महाराष्ट्र का सबसे बड़ा उत्सव गणेशोत्सव आज से शुरु हो चुका है। वैसे तो गणेश चतुर्थी का पर्व भारत के कई इलाकों में मनाया जाता है लेकिन इसकी खास रौनक महाराष्ट्र में देखने को मिलती है। इस दिन लोग अपने घरों में भगवान गणेश की मूर्ति की स्थापना करते हैं और उसकी 9 दिनों तक विधि विधान पूजा के बाद दशवें दिन उस मूर्ति का विसर्जन कर दिया जाता है। गणपति की कथा (Ganpati Katha) , गणेश जी (Ganesh Ji ki Aarti) की आरती समेत तमाम पूजन विधि से विनायक को प्रसन्न किया जाता है। साल 2019 में विसर्जन की तारीख 12 सितंबर है। आपको बता दें कि माना जाता है कि भगवान गणेश का जन्म भादो मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था।
गणेश चतुर्थी व्रत कथा पढ़ें यहां
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा… बप्पा को खुश करें इस आरती से
प्रथम पूज्य देवता भगवान गणेश को मंगल मूर्ति भी कहा जाता है क्योंकि इनके शरीर के सभी अंग जीवन को सही दिशा देने की सीख देते हैं। जैसे छोटी आंखें एकाग्रता और सूक्ष्म दृष्टि का प्रतीक, बड़े कान बेहतरीन श्रवण शक्ति का प्रतीक, चौड़ा माथा बुद्धिमत्ता का प्रतीक, कुल्हाड़ी सभी प्रकार के बंधनों से मुक्ति का प्रतीक, छोटा मुंह कम बोलने का प्रतीक, लंबी सूंड कार्यकुशलता का प्रतीक, बड़ा पेट सब कुछ स्वीकारने का प्रतीक, रस्सी सदैव अनुशासित रहने का प्रतीक, लड्डू खुशियों का प्रतीक, चूहे की सवारी विकारों पर सवारी करने का प्रतीक, एक दाँत बुरी चीजों को त्याग अच्छी चीजों को बनाए रखने का प्रतीक।
भगवान गणेश के अंगों से जुड़ी दिलचस्प और रोचक बातें विस्तार से जानने के लिए लगातार बने रहें इस ब्लॉग पर…


कुल्हाड़ी - भगवान गणेश के हाथों में कुल्हाड़ी दर्शाती है कि वह सभी प्रकार के बंधनों से मुक्त हैं। कुल्हाड़ी हमें ये प्रेरणा देती है कि हमें सांसारिक बंधनों की असत्य डोरियों को काटकर एकमात्र सत्य ईश्वर की और अग्रसर होने का प्रयत्न करना चाहिए।
प्रसाद - गणेश जी सामने रखा हुआ प्रसाद ये संकेत देता है कि सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड आपके कदमों में है और आपके आदेश की प्रतीक्षा कर रहा है।
एक दंत - भगवान गणेश का बाल्यकाल में परशुराम जी से युद्घ हुआ था। जिसमें परशुराम ने भगवान गणेश का एक दांत काट दिया। उस समय से ही गणेश जी एकदंत कहलाने लगे। गणेश जी ने अपने टूटे हुए दांत को लेखनी बनाकर पूरा महाभारत ग्रंथ लिख डाला। यह गणेश जी की बुद्घिमत्ता का परिचय है। गणेश जी के टूटे हुए दांत से यह सीख मिलती है कि चीजों का सदुपयोग किस प्रकार से करना चाहिए।
छोटा मुंह - गणेश जी का छोटा मुंह कम बोलने का प्रतीक माना जाता है। कम बोलने से तात्पर्य है कि जितनी आवश्यकता हो उतना ही बोलना चाहिए अधिक नहीं।
सूंड - गणेश जी की सूंड का काफी महत्व होता है। मान्यता है कि सूंड के संचालन से ही भगवान अपने भक्तों के दुख और कष्ट दूर करते हैं। साथ ही गणेश जी की सूंड हमेशा हिलती डुलती रहती है जो उनके हर पल सक्रिय रहने का संकेत देती है।
वाहन मूषक - चूहा भगवान गणेश का वाहन माना जाता है जो यह दर्शाता है कि वह अपनी सभी इच्छाओं पर निपुणता रखते है। इसी प्रकार, मनुष्यों को भी अपनी इच्छाओं पर सवारी करनी चाहिए।
गणेश जी के इस नाम के पीछे एक रोचक कहानी है। एक बार इंद्र के साथ लड़ने से गणेश जी को बहुत ज्यादा भूख और प्यास लगी। भूख मिटाने के लिए उन्होंने काफी फल खा लिए और खूब सारा गंगाजल पी लिया। इस तरह उनका पेट काफी बढ़ गया जिस कारण उन्हें लंबोदर के नाम से पुकारा जाने लगा। साथ ही गणेश जी के लंबे पेट को लेकर माना जाता है कि वह अपने इस विशालकाय पेट में अच्छी और बुरी हर बात को पचा लेते हैं। ये भी मान्यता है कि उनके पेट में सभी प्रकार की विद्याएं समाहित है।
लंबे कान - गणेश जी के कान सूप जैसे बड़े हैं जिस कारण इन्हें गजकर्ण तथा सूपकर्ण भी कहा जाता है। लंबे कान सौभाग्य के सूचक माने जाते हैं। गणेश भगवान के बड़े कान को लेकर मान्यता है कि वे सभी भक्तों की प्रार्थना सुनते हैं और फिर उनकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
छोटी आंखें - गणेश जी की आंखें काफी छोटी है। माना जाता है कि छोटी आंखें व्यक्ति के चिंतनशील और गंभीर स्वभाव को दर्शाती हैं। इनकी आंखें यह ज्ञान देती हैं कि हर चीज को सूक्ष्मता से देख-परख कर ही कोई भी निर्णय लेना चाहिए।
बड़ा मस्तक - गणेश जी का माथा काफी बड़ा है। अंग विज्ञान के अनुसार जिन लोगों का मस्तिष्क बड़ा होता है ऐसे लोग बुद्धिमान और उनकी नेतृत्व क्षमता अच्छी होती है। इससे ये सीख मिलती है कि हमेशा व्यक्ति को अपनी सोच बड़ी रखनी चाहिए।
रस्सी - गणेश जी के बांये हाथ की रस्सी स्वयं अनुशासित रहने और अपने जीवन के चरम लक्ष्य की ओर खींच कर ले जाने का संकेत देती है और यह लक्ष्य है स्वयं श्री गणेश।