Navratri Navami: चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) का समापन दुर्गा नवमी के साथ हो जाता है। इसी दिन कई लोग अपना व्रत खोलते हैं। घरों में हवन किये जाते हैं साथ ही कन्याओं को पूजा जाता है। चैत्र नवरात्रि के नौवें दिन ही राम नवमी का उत्सव भी मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। इस बार कोरोना वायरस के चलते दुर्गा नवमी की पूजा करने में परेशानी होगी। कन्याओं को घर में बुलाकर पूजन नहीं कर पायेंगे। तो ऐसी स्थिति में आप कैसे कर सकते हैं कन्या पूजन और क्या है हवन का तरीका जानिए…
हवन सामग्री: दुर्गा नवमी के दिन सबसे पहले तो मां सिद्धिदात्री की विधि विधान के साथ पूजा कर लें। उसके बाद हवन इत्यादि कर पूजा संपन्न करें। हवन सामग्री में इन चीजों का होना जरूरी है। एक सूखा नारियल या गोला, कलावा या लाल रंग का कपड़ा और एक हवन कुंड। इसके अतिरिक्त आम की लकड़ी, तना और पत्ता, चंदन की लकड़ी, अश्वगंधा, ब्राह्मी, मुलैठी की जड़, पीपल का तना और छाल, बेल, नीम, पलाश, गूलर की छाल, कर्पूर, तिल, चावल, लौंग, गाय का घी, गुग्गल, लोभान, इलायची, शक्कर और जौ।
हवन विधि: महा नवमी के दिन माता की पूजा अर्चना के बाद हवन की तैयारी करें। हवन कुंड को पूजा स्थल पर ही किसी साफ स्थान पर स्थापित करें। इसके बाद हवन सामग्री को किसी बड़े पात्र में ठीक से मिला लें। अब आम की सूखी लकड़ी को कपूर की सहायता से जला लें। अग्नि प्रज्जवलित करने के बाद इन मंत्रों के साथ घर के सदस्य बारी बारी से आहुति देना शुरू करें।
ओम गणेशाय नम: स्वाहा
ओम गौरियाय नम: स्वाहा
ओम नवग्रहाय नम: स्वाहा
ओम दुर्गाय नम: स्वाहा
ओम महाकालिकाय नम: स्वाहा
ओम हनुमते नम: स्वाहा
ओम भैरवाय नम: स्वाहा
ओम कुल देवताय नम: स्वाहा
ओम स्थान देवताय नम: स्वाहा
ओम ब्रह्माय नम: स्वाहा
ओम विष्णुवे नम: स्वाहा
ओम शिवाय नम: स्वाहा
ओम जयंती मंगलाकाली, भद्रकाली कपालिनी दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा
स्वधा नमस्तुति स्वाहा।
ओम ब्रह्मा मुरारी त्रिपुरांतकारी भानु: शशि भूमि सुतो बुधश्च: गुरुश्च शुक्र शनि राहु केतव सर्वे ग्रहा शांति करा भवंतु स्वाहा
ओम गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवा महेश्वर: गुरु साक्षात् परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नम: स्वाहा।
ओम शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे, सर्व स्थार्ति हरे देवि नारायणी नमस्तुते।
इसके बाद नारियल में कलावा या फिर लाल कपड़ा बांध लें। उस पर पूरी, खीर, पान, सुपारी, लौंग, बतासा आदि स्थापित करके उसे हवन कुंड के बीचोबीच रख दें। इसके बाद बचे हुए हवन सामग्री को समेट पर पूर्ण आहुति मंत्र का उच्चारण करें- ओम पूर्णमद: पूर्णमिदम् पुर्णात पूण्य मुदच्यते, पुणस्य पूर्णमादाय पूर्णमेल विसिस्यते स्वाहा। और उनको हवन कुंड में डाल दें। अंत में मां दुर्गा की आरती उतारें।
कोरोना का पालन करते हुए कैसे करें कन्या पूजन: नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा से पहले भगवान गणेश की पूजा करें। लॉक डाउन के नियमों का पालन करते हुए आप कन्या पूजन की जगह इस बार दान कर सकते हैं। इसके लिए नौ कन्याओं के लिए खान निकालकर किसी जरूरतमंद को दे सकते हैं। जानवरों को भी भोजन करा सकते हैं।
