Eid Chand, Eid ul Fitr 2020: रोजेदारों को चांद का दीदार हो गया है। लिहाजा 25 मई को पूरे देश में ईद मनाई जाएगी। वहीं दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने भी कहा कि ईद का चांद दिखाई दे गया है। और देशभर में 25 मई को ईद-उल-फित्र मनाई जाएगी। गौरतलब है कि कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच केरल और जम्मू-कश्मीर में आज ही ईद मनाई गई। वहीं, बाकी पूरे देश में सोमवार 25 मई को ईद-उल-फितर होगी।
श्रीनगर में ग्रैंड मुफ्ती नसीर-उल-इस्लाम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में चांद दिखा है इसलिए यहां रविवार को ईद मनाई जाएगी। उन्होंने रेड जोन में रहने वाले लोगों से घर में ही ईद की नमाज पढ़ने का आग्रह किया। बता दें कि रमजान के आखिरी दिन चांद का दीदार कर लोग अगले दिन ईद मनाते हैं। इस बार ईद-उल-फितर यानी मीठी ईद 25 मई को मनाए जाने की उम्मीद है। इस त्योहार को शव्वाल महीने की शुरुआत में मनाया जाता है जो इस्लामिक कैलेंडर का 10वां महीना होता है जो रमजान महीने के खत्म होने के बाद शुरू होता है। इस दिन लोग नमाज अदा कर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं।
संभावना जताई जा रही है कि इस साल ईद का चांद 24 मई को दिखाई दे सकता है। ईद उल फितर को मनाने का मकसद ये है कि पूरे महीने अल्लाह की इबादत करते हैं रोजा रखा जाता है और अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र मिलने का दिन ही ईद कहलाता है। इस उत्सव को पूरी दुनिया के मुस्लिम लोग बड़े ही धूम धाम से मनाते हैं। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं। ईद की मुबारक देते हैं। लेकिन इस बार सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान में रखते हुए ये पर्व मनाया जायेगा।
ईद के दिन गरीबों को फितरा देना वाजिब होता है जिससे वो लोग जो गरीब हैं अपनी ईद मना सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें। इस दिन लोग अपने घरों में सिवैया बनाते हैं जिसे सभी लोग बड़े ही चाव के साथ खाते हैं।
जुमे की नमाज की तुलना में ईद उल फितर की नमाज में 6 ज्यादा तकबीरात (अल्लाहु अकबर) होती है। पूरी नमाज के पांच मुख्य हिस्से होते हैं। ईद की नमाज में इमाम द्वारा खुतबा नमाज के बाद पढ़ा जाता है, जबकि शुक्रवार की नमाज में खुतबा नमाज अदा करने से पहले पढ़ा जाता है।
ईद की शुरुआत सुबह दिन की पहली प्रार्थना के साथ होती है। जिसे सलात अल-फ़ज़्र भी कहा जाता है। इसके बाद पूरा परिवार कुछ मीठा खाता है। वैसे ईद पर खजूर खाने की परंपरा है। फिर नए कपड़ों में सजकर लोग ईदगाह या एक बड़े खुले स्थान पर जाते हैं, जहां पूरा समुदाय एक साथ ईद की नमाज़ अदा करता है। प्रार्थना के बाद, ईद की बधाईयां दी जाती है। उस समय ईद-मुबारक कहा जाता है। ये एक दूसरे के प्यार और आपसी भाईचारे को दर्शाता है।
मुस्लिम समुदाय के पैगम्बर हजरत मुहम्मद हैं। 624 ईस्वी में बद्र के युद्ध में हजरत मुहम्मद विजयी हुए थे। इसके उपलक्ष्य में ईद का त्यौहार मनाया जाता है। पहली ईद उल-फ़ितर पैगम्बर मुहम्मद ने सन 624 ईसवी में जंग-ए-बदर के बाद मनाई थी। इस दिन मीठे पकवान बनाए और खाए गए थे और अपने से छोटों को ईदी दी गयी थी।
