होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है। जिसके लिए विभिन्न सामग्रियों को पहले से ही एकत्रित कर लें। कहा जाता है कि होलिका दहन की अग्नि में मनुष्य को अपनी बुरी आदतों की आहुति दे देनी चाहिए। इस पर्व को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इसके अगले दिन खेली जाती है रंग वाली होली। जानिए होलिका दहन से पहले कैसे की जाती है होली की पूजा…
– पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उत्तर दिशा की तरफ मुख करके बैठना चाहिए।
– पूजा सामग्री: एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, फूल, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि। इसके अलावा नई फसल के धान्यों जैसे पके चने की बालियां व गेहूं की बालियां भी सामग्री के रूप में रखी जाती हैं।
– इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा खिलौने को रखा जाता है।
– जल, मौली, फूल, गुलाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर में लाकर सुरक्षित रख ली जाती हैं।
– इनमें एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमानजी के नाम की, तीसरी शीतलामाता के नाम की तथा चौथी अपने घर परिवार के नाम की होती है।
– इसके बाद कच्चे सूत्र लें उसे होलिका के चारों तरफ तीन या 7 परिक्रमा करते हुए लपेटे।
– इसके बाद लोटे में भरे हुए शुद्ध जल व अन्य सभी सामग्रियों को एक एक करते होलिका को समर्पित करें।
– इसके बाद गंध पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन करें। पूजन के बाद जल से अर्घ्य दें।
– होलिका दहन के बाद उसकी अग्नि में कच्चे आम, नारियल, भुट्टे, चीनी के खिलौने, नई फसल के कुछ भाग की आहुति दी जाती है। इसी के साथ गेहूं, उड़द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर भी जरूर अर्पित करें।
– होली की भस्म घर में लाकर रख लें। फिर अगले दिन यानी रंग वाली होली पर सुबह जल्दी उठकर पितरों के लिए तर्पण पूजन करना चाहिए। साथ ही सभी दोषों से मुक्ति पाने के लिए होलिका की विभूति की वंदना कर उसे अपने शरीर पर लगा लेना चाहिए।
– फिर घर के आंगन में चौकोर मण्डल बनाना चाहिए और उसे रंगीन अक्षतों से अलंकृत कर उसमें पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
Holi 2020 Date: 10 मार्च को खेली जायेगी रंग वाली होली, जानिए होलिका दहन का मुहूर्त
होलिका दहन मुहूर्त (Holika Dahan Time And Muhurat):
होलिका दहन सोमवार, मार्च 9, 2020 को
होलिका दहन मुहूर्त – शाम 06:26 से 08:52 तक
अवधि – 02 घण्टे 26 मिनट्स
रंग वाली होली मंगलवार, मार्च 10, 2020 को
भद्रा पूँछ – सुबह 09:37 से 10:38 तक
भद्रा मुख – सुबह 10:38 से दोपहर 12:19 तक
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – मार्च 09, 2020 को सुबह 03:03 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – मार्च 09, 2020 को सुबह 11:17 बजे

Highlights
होलिका दहन का एक और महत्व है, माना जाता है कि भुना हुआ धान्य या अनाज को संस्कृत में होलका कहते हैं, और कहा जाता है कि होली या होलिका शब्द, होलका यानी अनाज से लिया गया है। इन अनाज से हवन किया जाता है, फिर इसी अग्नि की राख को लोग अपने माथे पर लगाते हैं जिससे उन पर कोई बुरा साया ना पड़े। इस राख को भूमि हरि के रूप से भी जाना जाता है।
