Jagannath Rath Yatra 2019: 04 जुलाई से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा शुरु हो गई है। हिंदूओं के लिए इस यात्रा का धार्मिक रूप से काफी महत्व माना जाता है। इस रथ यात्रा के दौरान किसी को कोई असुविधा ना हो इसके लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम कर लिये गए हैं। जगन्नाथ रथ उत्सव को 10 दिनों तक मनाया जाता है। दुनिया भर से श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के रथ को खीचने के लिए आते हैं। यह यात्रा हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी सेआरंभ होती है और दशमी तिथि को समाप्त होती है। रथयात्रा में सबसे आगे ताल ध्वज पर श्री बलराम, उसके पीछे पद्म ध्वज रथ पर माता सुभद्रा व सुदर्शन चक्र और अंत में गरुण ध्वज पर श्री जगन्नाथ जी सबसे पीछे चलते हैं। यहां आप जानेंगे कि आखिर कैसे हुई इस यात्रा की शुरुआत…

इस यात्रा को लेकर कई धार्मिक मान्यताएं हैं। एक पौराणक कथा अनुसार एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा प्रभु जगन्नाथ के सामने प्रकट की और द्वारका के दर्शन कराने की प्रार्थना की। जिसके बाद भगवान जगन्नाथ ने उनकी इच्छा की पूर्ति के लिए उन्हें रथ में बैठाकर नगर का भ्रमण करवाया। जिसके बाद से यहां हर साल जगन्नाथ रथयात्रा निकाली जाती हैं। जिसका वर्णन स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, बह्म पुराण आदि में भी किया गया है।

इस यात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं रखी जाती हैं। इन सभी प्रतिमाओं को रथ में बिठाकर नगर का भ्रमण करवाया जाता हैं। और 10 दिन तक यह यात्रा चलती है। यात्रा में तीन रथ होते हैं जो लकड़ी के बने होते हैं। जिन्हें श्रद्धालु खींचकर चलते हैं। और दुनिया भर से श्रद्धालु इस रथ को खीचनें और इस भव्य यात्रा को देखने के लिए आते हैं। मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति इस रथयात्रा में शामिल होकर इन रथों को खींचते हैं उन्हें सौ यज्ञ के बराबर पुण्य प्राप्त होता है। आपको बता दें, भगवान जगन्नाथ के रथ में 16 पहिए लगे होते हैं एवं भाई बलराम के रथ में 14 और बहन सुभद्रा के रथ में 12 पहिए लगे होते हैं। मान्यताओं के अनुसार रथ यात्रा को निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर में पहुँचाया जाता हैं। जहां भगवान जगन्नाथ आराम करते हैं।