ईद उल अधा के अलावा एक और ईद का त्यौहार, ईद-उल-फितर के रूप में जाना जाता है। ईद-उल- फितर इस्लामी कैलेण्डर के दसवें महीने शव्वाल के पहले दिन मनाया जाता है। ईद-उल-फितर इस्लामी पैगंबर मुहम्मद द्वारा शुरू किया गया है| जिसके दौरान मुस्लिम लोग एक महीने का उपवास रखते हैं। ये परंपरा और त्यौहार मक्का में प्रोफेट के आने के बाद से शुरू हुआ था।
ईद क्यों मनाते हैं? इसके पीछे का एक कारण और भी है। पवित्र कुरान के मुताबिक, रजमान के पाक महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह एक दिन अपने बंदों को इनाम देता है, जो दिन ईद का होता है। वहीं अल्लाह के बंदे उनका शुक्रिया अदा करते हैं।
ईद का त्योहार सबको साथ लेकर चलने के लिए जाना जाता है। ईद पर हर मुसलमान एक साथ नमाज पढ़ते हैं और एक दूसरे को गले लगाते हैं। इस्लाम में जकात एक महत्वपूर्ण पहलू है। जिसमें हर मुसलमान को धन, भोजन और कपड़े के रूप में कुछ न कुछ दान करने के लिए कहा गया है।
हिजरी कैलेंडर के अनुसार ईद साल में दो बार मनाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद साहब ने बद्र के युद्ध में शानदार विजय हासिल की थी। इसी युद्ध को जीतने की खुशी में लोगों ने ईद का त्योहार मनाना शुरू कर दिया था। 624 ईस्वी में पहली बार ईद-उल-फितर मनाया गया था। रमजान में मुस्लिमों के द्वारा रोजा और तिलावते कुरान के जरिए विशेष इबादत की जाती है। भारत के साथ-साथ इस पर्व को पूरे देश में धूम-धाम से मनाया जाता है।
ये दुआ मांगते हैं हम ईद के दिन,
बाकी ना रहे आपका कोई गम ईद के दिन,
आपके आंगन में उतरे रोज खुशियों भरा चांद,
और महकता रहे फूलों का चमन ईद के दिन
भारत में ईद के समय और दिन सऊदी अरब से तय होते हैं। सबसे पहले चाँद को सऊदी अरब में देखा जाता है उसके बाद ही बाकी दुनिया में ईद मनाई जाती है। भारत आमतौर पर सऊदी अरब में चांद दिखने के दूसरे दिन ईद मनाई जाती है।
देशभर में 25 मई को ईद मनाया जा रहा है। हर साल जहां ईद पूर्व संध्या पर लोगों में उत्साह के साथ बाजर में रौनक होती है, इस बार वैसा कुछ नहीं है। वजह है कोरोना वायरस और लॉकडाउन। लोग एहतिहात के तौर पर अपने घरों में रहने को प्राथमिकता दे रहे है। पुरानी दिल्ली के इलाके जो हर बार रमजान में खरीदारी करने वालों से गुलजार रहते थे, इस बार सूने पड़े हैं।
केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि मैं अपनी जिंदगी में पहली बार नमाज़ घर पर पढ़ूंगा। जगह बदलेगी पर जज़्बा नहीं। ये बात सही है कि कोरोना की जो चुनौतियां हैं उसकी वजह से रमजान से जुड़े फर्ज़ हैं वो सब लोगों ने घर पर पूरे किए। मुझे पूरी उम्मीद है कि लोग ईद भी घर पर ही मनाएंगे। मैं अपनी जिंदगी में पहली बार नमाज घर पर पढूंगा। जगह बदलेगी पर जज़्बा नहीं। ये बात सही है कि कोरोना की जो चुनौतियां हैं उसकी वजह से रमजान से जुड़े फर्ज़ हैं वो सब लोगों ने घर पर पूरे किए। मुझे पूरी उम्मीद है कि लोग ईद भी घर पर ही मनाएंगे।
ईद-उल-फितर यानी मीठी ईद के करीब ढाई महीने बाद यानी 70 दिन बाद बकरीद का त्योहार मनाया जाता है। इसको ईद-उल-अजहा के नाम से भी जाना जाता है। मुस्लिम समुदाय में ईद-उल-फितर और ईद-उल-अजहा सबसे बड़े त्योहार हैं और दोनों ही त्योहार बहुत ही धूमधाम से मनाये जाते हैं।
