Holi, Holika Dahan 2020 Puja Vidhi, Muhurat, Time, Samagri, Mantra, Timings: होली से पूर्व देशभर में होलिका दहन किया गया। पंजाब से लेकर बिहार और झारखंड में होलिया जलाई गई। हिंदू धर्म ग्रन्थों के अनुसार होलिका दहन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व हर साल फाल्गुन पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में होलिका जलाई जाती है।
ज्योतिष अनुसार भद्रा काल में किसी भी तरह के शुभ कार्य नहीं किये जाते। इसलिए भद्रा रहित, प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा तिथि होलिका दहन के लिए उत्तम मानी जाती है। यदि भद्रा रहित प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा का अभाव हो लेकिन भद्रा मध्य रात्रि से पहले समाप्त हो रहा हो तब भद्रा समाप्त होने पर होलिका दहन करना चाहिए। अगर भद्रा रात्रि तक व्यापत है तो ऐसी स्थिति में भद्रा पूंछ के दौरान होलिका दहन किया जाता है।
होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan Muhurat):
होलिका दहन सोमवार, मार्च 9, 2020 को
होलिका दहन मुहूर्त – शाम 06:26 से 08:52 तक
अवधि – 02 घण्टे 26 मिनट्स
रंग वाली होली मंगलवार, मार्च 10, 2020 को
भद्रा पूँछ – सुबह 09:37 से 10:38 तक
भद्रा मुख – सुबह 10:38 से दोपहर 12:19 तक
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 09, 2020 को सुबह 03:03 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 09, 2020 को सुबह 11:17 बजे
होलिका दहन से पहले विधि विधान के साथ होलिका की पूजा करें। इस दौरान होलिका के सामने पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके पूजा करने का विधान है। पहले होलिका को आचमन से जल लेकर सांकेतिक रूप से स्नान के लिए जल अर्पण करें। इसके पश्चात कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना है। सूत के माध्यम से उन्हें वस्त्र अर्पण किये जाते हैं। फिर रोली, अक्षत, फूल, फूल माला, धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करें। पूजन के बाद लोटे में जल लेकर उसमें पुष्प, अक्षत, सुगन्ध मिला कर अघ् र्य दें। इस दौरान नई फसल के कुछ अंश जैसे पके चने और गेंहूं, जौं की बालियां भी होलिका को अर्पण करने का विधान है।
भद्रा के साए में होलिका दहन करना शुभ नहीं माना जाता है। लेकिन इस बार पर आप बिना किसी टेंशन के यह त्योहार मनाइए, क्योंकि इस बार होली पर भद्रा दोपहर से पहले ही खत्म हो जा रही है। होलिका दहन का शुभ समय इस बार शाम को 6 बजकर 32 मिनट से 6 बजकर 50 मिनट तक माना जा रहा है। इसी दौरान सर्वार्थ सिद्धि योग भी लगा हुआ है। इस समय में होलिका पूजन करने से आपके घर में साल भर समृद्धि बनी रहेगी।
होली के त्योहार की शुरुआत फाल्गुन पूर्णिमा के दिन से हो जाती है। इस दिन होलिका दहन किया जाता है और फिर अगले दिन यानी चैत्र कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि को रंग वाली होली खेली जाती है। हिंदी के नये संवत् की शुरुआत इस दिन से हो जाती है। कलर वाली होली के एक दिन पहले शाम के समय होलिका जलाई जाती है। कहा जाता है कि होलिका दहन की पवित्र अग्नि में व्यक्ति को अपनी बुरी आदतों की आहुति दे देनी चाहिए और एक नई शुरुआत करनी चाहिए। इसके अगले दिन सुबह से लेकर दोपहर तक रंग वाली होली खेली जाती है। लोग घर में तरह तरह के पकवान बनाते हैं। रंग खेलने के बाद स्नान कर शाम के समय एक दूसरे के घर जाकर होली की बधाई दी जाती है।
पंजाब के अमृतसर में होली से पूर्व जलायी गयी होलिका। इसके अलावा बिहार व झारखंड समेत देश के अन्य हिस्सों होलिका जलाई गई...
होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। होलिका दहन का ये त्यौहार भगवान के प्रति हमारी आस्था को मज़बूत बनाने के लिए प्रेरित करता है क्योंकि इसी दिन भगवान विष्णु ने अपने परम भक्त प्रह्लाद को बचाया था और उन्हें छल से मारने का जतन करने वाली होलिका को सबक सिखाया था। उसी समय से फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई। कई जगहों पर इस दिन को छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार अगजा के धूल से होली की शुरुआत होगी। होलिका दहन की पूजा और रक्षोघ्नन सूक्त की पाठ की जाएगी। अगजा की पांच बार परिक्रमा की जाएगी। इस दौरान तंत्र विद्या की साधनाएं भी की जाती हैं। अगजा जलाने के बाद सुबह में उसमें आलू, हरा चना पकाकर ओरहा खाया जाएगा। इस दौरान अगजा के समीप लोग सुमिरन गाएंगे। ...सुमिरो श्री भगवान अरे लाला केकरा सुमिरी सब कारज बनत हे...। फिर भजन गाते हुए दरवाजे-दरवाजे घूमेंगे। नए कपड़े पहन भगवान को रंग-अबीर चढ़ाएंगे। फिर गूंजने लगेंगे होली के ये पारंपरिक गीत बंगला में उड़त गुलाल बाबू कुंवर सिंह तेगवा बहादुर...। जल मरी। इसलिए होलिका दहन की परंपरा भी है।
होली की पूजा प्रदोषकाल यानी शाम को करने का विधान है। होलिका दहन पूर्णिमा तिथि पर होने से इस पर्व पर भद्रा काल का विचार किया जाता है। भद्रा काल में पूजा और होलिका दहन करने से रोग, शोक, दोष और विपत्ति आती है। लेकिन इस साल भद्रा काल दोपहर करीब 1:38 तक ही रहेगा। इसलिए शाम को होलिका पूजन और दहन किया जा सकता है।
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिये महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं। होलिका दहन के लिये लगभग एक महीने पहले से तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं। कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है।
होलिका दहन का एक और महत्व है, माना जाता है कि भुना हुआ धान्य या अनाज को संस्कृत में होलका कहते हैं, और कहा जाता है कि होली या होलिका शब्द, होलका यानी अनाज से लिया गया है। इन अनाज से हवन किया जाता है, फिर इसी अग्नि की राख को लोग अपने माथे पर लगाते हैं जिससे उन पर कोई बुरा साया ना पड़े। इस राख को भूमि हरि के रूप से भी जाना जाता है।
- होलिका दहन के शुभ मुहूर्त से पहले पूजन सामग्री के अलावा चार मालाएं अलग से रख लें.
- इनमें से एक माला पितरों की, दूसरी हनुमानजी की, तीसरी शीतला माता और चौथी घर परिवार के नाम की होती है.
- अब दहन से पूर्व श्रद्धापूर्वक होली के चारों ओर परिक्रमा करते हुए सूत के धागे को लपेटते हुए चलें.
- परिक्रमा तीन या सात बार करें.
- अब एक-एक कर सारी पूजन सामग्री होलिका में अर्पित करें.
- अब जल से अर्घ्य दें.
- अब घर के सदस्यों को तिलक लगाएं.
- इसके बाद होलिका में अग्लि लगाएं.
होलिका दहन में प्रत्येक परिवार से आधा किलो हवन सामग्री के साथ 50 ग्राम कपूर और 10 ग्राम सफेद इलायची मिलाकर होलिका में अवश्य डालें, जिससे प्रदूषित वातावरण शुद्ध होगा, कोरोना जैसे वायरस भी नष्ट हो सकेंगे। इसके बाद प्रतिदिन सुबह गाय के गोबर से बने कंडे को जला कर अपने इष्ट का 21 बार नाम लेकर आहुति देकर हवन अवश्य करें। ऐसा करने से कोरोना जैसे वायरस से बचाओ हो सकेगा।
एक लोटा जल, गोबर से बनीं होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज, गुजिया, मिठाई और फल.
