रंग वाली होली के दिन से हिंदी के नये माह चैत्र की शुरुआत हो जाती है। होली का उत्सव दो दिन मनाया जाता है। जिसमें पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और फिर दूसरे दिन होली खेली जाती है। रंग वाली होली को धुलण्डी नाम से भी जाना जाता है। इस दिन लोग सुबह से ही रंग खेलना शुरू कर देते हैं और ये सिलसिला दोपहर तक चलता है।
होली का पंचांग (Holika Panchang): चैत्र प्रतिपदा तिथि की शरुआत 9 मार्च रात 11 बजे के बाद से हो जायेगी। दिन मंगलवार, नक्षत्र उत्तराफाल्गुनी रहेगा। सूर्य राशि कुम्भ तो चन्द्र राशि कन्या रहेगी। होली के दिन त्रिपुष्कर योग भी बन रहा है। इस योग में किसी भी कार्य को करने से सफलता हासिल होने की मान्यता है। होली के दिन भद्रा का साया नहीं रहेगा। दिन में प्रतिपदा तिथि रहने के कारण सुबह से लेकर दोपहर तक होली खेली जा सकेगी।
भगवान कृष्ण की नगरी में होली की खास रौनक: वैसे तो होली का त्योहार पूरे देश में बड़ी ही धूम धाम से मनाया जाता है। लेकिन इस पर्व की खास रौनक भगवान कृष्ण की नगरी ब्रज में देखने को मिलती है। ब्रज की होली की छटा का आनन्द लेने के लिये लोग मथुरा, वृन्दावन, गोवर्धन, गोकुल, नन्दगाँव और बरसाना में आते हैं। बरसाना की लट्ठमार होली तो दुनिया भर में विख्यात है।
होली से पहले किया जाता है होलिका दहन: होली के पहले दिन, सूर्यास्त के पश्चात, होलिका दहन करने की परंपरा है। होलिका पूजा केवल शुभ मुहूर्त को देखकर ही की जाती है। होलिका दहन के समय भद्रा रहित पूर्णिमा तिथि को देखा जाता है।
होलिका दहन सोमवार, मार्च 9, 2020 को
होलिका दहन मुहूर्त – शाम 06:26 से 08:52 तक
अवधि – 02 घण्टे 26 मिनट्स
रंग वाली होली मंगलवार, मार्च 10, 2020 को
भद्रा पूँछ – सुबह 09:37 से 10:38 तक
भद्रा मुख – सुबह 10:38 से दोपहर 12:19 तक
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 09, 2020 को सुबह 03:03 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 09, 2020 को सुबह 11:17 बजे
एक लोटा जल, गोबर से बनीं होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज, गुजिया, मिठाई और फल.
होली के दिन से शुरु करके बजरंग बाण का 41 दिन तक नियमित पाठ करनें से हनुमानजी की कृपा से हर मनोकामना पूर्ण होने का मार्ग प्रशस्त होता है।
रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथानक के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं। यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।
एक लोटा जल, गोबर से बनीं होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज, गुजिया, मिठाई और फल.