सुख-शांति अमन चैन की दुआ के साथ ही धन-धौलत, रूपया पैसा की प्राप्ति की दुआ भी अल्लाह से इस दिन की जाती है। किसी को कम तो किसी को ज्यादा अल्लाह के रहम से सबको कुछ न कुछ मिलता ही है। अगर आप भी ईद पर अल्लाह की बरकत पाना चाहता हैं तो इन चीजों को अपना सकते हैं। बाजार से कुछ कौड़िया खरीद कर लें आये, अब एक पीले कपड़े में 1 चांदी के सिक्कें के साथ 5 या 7 कौड़ियां अपनी तिजोरी में शाम के समय रख दें, ये माना जाता है कि ऐसा करने से आपकी तिजोरी हमेशा भरी रहेगी।
इस्लाम में चैरिटी ईद का एक महत्वपूर्ण पहलू है। हर मुसलमान को धन, भोजन और कपड़े के रूप में कुछ न कुछ दान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। कुरान में ज़कात अल-फ़ित्र को अनिवार्य बताया गया है। जकात यानी दान को हर मुसलमान का फर्ज कहा गया है। ये गरीबों को दिए जाने वाला दान है। परंपरागत रूप से इसे रमजान के अंत में और लोगों को ईद की नमाज पर जाने से पहले दिया जाता है। मुस्लिम अपनी संपत्ति को पवित्र करने के रूप में अपनी सालाना बचत का एक हिस्सा गरीब या जरूरतमंदों को कर के रूप में देते हैं। विश्व के कुछ मुस्लिम देशों में ज़कात स्वैच्छिक है, वहीं अन्य देशों में यह अनिवार्य है।
इस्लामिक कैलेंडर में दो ईद मनाने का उल्लेख आता है। दूसरी ईद जो ईद-उल-जुहा या बकरीद के नाम से भी जानी जाती है, ईद-उल-फित्र का यह त्यौहार रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर इस्लामिक महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है।
इस त्योहार को शव्वाल महीने की शुरुआत में मनाया जाता है जो इस्लामिक कैलेंडर का 10वां महीना होता है जो रमजान महीने के खत्म होने के बाद शुरू होता है। इस दिन लोग नमाज अदा कर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं।
ईद के रोज सभी मुसलमान मुल्क और मिल्लत की सलामती के लिए खुदा के सामने हाथ उठाकर दुआएं करते हैं। जब मुल्क और मिल्लत सलामत रहेगी तभी सब लोग सुकून से जिंदगी गुजार सकेंगे।
दरगाह आला हजरत के प्रमुख मौलाना सुब्हान रजा खां सुब्हानी मियां और सज्जादानशीन मुफ्ती अहसन रजा कादरी अहसन मियां ने लोगो को ईद के साथ मुकद्दस रमजान में हुकूमत की गाइड लाइन और उलमा के मशवरे पर अमल करने के लिए मुबारकबाद देते हुए कहा है कि लोग ईद पर भी हर सूरत में खुद को किसी भी मजमे से बचाएं और सिर्फ अपने घर वालो के साथ ईद की खुशियां मनाएं। ईद पर बगैर जरूरत खरीदारी भी न करें। दरगाह की ओर से यह एलान पहले ही किया जा चुका है कि लोग घरों में ईद के बदले चार रकात नमाजे चाश्त अदा करें।
ईद खुशियों का त्योहार है। आम तौर पर यह तीन दिनों तक मनाई जाती है। लोग एक दूसरे के घरों में जाकर मुबारकबाद देते हैं और सेवईं खाते हैं।
मुसलमानों के सभी सिलसिलों के धर्मगुरुओं ने एलान किया है कि ईद की नमाज भी घरों में ही अदा की जाएगी। दरगाह आला हजरत की ओर से यह भी अपील की गई है कि लोग ईद की खुशियां सिर्फ घरवालों के साथ मनाएं। एक-दूसरे के गले मिलने और मुसाफा करने से परहेज रखें। किसी भी सूरत में न किसी को दावत पर बुलाएं न खुद किसी के घर दावत में शिरकत करने जाएं।