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिये महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं। होलिका दहन के लिये लगभग एक महीने पहले से तैयारियां शुरु कर दी जाती हैं। कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका का दहन किया जाता है।
होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण भारतीय त्योहार है। यह पर्व हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसी दिन से नववर्ष की शुरूआत भी हो जाती है। इसलिए होली पर्व नवसंवत और नववर्ष के आरंभ का प्रतीक है।
होलिका दहन भद्रा के समय में नहीं करना चाहिए। भद्रा रहित मुहूर्त में ही होलिका दहन शुभ होता है। इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा एवं सूर्यास्त से पूर्व कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
होली का वर्णन बहुत पहले से हमें देखने को मिलता है। प्राचीन विजयनगर साम्राज्य की राजधानी हम्पी में 16वीं शताब्दी का चित्र मिला है जिसमें होली के पर्व को उकेरा गया है। ऐसे ही विंध्य पर्वतों के निकट स्थित रामगढ़ में मिले एक ईसा से 300 वर्ष पुराने अभिलेख में भी इसका उल्लेख मिलता है। कुछ लोग मानते हैं कि इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था। इसी ख़ुशी में गोपियों ने उनके साथ होली खेली थी।
ज्योतिषाचार्य के अनुसार अगजा के धूल से होली की शुरुआत होगी। होलिका दहन की पूजा और रक्षोघ्नन सूक्त की पाठ की जाएगी। अगजा की पांच बार परिक्रमा की जाएगी। इस दौरान तंत्र विद्या की साधनाएं भी की जाती हैं। अगजा जलाने के बाद सुबह में उसमें आलू, हरा चना पकाकर ओरहा खाया जाएगा। इस दौरान अगजा के समीप लोग सुमिरन गाएंगे। ...सुमिरो श्री भगवान अरे लाला केकरा सुमिरी सब कारज बनत हे...। फिर भजन गाते हुए दरवाजे-दरवाजे घूमेंगे। नए कपड़े पहन भगवान को रंग-अबीर चढ़ाएंगे। फिर गूंजने लगेंगे होली के ये पारंपरिक गीत बंगला में उड़त गुलाल बाबू कुंवर सिंह तेगवा बहादुर...। जल मरी। इसलिए होलिका दहन की परंपरा भी है।
होली से आठ दिन पहले होलाष्टक की शुरुआत हो जाती है। इन आठ दिनों में किसी भी प्रकार का कोई शुभ काम करना वर्जित माना गया है। इसके अलावा इस दौरान किसी भी तरह का कोई धार्मिक संस्कार इत्यादि भी करने की मनाही होती है। अगर इस दौरान जन्म और मृत्यु से जुड़ा कोई काम करना हो तो उसके लिए भी पहले शांति पूजा का प्रावधान बताया गया है।
रंगवाली होली को राधा-कृष्ण के पावन प्रेम की याद में भी मनाया जाता है। कथानक के अनुसार एक बार बाल-गोपाल ने माता यशोदा से पूछा कि वे स्वयं राधा की तरह गोरे क्यों नहीं हैं। यशोदा ने मज़ाक़ में उनसे कहा कि राधा के चेहरे पर रंग मलने से राधाजी का रंग भी कन्हैया की ही तरह हो जाएगा। इसके बाद कान्हा ने राधा और गोपियों के साथ रंगों से होली खेली और तब से यह पर्व रंगों के त्योहार के रूप में मनाया जा रहा है।
एक लोटा जल, गोबर से बनीं होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज, गुजिया, मिठाई और फल.