पुराणों के अनुसार दानवराज हिरण्यकश्यप ने जब देखा की उसका पुत्र प्रह्लाद सिवाय विष्णु भगवान के किसी अन्य को नहीं भजता, तो वह क्रुद्ध हो उठा और अंततः उसने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया की वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए; क्योंकि होलिका को वरदान प्राप्त था कि उसे अग्नि नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। किन्तु हुआ इसके ठीक विपरीत -- होलिका जलकर भस्म हो गयी और भक्त प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ। इसी घटना की याद में इस दिन होलिका दहन करने का विधान है। होली का पर्व संदेश देता है कि इसी प्रकार ईश्वर अपने अनन्य भक्तों की रक्षा के लिए सदा उपस्थित रहते हैं।
होली की पूजा से पहले भगवान नरसिंह और प्रह्लाद की पूजा की जाती है। पूजा के बाद अग्नि स्थापना की जाती है यानी होली जलाई जाती है। उस अग्नि में अपने-अपने घर से होलिका के रूप में उपला, लकड़ी या कोई भी लकड़ी का बना पुराना सामान जलाया जाता है। मान्यता है कि किसी घर में बुराई का प्रवेश हो गया हो तो वह भी इसके साथ जल जाए।
अपने घर में सुख शांति कौन नहीं चाहता है, लेकिन कई बार सारे उपाय बेकार हो जाते हैं और थकहारकर बैठ जाते हैं। लेकिन आप होली पर एक उपाय आजमा सकते हैं। होलिका दहन से पहले होली की पूजा में जौ का आटा चढ़ाने से आपके घर में सुख शांति और समृद्धि आती है।
यदि राहु को लेकर कोई परेशानी है तो एक नारियल का गोला लेकर उसमें अलसी का तेल भरें तथा उसी में थोडा सा गुड डालें, फिर उस गोले को अपने शरीर के अंगों से स्पर्श कराकर जलती हुई होलिका में डाल दें। इस उपाय से आगामी पूरे वर्ष भर राहू परेशान नहीं करेगा।
होलिका दहन से पहले विधि विधान के साथ होलिका की पूजा करें। इस दौरान होलिका के सामने पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके पूजा करने का विधान है। पहले होलिका को आचमन से जल लेकर सांकेतिक रूप से स्नान के लिए जल अर्पण करें। इसके पश्चात कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना है। सूत के माध्यम से उन्हें वस्त्र अर्पण किये जाते हैं। फिर रोली, अक्षत, फूल, फूल माला, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। पूजन के बाद लोटे में जल लेकर उसमें पुष्प, अक्षत, सुगन्ध मिला कर अघ् र्य दें। इस दौरान नई फसल के कुछ अंश जैसे पके चने और गेंहूं, जौं की बालियां भी होलिका को अर्पण करने का विधान है।
दिल्ली 6 बजकर 22 मिनट से 7 बजकर 10 मिनट
मुंबई 6 बजकर 43 मिनट से 7 बजकर 31 मिनट तक
लखनऊ 6 बजकर 3 मिनट से 6 बजकर 51 मिनट तक
पटना 6 बजकर 1 मिनट से 6 बजकर 50 मिनट तक
भोपाल 6 बजकर 25 मिनट से 7 बजकर 12 मिनट तक
होलिका दहन भद्रा के समय में नहीं करना चाहिए। भद्रा रहित मुहूर्त में ही होलिका दहन शुभ होता है। इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा एवं सूर्यास्त से पूर्व कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
होलिका दहन के समय काम में आने पूजा शामिल सामग्री की लिस्ट
- गोबर के बने हुए बड़कुले
- गोबर
- गंगाजल
- माला फूल
- पांच तरह के अनाज
- अक्षत
- हल्दी
- बताशे
- फल
फाल्गुन पूर्णिमा तिथि को ही हिरण्यकश्यप की बहन होलिका ने भगवाव विष्णु के भक्त प्रह्लाद को आग में जलाकर मारने का प्रयास किया था, लेकिन वह सफल नहीं हो पाई। भगवान श्रीहरि विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गए और होलिका जलकर मर गई।
अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्तां पूजयिष्यामि भूति भूति प्रदायिनीम।
होली के त्योहार की शुरुआत फाल्गुन पूर्णिमा के दिन से हो जाती है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है और फिर अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को रंग वाली होली खेली जाती है। हिंदी के नये संवत् की शुरुआत इस दिन से हो जाती है। कलर वाली होली के एक दिन पहले शाम के समय होलिका जलाई जाती है। कहा जाता है कि होलिका दहन की पवित्र अग्नि में व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों की आहुति दे देनी चाहिए और एक नई शुरुआत करनी चाहिए। इसके अगले दिन सुबह से लेकर दोपहर तक रंग वाली होली खेली जाती है। लोग घर में तरह तरह के पकवान बनाते हैं। रंग खेलने के बाद स्नान कर शाम के समय एक दूसरे के घर जाकर होली की बधाई दी जाती है।
