ईद-उल-फितर इस बार 24 या 25 मई को मनाए जाने की उम्मीद है। पूरी दुनिया में मुसलमानों द्वारा ईद का पर्व चाँद रात में नये चाँद के दिखने के बाद ही मनाया जाता है। चूंकि दुनिया में जगह-जगह चाँद अलग-अलग वक़्त पर दिखाई देता है, इसलिए ईद मनाए जाने की तारीख भी ऊपर-नीचे हो जाती है। ईद-उल-फ़ितर का एक ही मकसद होता है कि हर आदमी एक दूसरे को बराबर समझे और इंसानियत का पैगाम फैलाए।
रमजान में 30 रोजों के बाद चांद देखकर ईद मनाई जाती है। इस त्योहार के इतिहास की बात करें तो कहा जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र युद्ध में विजय प्राप्त की थी। उनके विजयी होने की खुशी में ईद का त्योहार मनाया जाने लगा। ऐसी मान्यता है कि 624 ईस्वी में पहली बार ईद उल फित्र मनायी गई थी। ये त्योहार रमजान का चांद डूबने और ईद का चांद नजर आने पर इस्लामिक महीने की पहली तारीख को मनाया जाता है। रमजान इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना है। इस पूरे माह में रोजे रखे जाते हैं। इस महीने के खत्म होते ही 10वां माह शव्वाल शुरू होता है। इस्लाम में इस दिन अपनी जरूरतमंदों को दान दिया जाता है जिसे जकात या फितरा कहा जाता है।
ईद वाले दिन लोग ईदगाह में नमाज पढ़ने के लिए जाते हैं और अल्लाह से शुक्रिया अदा करते हैं कि उन्होंने महीनेभर उपावस रखने की ताकत दी। ईद पर एक खास रकम जिसे जकात कहते हैं जो गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाल दी जाती है। नमाज के बाद परिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता है, जिसमें 2 किलो ऐसी चीज दी जाती है जो प्रतिदिन रखने की हो। एक दूसरे से गले मिलकर ईद मुबारक बोलते हैं। साथ मिलकर खाना खाते हैं। कहा जाता है कि आपसी प्रेम व भाईचारे को अपनाने वालों पर अल्लाह की रहमत बरसती है। एक बार मीठी ईद मनाई जाती है दूसरी बार बकरीद। मीठी ईद रमजान महीने की आखिरी रात के बाद मनाई जाती है और बकरा ईद रमजान महीने के 70 दिन बाद मनाई जाती है। बकरा ईद को कुर्बानी की ईद माना जाता है।