होली हिन्दू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है और इसका धार्मिक महत्व भी बहुत ज्यादा है. होली से एक दिन पहले किए जाने वाले होलिका दहन की महत्ता भी सर्वाधिक है. होलिका दहन की अग्नि को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक माना जाता है. होलिका दहन की राख को लोग अपने शरीर और माथे पर लगाते हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से कोई बुरा साया आसपास भी नहीं फटकता है. होलिका दहन इस बात का भी प्रतीक है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो तो कोई बुराई आपको छू भी नहीं सकती. जैसे भक्त प्रह्लाद अपनी भक्ति और इच्छाशक्ति की वजह से अपने पिता की बुरी मंशा से हर बार बच निकले. होलिका दहन बताता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, वो अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती और उसे घुटने टेकने ही पड़ते हैं.
होली का उत्सव तो मथुरा, वृंदावन और बरसाने में ही देखने को मिलती है। बरसाने की विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली का आनंद ही अलग है। इसे देखने के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं। लट्ठमार होली में नंदगांव के ग्वाल-बाल गोपियों के साथ होली खेलते हैं और राधारानी के मंदिर में ध्वजारोहण करते हैं। गोपियां बरसाने में अबीर-गुलाल और लाठियों से ग्वाल-बाल का स्वागत करती हैं, वहीं ग्वाल-बाल अपनी सुरक्षा के लिए मजबूत ढाल लेकर आते हैं।
अबीर-गुलाल मिश्रित जल से होलिका पूजन करना चाहिए। इसके साथ होलिका में उपले और नए अनाज की बालियां अर्पित करनी चाहिए। होलिका दहन के बाद सुबह नए अनाज के दाने और मिष्ठान अर्पित कर पूजन करना चाहिए।
होली की रात्रि को सरसों के तेल का चौमुखी दीपक जलाकर पूजा करें व भगवान से सुख – समृद्धि की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से हर प्रकार की बाधा निवारण होती है।
यह त्योहार भारत के अलावा नेपाल में भी मनाया जाता है। होली के दिन दोपहर तक रंग खेलने का सिलसिला चलता है। इसके बाद स्नान कर विश्राम करने के बाद लोग शाम के समय एक दूसरे के घर जाकर गले मिलते हैं और मिठाइयां खिलाते हैं। यह लोकप्रिय पर्व वसंत का संदेशवाहक भी है। वसंत की ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा गया है। इतिहासकारों का मानना है कि आर्यों में भी इस पर्व का प्रचलन था लेकिन अधिकतर यह पूर्वी भारत में ही मनाया जाता था।
स्वास्थ्य लाभ हेतु होली वाले दिन जौ के आटे में काले तिल एवं सरसों का तेल मिलाकर मोटी रोटी बनाएँ और उसे रोगी के ऊपर से सात बार उतारकर भैंसे को खिला दें। यह क्रिया करते समय ईश्वर से रोगी को शीघ्र स्वस्थ्य करने की प्रार्थना करते रहें। आप शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करेंगे।
जिन जातकों की शादी नहीं हो रही है और विलंब हो रहा है तो होली के दिन शिव मंदिर में पूजा करें। इसके साथ ही शिवलिंग पर पान, सुपारी और हल्दी की गांठ भी अर्पित करें। शादी की परेशानियों से छुटकारा पाने के लिए होलिका दहन के दौरान पांच सुपारी, पांच इलायची, मेवे, हल्दी की गांठ और पीले चावल लें जाए और इसकी पूजा कर इसे घर में देवी के सामने रख दें। ऐसा करने से शादी में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती है और जल्द ही विवाह के योग बन जाते हैं।
अगर आप होलिका दहन करने की सोच रहे हैं तो इसके लिए आपको कुछ ख़ास चीज़ों की ज़रूरत होगी। जैसे, गोबर से बने बड़कुले, गोबर, गंगाजल या साफ़ पानी, पूजा में इस्तेमाल के लिए कुछ फूल-मालाएं, सूत, पांच तरह के अनाज, रोली-मौली, अक्षत, हल्दी, बताशे, रंग-गुलाल, फल-मिठाइयां।
