आज देश भर में शिक्षक दिवस मनाया जा रहा है। शिक्षक किसी भी व्यक्ति के जीवन का अहम हिस्सा होता है जो व्यक्ति को सही दिशा देने का कार्य करता है। भारत में कई ऐसे गुरु रहे हैं जिनकी दी हुई शिक्षा ने उनके शिष्यों के जीवन को सफल बना दिया। इन्हीं प्रसिद्ध गुरुओं में से एक गुरु थे आचार्य चाणक्य। जिनके शिष्य बने चंद्रगुप्त मौर्य। गुरु शिष्य की इस जोड़ी ने भारत में इतिहास रच दिया। ये चाणक्य की नीतियां ही थीं जिनके दम पर चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट की गद्दी मिल सकी। टीचर्स डे के इस मौके पर जानिए चाणक्य के क्या थे शिक्षकों के लेकर विचार…
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1. कोई भी शिक्षक कभी साधारण नही होता प्रलय और निर्माण उसकी गोद में पलते हैं।
2. जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति।
अन्नदाता भयत्राता पञ्चैते पितरः स्मृता।।
जन्म देने वाला, आध्यात्मिकता से परिचय कराने वाला, विद्या देने वाला, अन्न देने वाला तथा भय से मुक्ति देने वाला ये पांच व्यक्ति पितर माने गए हैं।
3. एकमेवाक्षरं यस्तु गुरुः शिष्यं प्रबोधयेत् ।
पृथिव्यां नास्ति तद्द्रव्यं यद् दत्त्वा चाऽनृणी भवेत् ॥
जो गुरु शिष्य को एक अक्षर का भी ज्ञान देता है, उसके ऋण से मुक्त होने के लिए, उसे देने योग्य पृथ्वी में कोई पदार्थ नहीं है।
जब भी भारत के महान शिक्षकों की चर्चा होती है तो उसमें चाणक्य का नाम जरूर लिया जाता है। चाणक्य अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान और महान शिक्षक थे। वे तक्षशिला युनिवर्सिटी में पढ़े थे और वहीं शिक्षक भी बने। लेकिन उनकी हमेशा से रूचि राजनीति में थी। उनके समय में गुरुकुल व्यवस्था थी और गुरु-शिष्य की परंपरा का निर्वहन किया जाता था। मगध साम्राज्य से अपमान का बदला लेने के लिए चाणक्य ने अपने एक शिष्य को इस तरीके से तैयार किया कि उनके उस शिष्य ने आगे चलकर प्राचीन भारत के एक महान साम्राज्य की नींव रखी। चाणक्य का वह शिष्य था चन्द्रगुप्त मौर्य। जिसने चाणक्य के दिशा निर्देश पर नंद वंश का नाश कर राजा की गद्दी हासिल कर ली। चाणक्य ऐसे प्राचीन शिक्षक हैं जिनकी नीतियां आज भी प्रासंगिक बनी हुई हैं।
