जन्माष्टमी का पर्व हिंदू धर्म के लोगों द्वारा बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व की खास रौनक कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा वृन्दावन में देखने को मिलती है। देश के कुछ इलाकों में कल यानी 23 अगस्त को जन्माष्टमी पर्व मनाया गया तो वहीं मथुरा-वृन्दावन समेत कुछ जगहों पर आज 24 अगस्त को कृष्ण जन्मोत्सव मनाया जायेगा। भादप्रद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। ज्योतिष गणनानुसार इस वर्ष भगवान श्रीकृष्ण का 5245वां जन्मोत्सव मनाया जा रहा है लेकिन क्यों मनाया जाता है ये खास दिन? जानिए इसका इतिहास….
वेद-पुराणों, शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण द्वापर युग में जन्में थे। पौराणिक कथाओं अनुसार द्वापर युग में मथुरा में कंस नाम का राजा था जिसकी चचेरी बहन देवकी थी। वह उसे बेहद स्नेह करता था। लेकिन जब उसकी बहन का विवाह हुआ और उसे भविष्यवाणी के जरिए इस बात की जानकारी मिली कि उसका वध देवकी के आंठवे पुत्र के द्वारा होगा। तो यह सुनकर कंस क्रोधित हो गया और उसनेअपनी बहन को मारने के लिए तलवार उठा ली। देवकी को बचाने के लिए उनके पति वासुदेव ने कंस को अपनी सभी आंठ संतानों को सौपने का वचन दे दिया।
वासुदेव द्वारा आश्वाशन मिलने पर कंस ने दोनों को कारगार में डाल दिया। और एक के बाद एक उनकी सारी संतानों का वध करता गया। लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। जब भगवान कृष्ण का जन्म हुआ तो कंस के सारे मंसूबों पर पानी फिर गया। भगवान कृष्ण के जन्म के समय एक से एक चमत्कार हुए। कारगार के दरवाजे खुद ब खुद खुल गए। जिससे वासुदेव अपने पुत्र कृष्ण को सुरक्षित स्थान पर पहुंचाने में सक्षम हो पाए। और कृष्ण की जगह एक दिव्य कन्या को लाकर कंस को सौंप दिया। जब कंस ने मायारूपी कन्या का अंत करना चाहा तो वह आसमान में पहुंचकर बोली कि रे मुर्ख तेरा काल वंदावन पहुंच चुका है जो जल्द ही तेरा अंत करेगा। यह सुनकर कंस तिलमिलाया और उसने कृष्ण को मारने के लिए कई राक्षस भेजे। लेकिन वे सबके सब असफल रहे।
भगवान कृष्ण का जन्म आधी रात को हुआ था। जिस कारण लोग जन्माष्टमी के दिन पूजा रात 12 बजे करते हैं। लोगों को कृष्ण के जन्म के समय का बेसब्री से इंतजार रहता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दिन लोग व्रत और पूजापाठ करते हैं। माना जाता है कि इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति, दीर्घायु और सुख-समृद्धि की भी प्राप्ति होती है। शास्त्रों में कृष्ण जन्माष्टमी को सभी व्रत का राजा यानि ‘व्रतराज’ कहा जाता है। इस दिन बाल गोपाल को झूला झुलाने की परंपरा रही है, इसलिए लोग इस दिन भगवान कृष्ण की प्रतिमाओं को झूला झुलाते हैं। कहा जाता है कि अगर कोई व्यक्ति पालने में भगवान को झुलाए तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।