Kabir Vani Anup Jalota Mp3: आज भी घरों में कबीर वाणी पर बने भजनों को सुना जाता है। संत कबीर दास 15वीं सदी के प्रसिद्ध कवि और संत थे। भारत के महान संत एवं समाज सुधारक कबीरदास ने भक्ति आंदोलन पर काफी प्रभाव डाला था। उन्होंने सामाजिक अंधविश्वास की निंदा की और सामाजिक बुराइयों की सख़्त आलोचना की थी। जीवन की इस भाग-दौड़ में कबीर के दोहे जीने की कला सिखाते हैं। मन को शांति प्रदान करते हैं। संत कबीर की दिव्य वाणी आज भी लोगों को अंधेरे से निकाल कर सही दिशा में जाने की ओर प्रेरित करती है।
– गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो बताय।
अर्थ – कबीरदास इस दोहे में कहते हैं कि गुरु और गोविंद अर्थात भगवान अगर एक साथ हों आप पहले किसके चरणों की वंदना करेंगे। इसमें बताया गया है कि, इस सवाल का जवाब केवल गुरु के पास ही है। इसलिए गुरू और गोविंद अगर दोनों साथ में हैं तो पहले गुरु को प्रणाम करना चाहिए। क्योंकि गुरू ही आपको गोविंद तक पहंचने का मार्ग बता सकते हैं।
– पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
अर्थ – इस दोहे के जरिए कबीरदास कहना चाहते हैं कि, बिन प्रेम के सब बेकार है। भले ही आपने कितना भी पढ़ रखा हो। विनम्रता के बिना सारी पढ़ाई बेकार है। दुनिया में वही ज्ञानी है, जिसे प्रेम से बात करना आ गया।
– माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर,
कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
अर्थ – कबीरदास इस दोहे में कहते हैं कि, मन की शांति सबसे जरूरी है। आपका मन हमेशा आपके काबू में होना चाहिए। इसलिए कबीरदास लोगों को मोती की माला के समान अपने मन को सुंदर बनाने के लिए कहते हैं।
– जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान,
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
अर्थ – कबीरदास जी हमेशा जात—पात का विरोध किया। उनका कहना था कि आप किसी से ज्ञान प्राप्त कर रहे हों तो उसकी जाति के बारे में ध्यान न दें, क्योंकि उसका कोई महत्व नहीं होता है। बिल्कुल वैसे ही, जैसे तलवार का महत्व उसे ढकने वाले म्यान से ज्यादा होता है।

