हर कोई अपनी जिंदगी में सफल बनना चाहता है। सफलता के लिए कई लोग कई तरह का पूजा-पाठ करते हैं, व्रत रखते हैं। इनके अलावा भी कई काम करते हैं। (बता दें हमारा उद्देश्य आपकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना नहीं है।) लेकिन इन सब बातों के बाद भी कई लोगों को सफलता नहीं मिल पाती। सफलता कैसे मिलेगी?इसके बारें में बता रहें हैं पं. विजयशंकर मेहता जी। मेहता जी के अनुसार हर कोई बाहर की दुनिया में झांकता है लेकिन कभी अंदर की दुनिया को देखने की कोशिश नहीं करता है। अगर आपको सफलता पानी है तो पहले अपने अंदर झांकना चाहिए। मेहता जी के अनुसार हमारे अंदर तीन दर्पण होते हैं। परिश्रम, ईमानदारी और भलाई।

जिदंगी में सफल बनने के लिए इन सभी दर्पणों का ध्यान रखना जरुरी होता है। परिश्रम अर्थात मेहनत। मेहनत करना जरुरी होता है बिना मेहनत के कोई भी चीज आसानी से नहीं मिलती और बिना मेहनत के मिली हुई चीज कभी आत्मविश्वास नहीं देती। जब भी आप परिश्रम करते हैं तो आपको अंदर से आत्मविश्वास आता है।

जिदंगी का दूसरा दर्पण होता है ईमानदारी। जिदंगी का पहला मंत्र हो सकता है कि आपने मजबूरी में किया हो लेकिन ईमानदारी अपनी मर्जी से आती है। जब भी आप इस दर्पण में खुद को देखेंगे तो भीतर से खुद को बहुत अच्छा लगेगा। वहीं अगर कभी इस दर्पण में धूल जमती है तो इसे अंहकार कहा जाता है। जब भी मनुष्य में अहंकार आता है तो प्रेम से दूर हो जाता है। इसलिए आपको इस दर्पण को धूल लगाने से बचाना चाहिए।

जिंदगी का तीसरा मंत्र है भलाई। जिस तरह से जिदंगी के दूसके मंत्र पर धूल जमने को अहंकार का नाम दिया था उसी तरह से भलाई पर जमने वाली धूल को ईर्ष्या का नाम दिया जाता है। आप जितनी अधिक सेवा देंगे उतने ही ईर्ष्या से दूर रहेंगे। अगर जिंदगी के इस मंत्र पर धूल जमी है उसे जितना जल्दी हो सके हटा लेना चाहिए। क्योंकि सफलता के रास्ते में ये सबसे बड़ी बाधाएं हैं।