आज पूरे देश में भगवान गणेश का जन्मोत्सव मनाया जा रहा है। लोग ढोल-नगाड़ों के साथ गणपति बप्पा का स्वागत कर रहे हैं। उमंग से भरे इस त्यौहार की खास रौनक महाराष्ट्र में देखने को मिलती है। मान्यता है कि बप्पा की मूर्ति स्थापना कर विधि विधान पूजा करने से व्यक्ति के समस्त दुखों का अंत हो जाता है। गणेश चतुर्थी के दिन बहुत से लोग व्रत रख श्री गणेश की पूजा करते हैं और इस व्रत कथा को जरूर पड़ते हैं…
एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थे। वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड़ खेलने को कहा। अपनी पत्नी के आग्रह पर भगवान शंकर चौपड़ खेलने के लिये तैयार हो गये। परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा? इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बनाया, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी। और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड़ खेलना चाहते है। परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है। इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता।
यह कहने के बाद चौपड़ का खेल शुरु हो गया। खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई। खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया। यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगड़ा होने व कीचड़ में पडे़ रहने का श्राप दे दिया। बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऐसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऐसा नहीं किया। बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगे, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई।
ठीक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं। नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालूम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया। उसकी श्रद्धा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए। और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा। बालक ने कहा की है विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों।
यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई। यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई। माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डुओं से श्री गणेश जी का पूजन किया। व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिले। उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है।
पूजन का शुभ मुहू्र्त – 2 सितंबर दिन सोमवार को मनाई जाएगी गणेश चतुर्थी। इस दिन पूजन का शुभ मूहर्त दोपहर 11 बजकर 4 मिनट से 1 बजकर 37 मिनट तक रहेगा। इसकी कुल अवधि दो घंटे 32 मिनट की होगी।