विभिन्न स्वरूपों को समर्पित आषाढ़ शुक्ल की पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। इस दिन प्रत्येक व्यक्ति विशेष द्वारा अपने गुरु की पूजा का विधान होता है। ब्रज क्षेत्र में गुरु पूर्णिमा के पर्व को ‘मुड़िया पूनौ’ के रूप में मनाया जाता है। इस दिन बड़ी संख्या में, देश के विभिन्न अंचलों से भक्तगण एक बहुत बड़ी संख्या में यहां पहुंचते हैं। ब्रज में गुरु पूर्णिमा पर्व का यह नाम क्यों पड़ा, इसके पीछे भी एक कहानी है। चैतन्य महाप्रभु के संप्रदाय के शिष्य आचार्य सनातन गोस्वामी का निधन हो जाने पश्चात उनके शिष्यों ने शोक में अपने सिर मुड़वाकर कीर्तन करते हुए मानसी गंगा की परिक्रमा की थी।
मुडे हुए सिरों के कारण शिष्य साधुओं को ‘मुड़िया’ कहा गया और चूंकि उस दिन गुरु पूर्णिमा का दिन था, इसलिए इसे ‘मुड़िया पूनौ’ कहा जाने लगा। सनातन गोस्वामी और उनके भाई रूप गोस्वामी गौड़ देश यानी प्राचीन बंगाल के शासक हुसैन शाह के दरबार में मंत्री थे। चैतन्य महाप्रभु के सिद्धांतों से प्रभावित होकर वे दोनों मंत्री पद छोड़कर महाप्रभु के आदेश पर वृंदावन आ गए थे और यहां उन्होंने चैतन्य महाप्रभु से दीक्षा प्राप्त की और उनके शिष्य बन गए। चैतन्य महाप्रभु ने उन्हें यह आदेश दिया कि वे श्रीकृष्ण के समय के तीर्थ स्थलों की खोज करें और उनके प्राचीन स्वरूप को प्रदान करें। साथ ही, श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रचार-प्रसार करें।
महाप्रभु के आदेशानुसार दोनों भाइयों ने ब्रज का विस्तृत भ्रमण कर भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थलियों की खोज करके उन्हें पुनर्जीवित किया। सनातन गोस्वामी के निधन पर उनके शिष्यों ने सिर मुड़वाकर चकलेश्वर मंदिर से शोभायात्रा निकाली। उसी परंपरा का पालन आज भी उनके शिष्यों व अनुयायियों द्वारा प्रत्येक वर्ष किया जाता है। अब यह विशाल मेले का रूप ले चुका है।
इस दिन यहां मंदिर के सामने मौजूद सनातन गोस्वामी की समाधि स्थल पर अधिवास व संकीर्तन का आयोजन किया जाता है। इसके पश्चात शाम को एक शोभायात्रा निकाली जाती है। इसी दिन, एक अन्य शोभायात्रा सुबह राधा-श्याम सुंदर मंदिर से भी निकाली जाती है। इस मौके पर ब्रज क्षेत्र में हर मंदिर और आश्रम में लोग अपने-अपने गुरु की पूजा-अर्चना करने पहुंचते हैं।
जगह-जगह भंडारे लगते हैं, जहां श्रद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं और पूर्ण भक्ति भाव और आस्था के साथ अपने-अपने गुरु से आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। कुछ लोग इस दिन को पवित्र मानकर अपने जीवन को सफल व पूर्व जन्म के कर्मफलों को सुधारने व भगवत प्राप्ति का मार्ग पाने के लिए गुरु बनाते है। गुरु को उपहारस्वरूप फल, वस्त्र आदि भेंट करते हैं।
राजकीय लक्खी मेले को देखते हुए जिला प्रशासन प्रत्येक वर्ष श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को लेकर विशेष व्यवस्था करता है। संपूर्ण मेला क्षेत्र को विभिन्न भागों में बांटकर पेयजल, सफाई, शुद्ध खाद्य पदार्थ, विद्युत व्यवस्था, सुरक्षा व्यवस्था, दुग्ध आपूर्ति, यातायात व्यवस्था का व्यापक इंतजाम जिला प्रशासन करता है। पूरे मेले क्षेत्र में पुलिस की चौकसी तथा वाच टावर, सीसीटीवी के माध्यम से नियंत्रण की व्यवस्था की जाती है। प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी मुड़िया पूर्णिमा मेले में बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के यहां पहुंचने की संभावना है। अनुमान है कि इस बार एक करोड़ श्रद्धालु गिरिराज महाराज की परिक्रमा करेंगे।