होली के दिन सूर्यास्त के बाद होली नहीं खेलनी चाहिए। कुछ लोग इस बात को नज़रअंदाज़ कर के सूर्यास्त के बाद भी होली खेलते हैं जो की काफी अशुभ माना जाता है। ऐसे में करने से बचना चाहिए। सूर्यास्त के बाद होली मिलने भी नहीं जाना चाहिए।
राक्षसी पूतना के वध की कथा भी होली के इस पर्व से जोड़ी जाती है। कहते हैं जब कंस के लिये यह आकाशवाणी हुई कि गोकुल में उसे मारने वाले ने जन्म ले लिया है तो कंस ने उस दिन पैदा हुए सारे शीशुओं को मरवाने का निर्णय लिया। इस काम के लिये उसने पुतना राक्षसी को चुना। पुतना बच्चों को स्तनपान करवाती जिसके बाद वे मृत्यु को प्राप्त हो जाते लेकिन जब उसने श्री कृष्ण को मारने का प्रयास किया तो श्री कृष्ण ने पूतना का वध कर दिया। यह सब भी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन हुआ माना जाता है जिसकी खुशी में होली का पर्व मनाया जाता है।
नारद पुराण के अनुसार होलिका दहन के अगले दिन यानी रंग वाली होली के दिन प्रात: काल उठकर आवश्यक नित्यक्रिया से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं के लिए तर्पण-पूजन करना चाहिए। साथ ही सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर में लगाना चाहिए। घर के आंगन को गोबर से लीपकर उसमें एक चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा-अर्चना करनी चाहिए। ऐसा करने से आयु की वृ्द्धि, आरोग्य की प्राप्ति तथा समस्त इच्छाओं की पूर्ति होती है।
अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्तां पूजयिष्यामि भूति भूति प्रदायिनीम।
मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सभी प्रकार के दुखों का अंत हो जाता है और भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। व्रती को पूर्णिमा के दिन सूर्योदय से लेकर चंद्रोदय तक व्रत रखना चाहिए। फाल्गुनी पूर्णिमा पर कामवासना का दाह किया जाता है ताकि निष्काम प्रेम के भाव से प्रेम का रंगीला पर्व होली मनाया जा सके।
9 मार्च की सुबह 09:40 से दोपहर 12:25 तक भद्रा काल रहेगा, इस समय शुभ कार्य वर्जित है। होलिका दहन का मुहूर्त शाम 6:35 से रात 11:05 तक का है।
होली के खास मौके पर इस बार ग्रह-नक्षत्रों का बेहद खास संयोग बन रहा है। ऐसा संयोग 499 साल बाद बना है। भारतीय वैदिक पंचांग के अनुसार इस बार फाल्गुन पूर्णिमा सोमवार को है। इस दौरान गुरु बृहस्पति और शनि अपनी-अपनी राशियों में रहेंगे। जिसे सुख-समृद्धि और धन-वैभव के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है। देवगुरु धनु राशि में और शनि मकर राशि में रहेंगे। इससे पहले ग्रहों का यह संयोग 3 मार्च 1521 में बना था। गुरु बृहस्पति जहां ज्ञान, संतान, गुरु, धन-संपत्ती के प्रतिनिधि हैं तो वहीं शनि न्याय के देवता हैं।
होलिका दहन भद्रा के समय में नहीं करना चाहिए। भद्रा रहित मुहूर्त में ही होलिका दहन शुभ होता है। इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा एवं सूर्यास्त से पूर्व कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
अब होलिका पूजा के बाद जल से अर्घ्य दें। इसके बाद होलिका दहन मुहूर्त के अनुसार होलिका में अग्नि प्रज्वलित कर दें। होलिका के आग में गेंहू की बालियों को सेंक लें। बाद में उनको खा लें, इससे आप निरोग रहेंगे।
एक लोटा जल, चावल, गन्ध, पुष्प, माला, रोली, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल, गेंहू की बालियां आदि।