=मेष और वृश्चिक राशि के लोग गुड़ की आहुति दें।
=वृष राशि वाले होलिका में चीनी की
=मिथुन और कन्या राशि के लोग कपूर की
=कर्क के लोग लोहबान की
=सिंह राशि के लोग गुड़ की
=तुला राशि वाले कपूर की
=धनु और मीन के लोग जौ और चना की
=मकर व कुंभ वाले तिल कr होलिका दहन में आहुति दें।
हालिका दहन से पूर्व होलिका की पूजा की जाती है। होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठें। अब सबसे पहले गणेश और गौरी जी की पूजा करें। फिर 'ओम होलिकायै नम:' से होलिका का, 'ओम प्रह्लादाय नम:' से भक्त प्रह्लाद का और 'ओम नृसिंहाय नम:' से भगवान नृसिंह की पूजा करें। इसके बाद बड़गुल्ले की 4 मालाएं लें, एक पितरों के नाम, एक हनुमान जी के लिए, एक शीतला माता के लिए और एक अपने परिवार की होलिका को समर्पित करें।
कश्यप ऋषि के पुत्र हिरण्यकश्यप ने अपनी तपस्या से ब्रह्म देव को प्रसन्न कर लिया था, जिसके परिणाम स्वरूप उसे कोई देवता, देवी, नर, नारी, असुर, यक्ष या कोई अन्य जीव नहीं मार पाएगा। इसके साथ ही उसे न ही अस्त्र से और न ही शस्त्र से, न दिन में, न रात में, न दोपहर में, न घर में, न बाहर, ना आकाश में और ना ही पाताल में मारा जा सकेगा। ब्रह्मा जी के इस वरदान से वह अहंकारी हो गया और खुद को भगवान समझने लगा। वह अपनी प्रजा पर स्वयं की पूजा करने के लिए विवश करने लगा। उन पर अनेक प्रकार के अत्याचार करता। हिरण्यकश्यप का एक पुत्र था प्रह्लाद। वह भगवान विष्णु का भक्त था। जब इस बात की जानकारी हिरण्यकश्यप को हुई, तो उसने अपने पुत्र को समझाने का प्रयास किया। उसने प्रह्लाद से विष्णु को छोड़कर उसकी पूजा करने को कहा। लेकिन प्रह्लाद कहां मानने वाले थे, वे भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहे। इस बात से नाराज हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को तरह तरह की यातनाएं दीं, लेकिन प्रह्लाद अपनी विष्णु भक्ति से तनिक भी विचलित न हुए। हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र को पहाड़ से नीचे धक्का देने और हाथी के पैरों के तले कुचलने का आदेश दिया, लेकिन हर बार भगवान विष्णु ने उनको बचा लिया।
अहकूटा भयत्रस्तै: कृता त्वं होलि बालिशै:
अतस्तां पूजयिष्यामि भूति भूति प्रदायिनीम।
होली के दिन ही मिथिलांचल में सप्ताडोरा की पूजा भी होती है। मां भगवती व कुलदेवता को सिंदूर आर्पण किया जाएगा। साथ ही 56 भोग लगाया जायेगा।
इस मंत्र का उच्चारण एक माला, तीन माला या फिर पांच माला विषम संख्या के रूप में करना चाहिए। अहकूटा भयत्रस्तै:कृता त्वं होलि बालिशै: अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीम:
नारद पुराण के अनुसार होलिका के अगले दिन यानी कि धुलंडी जिसे कि रंग वाली होली के नाम से जानते हैं। उस दिन प्रात:काल नित्य कर्मों से निवृत्त होकर पितरों और देवताओं का पूजन करें। सभी दोषों की शांति के लिए होलिका की राख की वंदना करके उसे अपने शरीर में लगा लें। साथ ही हो सके तो घर के आंगन में भी अक्षतों को अलग-अलग रंग के गुलाल से रंगकर पूजन-अर्चन करें। इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करें। सभी पितरों को नमन करें। साथ ही ईश्वर से प्रार्थना करें कि वह आपके जीवन में घर-परिवार और समाज में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद दें।
