इस्कॉन मंदिरों में भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव बेहद ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस साल कृष्ण जयंती 23 और 24 अगस्त को मनाई जायेगी। कृष्ण जन्माष्टमी के दिन दुनिया भर में मौजूद इस्कॉन मंदिरों में खास रौनक लगी रहती है। क्योंकि ये मंदिर भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी को समर्पित है। भारत ही नहीं दुनियाभर में कई इस्कॉन मंदिर देखने को मिलते हैं। यहां तक कि सबसे पहले इस्कॉन मंदिर की स्थापना भी विदेश में ही हुई थी। आज दुनिया भर में करीब 400 ऐसे मंदिर स्थापित हो चुके हैं। इस्कॉन के कई अनुयायी हैं जो विश्व भर में गीता एवं हिन्दू धर्म और संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।
ISKCON का पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है जिसे हिंदी में अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन कहते हैं। इस्कॉन मंदिर की स्थापना श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने 13 जुलाई सन् 1966 में अमेरिका की न्यूयॉर्क सिटी में की थी। भगवान कृष्ण के संदेशों को पहुंचाने के लिए इस मंदिर की स्थापना की गई। इन मंदिरों का एक अलग ही ओरा है जो भक्तों को अपनी तरफ आकर्षित करता है। यहां पहुंचने पर मन खुद ब खुद शांत हो जाता है।
वैसे तो पूरे विश्व में कई इस्कॉन मंदिर बने हुए हैं लेकिन बैंगलोर का इस्कान मंदिर सबसे बड़ा माना जाता है। सन् 1997 में इस मंदिर की स्थापना हुई और जिस पहाड़ी पर ये मंदिर बना है उसे हरे कृष्णा हिल कहते हैं। इस्कॉन मंदिरों से जुड़े अनुयायी की एक अलग वेशभूषा होती है। जैसे आपने महिलाओं को साड़ी पहने चंदन की बिंदी लगाए तो पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा होगा। ये लोग लगातार ‘हरे राम-हरे कृष्ण’ का कीर्तन भी करते रहते हैं। इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिरे और विद्यालय बनवाये हैं।
इस मंदिर के चार नियम है: यहां के मतावलंबियों को चार नियमों का पालन करना होता है। धर्म के चार स्तम्भ तप, शौच, दया और सत्य है।
तप : इसका मतलब है कि किसी भी प्रकार का नशा नहीं। चाय, कॉफ़ी भी नहीं।
शौच : अवैध स्त्री/पुरुष गमन नहीं।
दया : माँसाहार/ अभक्ष्य भक्षण नहीं। (लहसुन, प्याज़ भी नहीं)
सत्य : जुआ नहीं यानी शेयर बाज़ारी भी नहीं।