होली का पर्व 2 दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका दहन (Holika Dahan) किया जाता है दूसरे दिन रंग वाली होली (Rang Wali Holi) खेलने की परंपरा है। इस बार होलिका दहन 9 मार्च तो रंगों का त्योहार होली 10 मार्च को मनाया जायेगा। रंगों का ये त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस त्योहार को बसंत ऋतु के आगमन से भी जोड़कर देखा जाता है। मथुरा, वृंदावन, गोकुल और बरसाने की होली विश्व प्रसिद्ध है। जानिए कब, कैसे और क्यों मनाया जाता है होली पर्व…
कब और कैसे मनाया जाता है होली का त्योहार? होली के त्योहार की शुरुआत फाल्गुन पूर्णिमा के दिन से हो जाती है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है और फिर अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को रंग वाली होली खेली जाती है। हिंदी के नये संवत् की शुरुआत इस दिन से हो जाती है। कलर वाली होली के एक दिन पहले शाम के समय होलिका जलाई जाती है। कहा जाता है कि होलिका दहन की पवित्र अग्नि में व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों की आहुति दे देनी चाहिए और एक नई शुरुआत करनी चाहिए। इसके अगले दिन सुबह से लेकर दोपहर तक रंग वाली होली खेली जाती है। लोग घर में तरह तरह के पकवान बनाते हैं। रंग खेलने के बाद स्नान कर शाम के समय एक दूसरे के घर जाकर होली की बधाई दी जाती है।
क्यों मनाई जाती है होली (Holika/Falgun Purnima Katha):
होली के त्योहार को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से सबसे प्रसिद्ध कथा है प्रह्लाद और उसे पिता हिरण्यकश्यप की। इस कथा के मुताबिक, प्राचीन काल में अत्याचारी राक्षसों के राजा हिरण्यकश्यप ने तपस्या करके ब्रह्मा से वरदान पा लिया कि संसार का कोई भी जीव-जन्तु, देवी-देवता, राक्षस या मनुष्य उसे न मार सके. न ही वह रात में मरे, न दिन में, न पृथ्वी पर, न आकाश में, न घर में, न बाहर. यहां तक कि कोई शस्त्र भी उसे न मार पाए. ऐसा वरदान पाकर वह अत्यंत निरंकुश बन बैठा. हिरण्यकश्यप के एक बेटा हुआ, जिसका नाम उसने प्रह्लाद रखा. प्रह्लाद अपने पिता के विपरीत परमात्मा में अटूट विश्वास करने वाला था. प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था और उस पर भगवान विष्णु की कृपा-दृष्टि थी.
हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को आदेश दिया कि वह उसके अतिरिक्त किसी अन्य की स्तुति न करे. प्रह्लाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप उसे जान से मारने पर उतारू हो गया. उसने प्रह्लाद को मारने के अनेक उपाय किए लेकिन व प्रभु-कृपा से बचता रहा. हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को अग्नि से बचने का वरदान था. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की सहायता से प्रह्लादद को आग में जलाकर मारने षड्यंत्र रचा.
होलिका बालक प्रह्लाद को गोद में उठाकर धूं-धू करती आग में जा बैठी. प्रभु-कृपा से प्रह्लाद को आंच भी नहीं आई और होलिका जल कर वहीं भस्म हो गई. इस प्रकार प्रह्लाद को मारने के प्रयास में होलिका की मृत्यु हो गई. इसके बाद हिरण्यकश्यप को मारने के लिए भगवान विष्णु नरंसिंह अवतार में खंभे से निकल कर गोधूली समय अवतरित हुए. उन्होंने दरवाजे की चौखट पर बैठकर अत्याचारी हिरण्यकश्यप को मार डाला. कहते हैं कि तभी से होली का त्योहार मनाया जाने लगा.
होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan 2020 Time And Muhurat):
होलिका दहन सोमवार, मार्च 9, 2020 को
होलिका दहन मुहूर्त – 06:26 पी एम से 08:52 पी एम
अवधि – 02 घण्टे 26 मिनट्स
रंगवाली होली मंगलवार, मार्च 10, 2020 को
भद्रा पूँछ – 09:37 ए एम से 10:38 ए एम
भद्रा मुख – 10:38 ए एम से 12:19 पी एम
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 09, 2020 को 03:03 ए एम बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 09, 2020 को 11:17 पी एम बजे
होली का शुभ मंत्र: इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रूप में करना चाहिए।
अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:
होली की शुभकामनाएं (Holi 2020 Wishes):
सभी रंगों का रास है होली,
मन का उल्लास है होली,
जीवन में खुशियां भर देती है,
बस इसीलिए ख़ास है होली।
रंगों के त्योहार में भरें ख़ुशी के रंग,
हर दरवाजे पर बजे होली की मृदंग,
ये होली बीते आपकी…
आपके चाहने वालों के संग।
गुलाबी ठंडक में आया
होली का त्योहार,
रंगों की बारात चली है
खुशियों की आई बहार।
सूरज की किरण
खुशियों की बहार,
लाल गुलाबी रंग है
झूम रहा संसार..
खूब शुभ हो होली का त्योहार।
जो पूरी सर्दी नहीं नहाए
हो रही उनको नहलाने की तैयारी
बाहर नहीं तुम आए तो
घर में आकर मारेंगे पिचकारी..।
आज मुबारक, कल मुबारक
होली का हर पल मुबारक
रंग बिरंगी होली में
हमारा भी एक रंग मुबारक
हैप्पी होली।
होली के गाने (Holi Hindi Songs):
‘फागुन’ का ‘पिया संग खेलो होरी व फागुन आयो रे’
‘कटी पतंग’ का ‘आज न छोड़ेंगे’।
‘जख्मी’ फिल्म का ‘आई-आई रे होली’।
‘आखिर क्यों’ का ‘सात रंग में खेल रही है।’
होली के शुभ योग: 9 मार्च यानी आज गुरु अपनी धनु राशि में और शनि भी अपनी ही राशि मकर में विराजमान हैं। इससे पहले इन दोनों ग्रहों का ऐसा योग 3 मार्च 1521 को बना था। होली पर शुक्र मेष राशि में, मंगल और केतु धनु राशि में, राहु मिथुन में, सूर्य और बुध कुंभ राशि में, चंद्र सिंह में है।