाद भोग अर्पित करें। फिर चांदी की अंगूठी और गेहूं के दाने हाथ में लेकर चंद्रमा को जल से अर्घ्य दें और एक ही जगह पर खड़े होकर चार बार घुमें।

कजरी तीज व्रत कथा: एक समय की बात है एक गरीब ब्राह्मणी ने कजरी तीज व्रत को करने का दृढ़ संकल्प कर लिया। ब्राह्मणी ने अपने पति को व्रत करने की बात सुनाई जिससे ब्राह्मण के पैरों तले जमीन खिसक गई। ब्राह्मण अब कर भी क्या सकता था इसलिए पत्नी के व्रत को पूरा करने के लिए वह जरूरी सामग्री जुटाने के लिए निकल पड़ा। सामग्री के रूप में चना, गेहूं व जौ के आटे से बने सत्तू की जरूरत थी। क्योंकि इन चीजों से बने पकवानों का भोग ब्राह्मणी को कजरी माता को लगाना था। ब्राह्मण चाहकर भी सामग्री को नहीं जुटा सका। अंत में वह एक साहूकार के यहां जाकर सत्तू बधवा लेता है और बिना धन दिए सत्तू को लेकर आगे बढ़ जाता है।

साहूकार ब्राह्मण को धन देने के लिए कहता है परंतु ब्राह्मण सत्तू को लेकर भागने लगता है। ब्राह्मण को ऐसा करते देख साहूकार को लगता है कि ब्राह्मण ने चोरी की है इसलिए वह अपने कुछ लोगों को ब्राह्मण के पीछे लगा देता है। ब्राह्मण को पकड़ लिया जाता है और तलाशी लेने पर केवल सत्तू ही उसके पास मिलता है। तब साहूकार ब्राह्मण से ऐसा करने के पीछे की वजह पूछता है। ब्राह्मण सारी बात साहूकार को बता देता है। पता चलने के बाद साहूकार कहता है कि आपकी पत्नी आज से मेरी बहन है और ऐसा कहने के बाद साहूकार ब्राह्मण को सत्तू के साथ धन व वस्त्र देकर विदा करता है। ब्राह्मण घर पहुंच अपनी पत्नी को सारी बात बता देता है जिसके बाद ब्राह्मणी सामग्री का प्रयोग करते हुए व्रत को पूरा करती है। ब्राह्मणी व्रत के फलस्वरूप पति की दीर्घायु व साहूकार के अच्छे स्वास्थ्य व संपन्नता की कामना करती है।