Ganga Dussehra Date: गंगा दशहरा का पर्व इस बार 1 जून को मनाया जायेगा। मान्यता है कि इस दिन गंगा नदी में स्नान-ध्यान करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिल जाती है। लेकिन इस बार कोरोना महामारी के संकट की वजह से श्रद्धालु गंगा नदी में आस्था की डुबकी नहीं लगा पाएंगे। ऐसे में आपको घर पर रहकर ही ये पर्व मनाना होगा। माना जाता है कि इस दिन मा गंगा का आगमन धरती पर हुआ था।

पूजा विधि: गंगा दशहरा के दिन गंगाजल से स्नान करना श्रेयस्कर होता है। लेकिन इस बार घर पर रहकर ही आपको यह पर्व मनाना होगा। इसके लिए नहाने के पानी में थोड़ा गंगाजल मिलाकर स्नान करें। इसके बाद सूर्य को अर्घ्य दें। फिर ॐ श्री गंगे नमः मंत्र का उच्चारण करते हुए मां गंगे का ध्यान कर अर्घ्य दें। मां गंगा की पूजा करने के बाद गरीबों और जरूरतमंदों को दान-दक्षिणा जरूर दें।

इन दस प्रकार के पापों का हरण करती है मां गंगा: शास्त्रों के अनुसार गंगा दशहरा के इस पावन दिन गंगा जी में स्नान-ध्यान एवं पूजन-उपवास करने से व्यक्ति दस प्रकार के पापों से छूट जाता है। इनमें तीन प्रकार के दैहिक, चार वाणी के द्वारा किए हुए पाप एवं तीन मानसिक पाप शामिल है। गंगा में स्नान करते समय ”ॐ नमो गंगायै विश्वरूपिण्यै नारायण्यै नमो नमः” मंत्र का स्मरण करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन दान स्वरूप दस वस्तुओं का दान देना कल्याणकारी माना गया है।

ऐसे धरती पर आईं माँ गंगा: पदमपुराण के अनुसार आदिकाल में ब्रह्माजी ने सृष्टि की ‘मूलप्रकृति’ से कहा-”हे देवी! तुम समस्त लोकों का आदिकारण बनो, मैं तुमसे ही संसार की सृष्टि प्रारंभ करूँगा”। ब्रह्मा जी के कहने पर मूलप्रकृति-गायत्री, सरस्वती, लक्ष्मी, उमादेवी, शक्तिबीजा, तपस्विनी और धर्मद्रवा इन सात स्वरूपों में प्रकट हुईं। इनमें से सातवीं ‘पराप्रकृति धर्मद्रवा’ को सभी धर्मों में प्रतिष्ठित जानकार ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डलु में धारण कर लिया।

राजा बलि के यज्ञ के समय वामन अवतार लिए जब भगवान विष्णु का एक पग आकाश एवं ब्रह्माण्ड को भेदकर ब्रह्मा जी के सामने स्थित हुआ, उस समय अपने कमण्डलु के जल से ब्रह्माजी ने श्री विष्णु के चरण का पूजन किया। चरण धोते समय श्री विष्णु का चरणोदक हेमकूट पर्वत पर गिरा। वहां से भगवान शिव के पास पहुंचकर यह जल गंगा के रूप में उनकी जटाओं में समा गया। गंगा बहुत काल तक शिव की जटाओं में भ्रमण करती रहीं। तत्पश्चात सूर्यवंशी राजा भगीरथ ने अपने पूर्वज सगर के साठ हज़ार पुत्रों का उद्धार करने के लिए शिवजी की घोर तपस्या की। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर गंगा को पृथ्वी पर उतार दिया। उस समय गंगाजी तीन धाराओं में प्रकट होकर तीनों लोकों में चली गयीं और संसार में त्रिस्रोता के नाम से विख्यात हुईं।