ईद का इतिहास: मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में ईद-उल-फितर का उत्सव शुरू हुआ। माना जाता है कि इस दिन पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई जीती थी। इस जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया, इसी कारण इस दिन को मीठी ईद या ईद उल फितर के रुप में मनाया जाता है।
-सुबह जल्दी उठकर फजर की नमाज अदा करने के खुद की सफाई और कपड़े वगैरह तैयार
-रखनागुस्ल (नहाना) करना
- मिस्वाक (दातून) करना
- सबसे उम्दा और साफ कपड़े पहनना। (नए या पुराने, लेकिन साफ)
- इत्र लगाना (सिर्फ पुरुष)
- ईदगाह जाने से पहले कुछ खाना
- नमाज से पहले फितरा, जकात अदा करना- ईदगाह में जल्दी पहुंचना- ईद की नमाज खुले मैदान में अदा करना। (बारिश या बर्फ गिरने की स्थिति में नहीं)- ईदगाह आने-जाने के लिए अलग-अलग रास्तों का इस्तेमाल करना- ईदगाह जाते वक्त यह तकबीर पढ़ना
पवित्र कुरान के अनुसार, रमजान के महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह अपने बंदों को बख्शीश और इनाम देता है। बख्शीश और इनाम के इस दिन को ईद-उल-फितर कहा जाता है। इस दिन लोग गले मिलते हैं, ईद की मुबारकबाद देते हैं और मिठाई देते हैं।
इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से रमजान के बाद आने वाले दसवें महीने शव्वाल में ईद-उल-फितर पहला और इकलौता दिन होता है जिसमें मुस्लिमों को व्रत रखने की इजाजत नहीं होती। ईद का दिन और तारीख अलग अलग टाइम जोन और चांद के दिखने के हिसाब से बदल सकती है।
कोरोना वायरस लॉकडाउन के बीच केरल और जम्मू-कश्मीर में आज ईद मनाई जाएगी। वहीं बाकी पूरे देश में सोमवार 25 मई को ईद-उल-फितर होगी। श्रीनगर में ग्रैंड मुफ्ती नसीर-उल-इस्लाम ने कहा कि जम्मू-कश्मीर में चांद दिखा है इसलिए यहां रविवार को ईद मनाई जाएगी। उन्होंने रेड जोन में रहने वाले लोगों से घर में ही ईद की नमाज पढ़ने का आग्रह किया। उन्होंने कहा, 'ग्रीन जोन के लोग कुछ निर्दिष्ट स्थानों पर नमाज अदा कर सकते हैं लेकिन मास्क पहनकर और सोशल डिस्टेंसिंग के पालन के साथ। सिर्फ 10 से 20 लोग ही एक बार में इकट्ठा हों।'
ईद उल फितर को मनाने का मकसद ये है कि पूरे महीने अल्लाह की इबादत करते हैं रोजा रखा जाता है और अपनी आत्मा को शुद्ध करते हैं जिसका अज्र मिलने का दिन ही ईद कहलाता है। इस उत्सव को पूरी दुनिया के मुस्लिम लोग बड़े ही धूम धाम से मनाते हैं। लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों से मिलते हैं। ईद की मुबारक देते हैं
ईद-उल-फितर के मौके पर एक खास दावत तैयार की जाती है। जिसमें खासतौर से मीठा खाना शामिल होता है। इसलिए इसे भारत और कुछ दक्षिण एशियाई देशों में मीठी ईद भी कहा जाता है। ईद-उल-फितर पर खासतौर से सेवइयां यानी गेहूं के नूडल्स को दूध के साथ उबालकर बनाया जाता है और इसे सूखे मेवों और फलों के साथ परोसा जाता है।
इस त्योहार में चांद का बड़ा महत्व होता है क्योंकि ईद किस दिन मनायी जाएगी ये चांद के निकलने पर ही निर्भर करता है। रमज़ान के 29-30 दिनों के बाद ईद का चांद नज़र आता है। रमज़ान के महीने की शुरुआत भी चांद से होती है और ख़त्म भी चांद देखने से होता है।
