इंदिरा एकादशी आश्विन कृष्ण पक्ष में आती है। जो इस बार 25 सितंबर दिन बुधवार को पड़ रही है। पितृ पक्ष (Pitru Pakhsa 2019) में आने के कारण इस एकादशी को महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है कि यदि कोई पूर्वज जाने-अनजाने में हुए पाप कर्मों के कारण दंड भोग रहा होता है तो इस दिन विधि-विधान से व्रत कर उनके नाम से दान-दक्षिणा करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है। जिससे व्रत रखने वाले जातक का जीवन भी सुख से भर जाता है।

इंदिरा एकादशी व्रत की पूजा विधि: इस एकादशी व्रत में दशमी तिथि के दिन से व्रती को पूर्ण संयम का पालन करते हुए दिन व्यतीत करना होता है। दशमी के दिन सायंकाल में भोजन नहीं किया जाता है। फिर एकादशी के दिन सूर्योदय पूर्व उठकर किसी पवित्र नदी, कुएं इत्यादि पर स्नान करें और गीले वस्त्र से सूर्यदेव को अर्घ्य दें। इसके बाद घर के पूजा स्थान को स्वच्छ कर भगवान विष्णु के समक्ष एकादशी व्रत का संकल्प लें और इस व्रत का पुण्य फल अपने पितरों को अर्पित कर उनकी मुक्ति की कामना करें। दिनभर निराहार रहें, फलाहार कर सकते हैं। शाम के समय शालिग्राम और भगवान विष्णु की विधिवत पूजा करें। अगले दिन यानी द्वादशी के दिन सुबह व्रत का पारण करें। किसी ब्राह्मण दंपती को भोजन करवाकर अपनी सामर्थ्य अनुसार दक्षिणा दें। और फिर खुद भोजन ग्रहण करें।

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इंदिरा एकादशी व्रत का महत्व: महिष्मतीपुरी के राजा इन्द्रसेन धर्मपूर्वक प्रजा के उद्धार के लिए कार्य करते थे वे भगवान विष्णु के भक्त भी थे। एक दिन देवर्षि नारद उनके दरबार में आए। राजा ने प्रसन्न होकर उनकी सेवा की और उनके आगमन का कारण पूछा। तब नारदजी ने कहा कि हे राजन! मेरे वचनों को ध्यानपूर्वक सुनिए। मैं आपके पिता का संदेशा लेकर आया हूं जो इस समय पूर्व जन्म में एकादशी का व्रत भंग होने के कारण यमराज के निकट उसका दंड भोग रहे हैं। राजा इंद्रसेन अपने पिता की पीड़ा के बारे में जानकर अत्यंत दुखी हुए और देवर्षि से पिता के मोक्ष का उपाय पूछा। देवर्षि ने कहा कि हे राजन आप आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो और उसका पुण्य फल अपने पिता को प्रदान कर दो तो इससे उन्हें मुक्ति मिल जाएगी। आश्विन कृष्ण एकादशी आने पर राजा ने नारदजी के बताए अनुसार व्रत किया और उसका फल अपने पिता को प्रदान कर दिया। व्रत के प्रभाव से राजा के पिता को पीड़ा से मुक्ति मिली और राजा इंद्रसेन को भी मृत्यु पश्चात मोक्ष की प्राप्ति हुई।

एकादशी तिथि प्रारंभ: 24 सितंबर को सायं 4.42 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 25 सितंबर को दोपहर 2.08 बजे तक
पारण का समय: 26 सितंबर को प्रातः 6.15 से 8.38 तक