यदि राहु को लेकर कोई परेशानी है तो एक नारियल का गोला लेकर उसमें अलसी का तेल भरें तथा उसी में थोडा सा गुड डालें, फिर उस गोले को अपने शरीर के अंगों से स्पर्श कराकर जलती हुई होलिका में डाल दें। इस उपाय से आगामी पूरे वर्ष भर राहू परेशान नहीं करेगा।
होली पर करियर और धन संपत्ति के कारक माने जाने वाले देवताओं के गुरु बृहस्पति और न्याय के देवता शनि अपनी-अपनी राशियों में रहेंगे। जिसे सुख-समृद्धि और धन-वैभव के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है। देवगुरु धनु राशि में और शनि मकर राशि में रहेंगे। इससे पहले ग्रहों का यह संयोग 3 मार्च 1521 में बना था।
ऐसा माना जाता है कि नवविवाहितों को होली जलते हुए नहीं देखनी चाहिए क्योंकि ऐसा करना शुभ नहीं माना गया है। इसके अलावा सास-बहू को भी साथ में होली जलते हुए नहीं देखनी चाहिए। होली के दिन ना ही किसी को धन दें ना ही किसी से धन लें। मान्यता है कि ऐसा करने से माँ लक्ष्मी रूठ जाती हैं।
कुछ स्थानों जैसे की मध्यप्रदेश के मालवा में होली के पांचवें दिन रंगपंचमी मनाई जाती है, जो मुख्य होली से भी अधिक ज़ोर-शोर से खेली जाती है। इस दिन होली पर्व का समापन हो जाता है। यह पर्व सबसे ज़्यादा धूम-धाम से ब्रज क्षेत्र में मनाया जाता है। ख़ास तौर पर बरसाना की लट्ठमार होली काफी प्रसिद्ध है। मथुरा और वृन्दावन में भी 15 दिनों तक होली का उत्सव मनाया जाता है। महाराष्ट्र में रंग पंचमी के दिन सूखे गुलाल से खेलने की परंपरा है। दक्षिण गुजरात के आदि-वासियों के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ में लोक-गीतों का बहुत प्रचलन है और मालवांचल में भगोरिया मनाया जाता है।
इस बार होलिका दहन (holika dahan) अच्छे योग में होने जा रहे हैं। अक्सर होलिका वाले दिन दहन के समय भद्रा होने से बड़ी मुहूर्त में परेशानी रहती थी। परंतु इस बार ऐसा नहीं हो रहा है बल्कि इस बार भद्रा रहित, ध्वज एवं गज केसरी योग बन रहा है। त्रिपुष्कर योग 10 मार्च को रहेगा। इस योग में भवन, वाहन, सोना-चांदी के आभूषण या कोई कीमती वस्तु का सुख प्राप्त हो सकता है। ज्योतिष के अनुसार इस योग में किया गया कार्य तीन बार होता है और वस्तु का लाभ भी तिगुना मिलता है। इसके अलावा इस बार होली पर गज केसरी योग भी बन रहा है। गज यानि हाथी, केसरी यानि शेर, हाथी और शेर का संबंध यानि राजसी सुख।
आज के अशुभ मुहूर्त (Today Ashubh Muhurat): राहुकाल- 08:06 ए एम से 09:34 ए एम, गुलिक काल- 02:00 पी एम से 03:29 पी एम, यमगण्ड- 11:03 ए एम से 12:32 पी एम, दुर्मुहूर्त – 12:55 पी एम से 01:43 पी एम, दूसरा दुर्मुहूर्त – 03:17 पी एम से 04:04 पी एम, वर्ज्य – 11:09 ए एम से 12:33 पी एम, भद्रा – 06:37 ए एम से 01:11 पी एम।
होलिका दहन सोमवार, मार्च 9, 2020 को
होलिका दहन मुहूर्त - शाम 06:26 से 08:52 तक
अवधि - 02 घण्टे 26 मिनट्स
रंग वाली होली मंगलवार, मार्च 10, 2020 को
भद्रा पूँछ - सुबह 09:37 से 10:38 तक
भद्रा मुख - सुबह 10:38 से दोपहर 12:19 तक
होलिका दहन प्रदोष के दौरान उदय व्यापिनी पूर्णिमा के साथ
पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ - मार्च 09, 2020 को सुबह 03:03 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त - मार्च 09, 2020 को सुबह 11:17 बजे
