चाणक्य ने व्यावहारिक जीवन से संबंधित प्रायः सभी पहलुओं पर चाणक्य नीति में विस्तार से बताया है। चाणक्य नीति वह ग्रंथ है जिसमें आयी विभिन्न प्रकार की नीतियां मनुष्य जीवन को एक नई दिशा और दशा प्रदान कर सकती है। आज भी कई लोग चाणक्य नीति का पालन कर अपने जीवन को खुशहाल देखना पसंद करते हैं। आचार्य चाणक्य अर्थशास्त्र का ज्ञाता होने के कारण धन के बारे में भी कुछ नीतियों को बताया है। धन के बारे में चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में जो बताया है, उसका पालन कर हर मनुष्य अपने जीवन में धन-धान्य सम्पन्न हो सकता है। आइए जानते हैं कि धन के बारे में चाणक्य की नीति क्या कहती है।

अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति।
प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलंचविनश्यति।।

-चाणक्य नीति के पंद्रहवें अध्याय में वर्णित इस श्लोक का मतलब है कि गलत ढंग से कमाया हुआ धन मनुष्य के पास केवल दस साल तक ही रहता है। इसके बाद वह धन सूद समेत नष्ट हो जाता है। चाणक्य का मानना है कि धन हर मनुष्य के लिए आवश्यक है। परंतु इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि मनुष्य अनैतिक रूप से धन का संचय करे। इसलिए हर मनुष्य को धन संचय में यह बात हमेशा याद रखनी चाहिए कि गलत तरीके से कमाया हुआ धन 11वें साल में खुले में पेट्रोल की तरह नष्ट हो जाता है।

त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं दाराश्च भृत्याश्च सुहृज्जनाश्च।
तं चार्थवन्तं पुनराश्रयन्ते ह्यर्थो हि लोके पुरुषस्य बन्धुः ।।

-यह श्लोक चाणक्य नीति के पंद्रहवें अध्याय में आया है। पंद्रहवें अध्याय में वर्णित इस श्लोक का अर्थ है कि जब तक मनुष्य के पास पर्याप्त धन रहता है तब तक उसका साथ उसके भाई, बहन, दोस्त, सगे-संबंधी और जान-पहचान के लोग देते हैं। परंतु जब मनुष्य के पास धन खत्म हो जाता है तो उसके अपने लोग भी उसका साथ छोड़ने लगते हैं। इस श्लोक के माध्यम से चाणक्य कहते हैं कि जब मनुष्य धन विहीन हो जाता है तो ऐसे में वह लक्ष्य से दूर होकर अपनों से से भी दूर चला जाता है।