Sankashti Chaturthi May 2021: हिंदू धर्म में संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व माना जाता है। संकष्टी चतुर्थी यानी संकट को हरने वाली चतुर्थी। शास्त्रों के अनुसार चतुर्थी तिथि भगवान श्रीगणेश को समर्पित होती है। इस दिन कई लोग व्रत रख भगवान गणेश जी की पूजा अर्चना करते हैं। पंचांग अनुसार हर महीने संकष्टी चतुर्थी व्रत आता है लेकिन ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकदंत संकष्टी चतुर्थी का विशेष महत्व माना जाता है जो इस बार 29 मई को है। मान्यता है कि इस दिन श्रीगणेश की पूजा करने से सभी संकट दूर हो जाते हैं। जानिए पूजा विधि, महत्व, कथा और सभी जरूरी जानकारी…
संकष्टी चतुर्थी का मुहूर्त और चंद्रोदय समय: ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 29 मई शनिवार प्रात: 06 बजकर 33 मिनट से हो रहा है। इसका समापन 30 मई रविवार प्रात: 04 बजकर 03 मिनट पर होगा। संकष्टी चतुर्थी व्रत में चंद्रमा के दर्शन जरूरी होते हैं। आपको बता दें कि चंद्रोदय 29 मई की रात 10:34 पी एम पर होगा।
महत्व: मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने से व्यक्ति के सभी कष्ट और पाप नष्ट हो जाते हैं। श्री गणेश जी की कृपा से मनुष्य को जीवन में धन, सुख और समृद्धि प्राप्त होती है। कई लोग संतान की प्राप्ति के लिए भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखते हैं।
संकष्टी चतुर्थी की पूजा विधि:
-सबसे पहले सुबह जल्दी उठें और स्नान करें। इस दिन लाल रंग के वस्त्र पहनें।
-फिर गणपति की मूर्ति को फूलों से सजा लें और पूजा करते समय अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर ही रखें।
-साफ आसन या चौकी पर भगवान गणेश को विराजित करें।
-भगवान की प्रतिमा के सामने धूप-दीप प्रज्जवलित करें और ॐ गणेशाय नमः या ॐ गं गणपते नमः का जाप करें।
-गणपति को रोली लगाएं और जल अर्पित करें।
-पूजा के बाद भगवान गणेश को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।
-शाम को व्रत कथा पढ़कर चांद के दर्शन कर अपना व्रत खोलें।
-अपना व्रत पूरा करने के बाद दान भी जरूर कर देना चाहिए।
कैसे रखें व्रत: संकष्टी चतुर्थी पर कई लोग निर्जला व्रत करते हैं तो कई फलाहार ग्रहण करके उपवास रखते हैं। पूजा के बाद आप फल, मूंगफली, खीर, दूध या साबूदाने का सेवन कर सकते हैं। कई लोग इस व्रत में सेंधा नमक का इस्तेमाल भी करते हैं।
संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा: एक बार माता पार्वती और देवों के देव महादेव नदी के किनारे बैठे हुए थे तभी माता पार्वती ने चौपड़ खेलने की इच्छा जताई। लेकिन परेशानी ये थी कि वहां उन दोनों के अलावा तीसरा कोई नहीं था जो उनके खेल में निर्णायक की भूमिका निभा सके। इस समस्या का समाधान निकालते हुए भगवान शिव और माता पार्वती ने एक मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसमें जान डाल दी। मिट्टी से बने बालक को दोनों ने आदेश दिया कि तुम इस खेल को अच्छे से देखना और यह फैसला लेना कि कौन जीता है। खेल शुरू हो गया जिसमें माता पार्वती लगातार जीत रही थीं। लेकिन एक बार गलती से बालक ने माता पार्वती को हारा हुआ घोषित कर दिया। इस पर माता पार्वती को क्रोध आ गया जिसकी वजह से गुस्से में आकर माता पार्वती ने बालक को श्राप दे दिया जिससे बालक लंगड़ा हो गया।
बालक ने अपनी भूल के लिए माता से क्षमा मांगी। बालक के बार-बार निवेदन करने पर माता ने कहा कि अब श्राप वापस तो नहीं हो पायेगा लेकिन माता ने उस बालकर को श्राप से मुक्ति का एक उपाय बताया। माता ने उससे कहा कि संकष्टी चतुर्थी वाले दिन पूजा करने यहां पर कुछ कन्याएं आती हैं, तुम उनसे व्रत की विधि पूछना और व्रत को सच्चे मन से करना। बालक ने व्रत की विधि जान ली और विधिपूर्वक व्रत को किया। उसकी सच्ची श्रद्धा से भगवान गणेश प्रसन्न हुए और उसकी इच्छा पूछी। उस बालक ने माता पार्वती और भगवान शिव के पास जाने की इच्छा को ज़ाहिर किया। भगवान गणेश ने उसकी मांग को पूरा किया और उसे शिवलोक पंहुचा दिया।
लेकिन वह बालक जब वहां पहुंचा तो वहां उसे केवल भगवान शिव ही मिले। उस समय माता पार्वती भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश छोड़कर चली गयी होती हैं। जब शिव ने उस बालक से यहां आने के बारे में पूछा तो उसने उन्हें बताया कि गणेश की पूजा से उसे उन्हें यहां आने का वरदान प्राप्त हुआ। इस बारे में जानकर भगवान शिव ने भी माता पार्वती को मनाने के लिए व्रत को किया जिससे माता पार्वती भगवान शिव से प्रसन्न हो कर वापस कैलाश लौट आती हैं।
गणेश जी की आरती:
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,
माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।
पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,
बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।
दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।
कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।