इस त्योहार को शव्वाल महीने की शुरुआत में मनाया जाता है जो इस्लामिक कैलेंडर का 10वां महीना होता है जो रमजान महीने के खत्म होने के बाद शुरू होता है। इस दिन लोग नमाज अदा कर एक दूसरे को ईद की मुबारकबाद देते हैं।
ईद के रोज सभी मुसलमान मुल्क और मिल्लत की सलामती के लिए खुदा के सामने हाथ उठाकर दुआएं करते हैं। जब मुल्क और मिल्लत सलामत रहेगी तभी सब लोग सुकून से जिंदगी गुजार सकेंगे।
रमजान के दौरान ईद जितना करीब आता जाता है, उसके लिए हफ्तों पहले से तैयारियां शुरू कर दी जाती हैं। नए कपड़ों से लेकर पकवान बनाने तक की तैयारियां होती हैं। इस दौरान उन लोगों को जो गरीब है और सामान नहीं खरीद सकते हैं, उन्हें संपन्न मुस्लिम परिवार अपनी ओर से सामान खरीदकर देते हैं, जिससे उनके घरों में भी ईद की खुशियां आ सकें।
ईद पर लोग एक-दूसरे से जितना मिलते हैं और मुबारकबाद देते हैं, खुशियां उतनी ही बढ़ती हैं।
ईद से पहले सजते हैं बाजार और कपड़ों के खरीदारों से आती है रौनक, हालांकि इस बार ऐसा नहीं हो पा रहा है। कोरोना महामारी ने बाजार की रौनक छीन ली है। कुछ बाजार खुल तो गए हैं, लेकिन सोशल डिस्टेसिंग और अन्य तरह के ऐहतियात से लोग खरीदारी नहीं कर रहे हैं।
ईद पर घरों में सेवईं बनती है। इसके अलावा भी कई व्यंजन बनता है, लेकिन सेवईं प्रमुखता से उनमें शामिल है। ईद की सेवईं का खास महत्व है। खास बात यह है कि इस दौरान सेवईं की कई वेरायटी बनाई जाती है और उसे सभी तरह के लोगों को दिया जाता है।
ईद खुशियों का त्योहार है। आम तौर पर यह तीन दिनों तक मनाई जाती है। लोग एक दूसरे के घरों में जाकर मुबारकबाद देते हैं और सेवईं खाते हैं।
गरीबों की मदद करने, उन्हें कुछ देने और उनको आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने से घर में बरक्कत आती है। खास तौर पर रमजान और ईद के मौके पर यह काम जरूर करना चाहिए।
चांद से जुड़ा हुआ है इसीलिए ईद के दिन चांद का बड़ा महत्व होता है। आप मुस्लिम हैं या नहीं, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन आपको ईद के चांद के महत्व के बारे में पता होना चाहिए। रमज़ान के 29-30 दिनों के बाद ईद का चांद नज़र आता है। रमज़ान के महीने की शुरुआत भी चांद से होती है और ख़त्म भी चांद देखने से होता है।
ईद के दिन गरीबों को फितरा देना वाजिब होता है जिससे वो लोग जो गरीब हैं अपनी ईद मना सकें और समाज में एक दूसरे के साथ खुशियां बांट सकें। इस दिन लोग अपने घरों में सिवैया बनाते हैं जिसे सभी लोग बड़े ही चाव के साथ खाते हैं।
रमजान के पाक महीने में सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजा रखा जाता है। रोजा रखने वाले लोग सूर्योदय से पहले उठकर भोजन कर लेते हैं, इसे सहरी कहा जाता है। इसके बाद रोजा रखने वाले दिनभर कुछ भी नहीं खाते- पीते नहीं हैं। सूर्यास्त होने के बाद रोजा रखने वाले रोजा खोलते हैं, इसे इफ्तार कहा जाता है।
पवित्र कुरान के अनुसार, रमजान के महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह अपने बंदों को बख्शीश और इनाम देता है। बख्शीश और इनाम के इस दिन को ईद-उल-फितर कहा जाता है। इस दिन लोग गले मिलते हैं, ईद की मुबारकबाद देते हैं और मिठाई देते हैं।