जयापार्वती व्रत देवी जया को समर्पित है। देवी जया देवी पार्वती का ही एक रूप है। मुख्य रूप से इस व्रत को गुजरात में मनाया जाता है। जो अविवाहित महिलाओं के साथ विवाहित स्त्रियों के द्वारा भी किया जाता है। अविवाहित लड़कियां इस व्रत को अच्छे वर की प्राप्ति के लिए करती हैं और विवाहित स्त्रियां व्रत को अपने पति की दीर्घायु और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए रखती हैं। ये व्रत पांच दिनों तक मनाया जाता है। जिसकी शुरुआत 3 जुलाई से हो रही है और इसकी समाप्ति 8 जुलाई को होगी।
महत्व: यह व्रत आषाढ़ मास की त्रयोदशी से आरम्भ होता है और इसकी समाप्ति सावन कृष्ण पक्ष की तृतीया तिथि को होती है। इस व्रत को पांच, सात, नौ, ग्यारह और अधिकतम 20 वर्षों तक करने की सलाह दी जाती है। माना जाता है कि यह व्रत करने से स्त्रियों को अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है। मान्यताओं अनुसार इस व्रत का रहस्य भगवान विष्णु ने मां लक्ष्मी को बताया था। कहीं इसे सिर्फ एक दिन तो कहीं इसे 5 दिन तक मनाया जाता है। इस व्रत में बालू रेत का हाथी बना कर उन पर 5 प्रकार के फल, फूल और प्रसाद चढ़ाए जाते हैं।
पूजा की विधि: व्रत वाले दिन सुबह जल्दी उठ जाएं और सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें और माता पार्वती का स्मरण करें। घर के मंदिर में या किसी भी साफ स्थान पर शिव-पार्वती की मूर्ति स्थापित करें। उन्हें कुमकुम, शतपत्र, कस्तूरी, अष्टगंध और फूल अर्पित करें। इसके बाद ऋतु फल, नारियल, अनार व अन्य सामग्री अर्पित करें। अब विधि विधान षोडशोपचार पूज करें। माता पार्वती की स्तुति करें। फिर मां पार्वती का ध्यान करते हुए उनसे सुख सौभाग्य की प्रार्थना करें। जया पार्वती व्रत की कथा सुनें। फिर आरती करके पूजा संपन्न करें। अब ब्राह्मण को भोजन करवाएं और इच्छानुसार दक्षिणा देकर उनके चरण छूकर आशीर्वाद लें। अगर बालू रेत का हाथी बनाया है तो रात्रि जागरण के पश्चात उसे नदी या जलाशय में विसर्जित करें।
जयापार्वती व्रत विधि: जयापार्वती व्रत के समय नमकीन भोजन ग्रहण करने से बचना चाहिए। इन पाँच दिनों की उपवास अवधि के दौरान नमक का प्रयोग पूर्ण रूप से वर्जित माना गया है। उपवास के प्रथम दिन पर, एक छोटे पात्र में ज्वार या गेहूँ के दानों को बोकर पूजन स्थान पर रखा जाता है। फिर पाँच दिन तक इस पात्र की पूजा की जाती है। पूजा के समय, सूती ऊन से बने एक हार को कुमकुम अथवा सिन्दूर से सजाया जाता है। यह अनुष्ठान पाँच दिनों तक निरन्तर चलता है और प्रत्येक सुबह ज्वार/गेहूँ के दानों को जल अर्पित किया जाता है।
उपवास के अन्तिम दिन स्त्रियां जागरण करती हैं व पूरी रात भजन-कीर्तन करते हुए माँ की आराधना करती हैं। फिर अगले दिन सुबह गेहूँ अथवा ज्वार की बढ़ी हुई घास को पात्र से निकालकर पवित्र जल अथवा नदी में प्रवाहित किया जाता है। फिर पूजा के बाद नमक, सब्जियों तथा गेहूँ से बनी रोटियों के भोजन से उपवास तोड़ा जाता है।