नारद पुराण के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा की कथा राक्षस हरिण्यकश्यपु और उसकी बहन होलिका से जुड़ी हुई है। कथा के मुताबिक हरिण्यकश्यपु के कहने पर होलिका प्रह्लाद को आग में जलाने के लिए उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। कहते हैं कि होलिका को यह वरदान मिला था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती है। लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रखा की और उसे आग में जलने से बचा लिया। वहीं होलिका अग्नि में जलकर खाक हो गई। मान्यता है बुराई पर अच्छाई की इस जीत के प्रतीक के तौर पर फाल्गुन पूर्णिमा के दिन होलिका दहन किया जाता है।
आज सूर्य और बुध एक ही राशि में होकर बुधादित्य योग बना रहे हैं। गुरु और शनि भी अपनी-अपनी राशि में हैं। तिथि-नक्षत्र और ग्रहों की इस विशेष स्थिति में होलिका दहन पर रोग, शोक और दोष का नाश तो होगा ही, शत्रुओं पर भी विजय मिलेगी। इसके साथ ही धुलेंडी पर 10 मार्च को त्रिपुष्कर योग बनेगा।
घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति आदि के लिए महिलाएं इस दिन होली की पूजा करती हैं। होलिका दहन के लिए लगभग एक महीने पहले से ही तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। कांटेदार झाड़ियों या लकड़ियों को इकट्ठा किया जाता है, फिर होली वाले दिन शुभ मुहूर्त में होलिका दहन किया जाता है। होलिका दहन में जौ और गेहूं के पौधे डाले जाते हैं। शरीर में उबटन लगाकर उसके अंश भी डाले जाते हैं। ऐसा करने से जीवन में आरोग्य और सुख समृद्धि आती है।
हालिका दहन से पूर्व होलिका की पूजा की जाती है। होलिका के पास पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठें। अब सबसे पहले गणेश और गौरी जी की पूजा करें। फिर 'ओम होलिकायै नम:' से होलिका का, 'ओम प्रह्लादाय नम:' से भक्त प्रह्लाद का और 'ओम नृसिंहाय नम:' से भगवान नृसिंह की पूजा करें। इसके बाद बड़गुल्ले की 4 मालाएं लें, एक पितरों के नाम, एक हनुमान जी के लिए, एक शीतला माता के लिए और एक अपने परिवार की होलिका को समर्पित करें। अब होलिका की तीन या सात बार परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेट दें। इसके बाद लोटे का जल तथा अन्य पूजा सामग्री होलिका को समर्पित कर दें। धूप, गंध, पुष्प आदि से होलिका की पूजा करें। फिर अपनी मनोकामनाएं कह दें और गलतियों की क्षमा मांग लें।
एक लोटा जल, गोबर से बनीं होलिका और प्रह्लाद की प्रतिमाएं, माला, रोली, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड़, साबुत हल्दी, मूंग, गुलाल, नारियल, पांच प्रकार के अनाज, गुजिया, मिठाई और फल.
फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाएगा। फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 09 मार्च दिन सोमवार को प्रात:काल 03:03 बजे हो रहा है और समापन उसी रात 11:17 बजे होगा। होलिका दहन के लिए मुहूर्त शाम के समय 06:26 बजे से रात 08:52 बजे तक है। इस मुहूर्त में होलिका दहन करना शुभदायी होगा।
कच्चे सूत को होलिका के चारों और तीन या सात परिक्रमा करते हुए लपेटना होता है। फिर लोटे का शुद्ध जल व अन्य पूजन की सभी वस्तुओं को एक-एक करके होलिका को समर्पित किया जाता है। रोली, अक्षत व पुष्प को भी पूजन में प्रयोग किया जाता है। गंध- पुष्प का प्रयोग करते हुए पंचोपचार विधि से होलिका का पूजन किया जाता है। पूजन के बाद जल से अर्ध्य दिया जाता है।
