रुक्‍मिणी भगवान श्रीकृष्‍ण की महारानी थीं, लेकिन उनका नाम राधा के साथ ही जोड़ा जाता है। देश में श्रीकृष्‍ण के ज्‍यादातर मंदिरों में भी उनके साथ राधा ही विराजमान दिखाई देती हैं। राधा-कृष्‍ण मंदिर देश में अनेक हैं। रुक्‍मिणी-श्रीकृष्‍ण मंदिर गिने-चुने ही हैं। इसके कई कारण हो सकते हैं। जानकारों के मुताबिक कृष्‍ण के बारे में जिन शुरुआती ग्रंथों में चर्चा आई है, उनमें राधा का जिक्र नहीं मिलता है।

माना जाता है कि दूसरी सदी में वैष्णव भक्ति संप्रदाय की रचनाओं में राधा को श्रीकृष्‍ण के जीवन से जुड़े प्रमुख किरदार के तौर पर पेश किया गया है। शायद एक वजह यह भी है कि भारत में राधा-कृष्ण मंदिरों की बहुतायत है, लेकिन श्रीकृष्‍ण की पटरानी रुक्‍मिणी की प्रतिमाओं वाले मंदिर बेहद कम हैं।

तमाम विद्वान कहते हैं कि भक्तिकाल के तमाम कवियों ने राधा-कृष्ण के प्रसंग का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया। राधारानी और श्रीकृष्ण की भक्ति की शुरुआत वल्लभ संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, निम्बार्क संप्रदाय आदि ने की। इसका मतलब कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई। इससे पहले आज की तरह ये प्रचलन में नहीं था।

श्री कृष्ण को 64 कलाओं में निपुण, पूर्णावतार माना गया है। रुक्‍मिणी के साथ उनका मंदिर कम होने का एक कारण यह भी हो सकता है कि श्रीकृष्‍ण से जुड़े साहित्‍य में राधा के साथ ही उनकी रासलीलाओं का ज्‍यादा वर्णन है। साहित्‍‍‍य ही नहीं, फिल्‍‍‍म, पेंटिंग आदि में भी राधा को ही महत्‍व मिला है, रुक्‍मिणी को नहीं।

इस बारे में इस्कॉन टेंपल, नोएडा के प्रवक्ता एकांत धाम दास Jansatta.Com से बातचीत में कहते हैं, ‘रुक्मिणी जी दरअसल लक्ष्मी स्वरूप हैं और भगवान की पत्नी हैं। जबकि राधा रानी भगवान की अंतरंग शक्ति हैं, वो भगवान से ही प्रकट हैं। ये एक फर्क है। राधा कृष्ण का युगल स्वरूप प्रेम का प्रतीक है और कृष्ण ने हमेशा प्रेम का संदेश दिया, यही वजह है कि अधिकतर राधा-कृष्ण के ही मंदिर मिलते हैं। वे कहते हैं राधा रानी का कोई अलग से अस्तित्व नहीं था, बल्कि वे भगवान से ही प्रकट थीं।