Happy Holi 2023 Date in India: होली दीपावली के बाद हिन्दुओं का दूसरा मुख्य त्योहार है। जो विश्वभर में हिंदू धर्म के लोगों द्वारा मनाया जाता है। ये रंगों का एक खूबसूरत सा पर्व है जिस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाते हैं। ये पर्व भगवान कृष्ण का काफी प्रिय माना जाता है। तभी तो कृष्ण जी की नगरी में इस पर्व की खास रौनक देखने को मिलती है। ब्रज की होली को कौन नहीं जानता जिसे देखने के लिए दुनिया भर से लोग यहां आते हैं। जानिए इस पर्व का महत्व पौराणिक कथाओं से…

भक्त प्रहलाद से जुड़ी है ये कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप था, वह खुद को भगवान मनाता था और चाहता था कि हर कोई भगवान की तरह उसकी पूजा करें। वहीं अपने पिता के आदेश का पालन न करते हुए हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रहलाद ने उसकी पूजा करने से इंकार कर दिया और उसकी जगह भगवान विष्णु की पूजा करनी शुरू कर दी। इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को कई सजाएं दी जिनसे वह प्रभावित नहीं हुआ।

इसके बाद हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका ने मिलकर एक योजना बनाई की वह प्रहलाद के साथ चिता पर बैठेगी। होलिका के पास एक ऐसा कपड़ा था जिसे ओढ़ने के बाद उसे आग में किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचता, दूसरी तरह प्रहलाद के पास खुद को बचाने के लिए कुछ भी न था। जैसे ही आग जली, वैसे ही वह कपड़ा होलिका के पास से उड़कर प्रहलाद के ऊपर चला गया। इसी तरह प्रहलाद की जान बच गई और उसकी जगह होलिका उस आग में जल गई। यही कारण है होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

होलिका दहन के दिन एक पवित्र अग्नि जलाई जाती जिसमें सभी तरह की बुराई, अंहकार और नकारात्मकता को जलाया जाता है। अगले दिन, अपने हम अपने प्रियजनों को रंग लगाकर त्योहार की शुभकामनाएं देते हैं साथ ही नाच, गाने और स्वादिष्ट व्यंजनों के साथ इस पर्व का मजा लेते हैं।

कामदेव की कथा

 एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार हिमालय पुत्री पार्वती चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान भोलेनाथ से हो जाए परंतु शिवजी अपनी तपस्या में लीन थे। तब कामदेव पार्वती की सहायता के लिए के लिए आए। उन्होंने प्रेम बाण चलाया और भगवान शिव की तपस्या भंग हो गई। शिवजी को बहुत क्रोध आया और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। कामदेव का शरीर उनके क्रोध की ज्वाला में भस्म हो गया। फिर शिवजी ने पार्वती को देखा। पार्वती की आराधना सफल हुई और शिव जी ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया।

इसीलिए पुराने समय से होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर अपने सच्चे प्रेम का विजय उत्सव मनाया जाता है। जिस दिन भगवान शिव ने कामदेव को भस्म किया था वह दिन फाल्गुन शुक्ल अष्टमी थी। तभी से होलाष्टक की प्रथा आरंभ हुई।

जानिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 2023 , जानिए होली के ज्योतिषीय उपाय 2023

राजा रघु से जुड़ी है कथा

राजा रघु के राज्य में ढुण्डा नाम की एक राक्षसी ने शिव से अमरत्व प्राप्त कर लोगों को खासकर बच्चों को सताना शुरु कर दिया। भयभीत प्रजा ने अपनी पीड़ा राजा रघु को बताई। तब राजा रघु के पूछने पर महर्षि वशिष्ठ ने बताया कि शिव के वरदान के प्रभाव से उस राक्षसी की देवता, मनुष्य, अस्त्र-शस्त्र या ठंड, गर्मी या बारिश से मृत्यु संभव नहीं, किंतु शिव ने यह भी कहा है कि खेलते हुए बच्चों का शोर-गुल या हुडदंग उसकी मृृत्यु का कारण बन सकता है।

अत: ऋषि ने उपाय बताया कि फाल्गुन पूर्णिमा का दिन शीत ऋतु की विदाई का तथा ग्रीष्म ऋतु के आगमन का होता है। उस दिन सारे लोग एकत्र होकर आनंद और खुशी के साथ हंसे, नाचे, गाएं, तालियां बजाएं। छोटे बच्चे निकलकर शोर मचाएं, लकड़ियां, घास, उपलें आदि इकट्‌ठा कर मंत्र बोलकर उनमें आग जलाएं, अग्नि की परिक्रमा करें व उसमें होम करें। राजा द्वारा प्रजा के साथ इन सब क्रियाओं को करने पर अंतत: ढुण्डा नामक राक्षसी का अंत हुआ।इस प्रकार बच्चों पर से राक्षसी बाधा तथा प्रजा के भय का निवारण हुआ। यह दिन ही होलिका तथा कालान्तर में होली के नाम से लोकप्रिय हुआ।