होलिका दहन मुहुर्त समय में जल, मोली, फूल, गुलाल तथा गुड आदि से होलिका का पूजन करना चाहिए। गोबर से बनाई गई ढाल व खिलौनों की चार मालाएं अलग से घर लाकर सुरक्षित रख ली जाती है। इसमें से एक माला पितरों के नाम की, दूसरी हनुमान जी के नाम की, तीसरी शीतला माता के नाम की तथा चौथी अपने घर- परिवार के नाम की होती है।
होलिका दहन करने से पहले होली की पूजा की जाती है. इस पूजा को करते समय, पूजा करने वाले व्यक्ति को होलिका के पास जाकर पूर्व या उतर दिशा की ओर मुख करके बैठना चाहिए। पूजा करने के लिये निम्न सामग्री को प्रयोग करना चाहिए। एक लोटा जल, माला, रोली, चावल, गंध, पुष्प, कच्चा सूत, गुड, साबुत हल्दी, मूंग, बताशे, गुलाल, नारियल आदि का प्रयोग करना चाहिए. इसके अतिरिक्त नई फसल के धान्यों जैसे- पके चने की बालियां व गेंहूं की बालियां भी सामग्री के रुप में रखी जाती है। इसके बाद होलिका के पास गोबर से बनी ढाल तथा अन्य खिलौने रख दिये जाते है।
होली फाल्गुन के महीने में आने वाले इस त्यौहार का हर किसी को इन्तजार रहता है और हो भी क्यों ना…भई हमारे देश का सबसे मुख्य पर्व यही तो है। होली के पर्व को सबसे ज्यादा हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, रंगबिरंगे गुलाल और पिचकारी की रंगीन धार के संग सारे दुःख और गीले शिकवे भुला दिए जाते हैं।
होलिका की अग्नि की लौ का पूर्व दिशा ओर उठना कल्याणकारी होता है, दक्षिण की ओर पशु पीड़ा, पश्चिम की ओर सामान्य और उत्तर की ओर लौ उठने से बारिश होने की संभावना रहती है।
होलिका पूजा के बाद जल से अर्घ्य दें। इसके बाद होलिका दहन मुहूर्त के अनुसार होलिका में अग्नि प्रज्वलित कर दें। होलिका के आग में गेंहू की बालियों को सेंक लें। बाद में उनको खा लें, इससे आप निरोग रहेंगे।
होलिका दहन की राख को लोग अपने शरीर और माथे पर लगाते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से कोई बुरा साया आसपास भी नहीं फटकता है। होलिका दहन इस बात का भी प्रतीक है कि अगर मजबूत इच्छाशक्ति हो तो कोई बुराई आपको छू भी नहीं सकती। जैसे भक्त प्रह्लाद अपनी भक्ति और इच्छाशक्ति की वजह से अपने पिता की बुरी मंशा से हर बार बच निकले। होलिका दहन बताता है कि बुराई कितनी भी ताकतवर क्यों न हो, वो अच्छाई के सामने टिक नहीं सकती और उसे घुटने टेकने ही पड़ते हैं।
होलिका पूजा के बाद जल से अर्घ्य दें। इसके बाद होलिका दहन मुहूर्त के अनुसार होलिका में अग्नि प्रज्वलित कर दें। होलिका के आग में गेंहू की बालियों को सेंक लें। बाद में उनको खा लें, इससे आप निरोग रहेंगे।
स्वराशि स्थित बृहस्पति की दृष्टि चंद्रमा पर रहेगी। जिससे गजकेसरी योग का प्रभाव रहेगा। तिथि-नक्षत्र और ग्रहों की विशेष स्थिति में होलिका दहन पर रोग, शोक और दोष का नाश तो होगा ही, शत्रुओं पर भी विजय मिलेगी।
होलिका दहन भद्रा के समय में नहीं करना चाहिए। भद्रा रहित मुहूर्त में ही होलिका दहन शुभ होता है। इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा एवं सूर्यास्त से पूर्व कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए।
होलिका दहने के दिन लोग लकड़ियो तथा उपलो की होलिका बनाकर उसे जलाते हैं और ईश्वर से अपनी इच्छापूर्ति को लेकर प्रर्थना करते हैं। यह दिन हमें इस बात का विश्वास दिलाता है कि यदि हम सच्चे मन से ईश्वर की भक्ति करेंगे तो वह हमारी प्रार्थनाओं को अवश्य सुनेंगे और भक्त प्रहलाद की तरह अपने सभी भक्तों कीहो हर तरह के संकटों से रक्षा करेंगे।