गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ की कथा आई है। माहाभारत के आदि पर्व में कहा गया है कि जब गरुड़ अमृत लेकर आकाश में उड़े जा रहे थे तब उन्हें भगवान विष्णु का साक्षात्कार हुआ। भगवान ने उन्हें वर देने की इच्छा प्रकट की। जिसके बाद गरुड़ में वर मांगा कि वह सदैव उनकी ध्वजा में उपस्थित रह सके। साथ ही बिना अमृत को पिए ही अजर-अमर हो जाए। गरुड़ की बात सुनकर भगवान ने उन्हें वर दिया। तब गरुड़ ने भगवान विष्णु से कहा- “मैं भी आपको वर देना चाहता हूं”। इस पर भगवान ने उसे अपना वाहन होने का वर मांगा।

कहते हैं कि तब से गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हो गए। शास्त्रों में वाहन का अर्थ ढोने वाला बताया गया है। वहीं वेदों को परमात्मा का वहन करने वाला कहा गया है। इसलिए तीनों वेद के वाहन गरुड़ हैं। इसके अलावा भागवत पुराण में कहा गया है कि सामवेद के वृहद और अथांतर नामक भाग गरुड़ के पंख हैं और उड़ते समय उनसे साम ध्वनि निकलती है। इसलिए गरुड़ को सर्ववेदमय विग्रह कहा जाता है। साथ ही गरुड़ को वाहन कहने का अभिप्राय यह भी मान जाता है कि भगवान विष्णु का विमान गरुड़ के आकार का था। विमान पर लहराती ध्वजा पर तो गरुड़ का अंकित होना माना ही गया है। वैसे भी यदि तर्कशील व्यक्ति विमान की कल्पना को न भी माने तो भी आध्यात्मिक दृष्टि से विष्णु और गरुड़ का तालमेल से नकार नहीं सकता। क्योंकि पुराणों में उन्हें नित्य, मुक्त और अखंड कहा गया है और गरुड़ की स्तुति भगवान मानकर की गई है।

वहीं गरुड़ की उत्पत्ति के संबंध में कथा पुराणों में वर्णित है। जिसके अनुसार गरुड़ कश्यप ऋषि और उनकी दूसरी पत्नी विनता की सन्तान हैं। दक्ष प्रजापति की कद्रू और विनता नामक दो कन्याएं थीं। उन दोनों का विवाह कश्यप ऋषि के साथ हुआ। कश्यप ऋषि से कद्रू ने एक हजार नाग पुत्र और विनता ने केवल दो तेजस्वी पुत्र वरदान के रूप में मांगे  वरदान के परिणामस्वरूप कद्रू ने एक हजार अंडे और विनता ने दो अंडे प्रसव किये। कद्रू के अंडों के फूटने पर उसे एक हजार नाग पुत्र मिल गये। परंतु विनता के अंडे उस समय तक नहीं फूटे।

उतावली होकर विनता ने एक अंडे को फोड़ डाला। उसमें से निकलने वाले बच्चे का ऊपरी अंग पूर्ण हो चुका था किन्तु नीचे के अंग नहीं बन पाये थे। उस बच्चे ने क्रोधित होकर अपनी माता को शाप दे दिया कि माता! तुमने कच्चे अंडे को तोड़ दिया है इसलिये तुझे 5 सौ वर्षों तक अपनी सौत की दासी बनकर रहना होगा। ध्यान रहे दूसरे अंडे को अपने से फूटने देना। उस अंडे से एक अत्यन्त तेजस्वी बालक होगा और वही तुझे इस शाप से मुक्ति दिलायेगा। इतना कहकर अरुण नामक वह बालक आकाश में उड़ गया और सूर्य के रथ का सारथी बन गया। समय आने पर विनता के दूसरे अंडे से महातेजस्वी गरुड़ की उत्पत्ति हुई।