होलिका दहन की पूजा के लिए सबसे पहले पूजा करने वाले जातकों को होलिका के पास जाकर पूर्व दिशा में मुख करके बैठना चाहिए। इसके बाद पूजन सामग्री जिसमें कि जल, रोली, अक्षत, फूल, कच्चा सूत, गुड़, हल्दी साबुत, मूंग, गुलाल और बताशे साथ ही नई फसल यानी कि गेहूं और चने की पकी बालियां ले लें। इसके बाद होलिका के पास ही गाय के गोबर से बनी ढाल रखे। साथ ही गुलाल में रंगी, मौली, ढाल और खिलौने से बनी चार अलग-अलग मालाएं रख लें। इसमें पहली माला पितरों के लिए, दूसरी पवनसुत हनुमान जी के लिए, तीसरी मां शीतला और चौथी माला परिवार के नाम से रखी जाती है। इसके बाद होलिका के की परिक्रमा करते हुए उसमें कच्चा सूत लपेट दें। यह परिक्रमा आप अपनी श्रद्धानुसार 3, 5 या 7 बार कर सकते हैं। इसके बाद जल अर्पित करें फिर अन्य पूजन सामग्री चढ़ाकर होलिका में अनाज की बालियां डाल दें।
लकड़ी और कंडों की होली के साथ घास लगाकर होलिका खड़ी करके उसका पूजन करने से पहले हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं। इसके बाद होलिका की तीन परिक्रमा करते हुए नारियल का गोला, गेहूं की बाली तथा चना को भूंज कर इसका प्रसाद सभी को वितरित करें।
होली से आठ दिन पहले होलाष्टक की शुरुआत हो जाती है। इन आठ दिनों में किसी भी प्रकार का कोई शुभ काम करना वर्जित माना गया है। इसके अलावा इस दौरान किसी भी तरह का कोई धार्मिक संस्कार इत्यादि भी करने की मनाही होती है। अगर इस दौरान जन्म और मृत्यु से जुड़ा कोई काम करना हो तो उसके लिए भी पहले शांति पूजा का प्रावधान बताया गया है।
होली में रंग खेलने से पहले अपने पूरे शरीर और बालों में तेल लगा लें। इससे रंग छुटाने में मदद मिलती है और आपकी स्किन और बालों को नुकसान भी नहीं होता। कोशिश करें कि होली सीधा धूप में ना खेलें। इससे रंग जलने लगता है और त्वचा में और पक्का हो जाता है। जितना हो सके होली खेलने के लिए नेचुरल रंगों का इस्तेमाल करें। कोशिश करें कि आप केवल हलके रंगों का ही चयन करें क्योंकि गहरे रंगों में केमिकल ज़्यादा होते हैं।
रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथानक के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं। यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार होलिका दहन पूर्णमासी तिथि में प्रदोष काल के दौरान करना चाहिए। भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि, होलिका दहन के लिये उत्तम मानी जाती है। यदि ऐसा योग नहीं बैठ पा रहा हो तब भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन किया जा सकता है। यदि भद्रा मध्य रात्रि तक हो तो ऐसी परिस्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन करने का विधान है। लेकिन भद्रा मुख में किसी भी सूरत में होलिका दहन नहीं किया जाता। लेकिन इस बार होलिका दहन के मुहूर्त के समय भद्रा का साया नहीं रहेगा।
रंगवाली होली से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है। जिसके लिए पूजा सामग्री में एक लोटा गंगाजल यदि उपलब्ध न हो तो ताजा जल, रोली, माला, रंगीन अक्षत, गंध के लिये धूप या अगरबत्ती, पुष्प, गुड़, कच्चे सूत का धागा, साबूत हल्दी, मूंग, बताशे, नारियल एवं नई फसल के अनाज गेंहू की बालियां, पके चने आदि चीजों का होना जरूरी है। होलिका के पास गोबर से बनी ढाल भी रखी जाती है। होलिका दहन के शुभ मुहूर्त के समय चार मालाएं अलग से रख ली जाती हैं। जो मौली, फूल, गुलाल, ढाल और खिलौनों से बनाई जाती हैं। इसमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी श्री हनुमान जी के लिये, तीसरी शीतला माता, और चौथी घर परिवार के नाम की रखी जाती है। इसके पश्चात पूरी श्रद्धा से होली के चारों और परिक्रमा करते हुए कच्चे सूत के धागे को लपेटा जाता है। होलिका की परिक्रमा तीन या सात बार की जाती है।
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिये महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं। होलिका दहन के लिये लगभग एक महीने पहले से तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं। कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है।