करें सांकेतिक पूजन: आप चाहें तो सांकेतिक पूजा भी कर सकते हैं जिसके लिए आप जितना धन कन्याओं पर खर्च करना चाहते हैं उसे सात या नौ भागों में बांट कर लिफाफे बना दें और संकल्प करके घर के पूजा स्थल पर रख दें। साथ ही आप ऐसा प्रसाद भी रख सकते हैं जो लंबे समय तक चले जैसे सूखा नारियल, मेवे, मिश्री इत्यादि। स्थिति सामान्य होने पर आप इन सभी चीजों को कन्याओं को अर्पित कर दें।

Highlights
नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥
निराकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूँ लोक फैली उजियारी ॥
शशि ललाट मुख महाविशाला । नेत्र लाल भृकुटि विकराला ॥
रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥
तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥
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हवन पूर्ण होने के बाद माताजी की कपूर और घी के दीपक से आरती करें। उसके बाद माता रानी को खीर, हलवा, पूड़ी और चने का भोग लगाएं। हवन पूर्ण होने के बाद कन्या भोज करवाया जाता है। लेकिन इस बार कन्या भोज करवा पाना संभव नहीं होगा, इसलिए आप चाहें तो अपने घर की कन्या को भी पूज सकते हैं और भोजन करवाकर दक्षिणा दे सकते हैं।
कुछ लोग अष्टमी पर तो कुछ लोग नवमी पर हवन करते हैं। हवन करने के लिए आप सबसे पहले हवन कुंड को एक साफ स्थान पर स्थापित कर दें। इसके बाद आम की लकड़ी और कर्पूर से हवन कुंड में अग्नि को प्रज्जवलित करें। इसके बाद बाद घी से ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै नमः’ मंत्र से माता के नाम से आहुति दें फिर सभी देवी-देवताओं से नाम से 3 या 5 बार आहुति दें। इसके बाद संपूर्ण हवन सामग्री से 108 बार हवन करें।
पौराणिक मान्यताओंं अनुसार भगवान शिव ने सिद्धिदात्री की कृपा से ही अनेकों सिद्धियां प्राप्त की थीं। मां की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए। मां सिद्धिदात्री का मनपसंद भोग नारियल, खीर, नैवेद्य और पंचामृत हैं।
माना जाता है कि मां सिद्धिदात्री अपने भक्तों को समस्त प्रकार की सिद्धियां प्रदान करती हैं। इतना ही नहीं, मां सिद्धिदात्री शोक, रोग एवं भय से मुक्ति भी देती हैं। सिद्धियों की प्राप्ति के लिए मनुष्य ही नहीं, देव, गंदर्भ, असुर, ऋषि आदि सभी इनकी पूजा करते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव भी इनके आराधक हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्माण्ड के प्रारंभ में भगवान रूद्र ने देवी आदि पराशक्ति की आराधना की। ऐसी मान्यता है कि देवी आदि पराशक्ति का कोई स्वरूप नहीं था। शक्ति की सर्वशक्तिमान देवी आदि पराशक्ति सिद्धिदात्री स्वरूप में भगवान शिव के शरीर के बाएं भाग पर प्रकट हुईं।
देवी सिद्धिदात्री कमल पर विराजमान हैं और वे हाथों में कमल, शंख, गदा, सुदर्शन चक्र धारण किए हुए हैं। सिद्धिदात्री देवी सरस्वती का भी स्वरूप हैं, जो श्वेत वस्त्रालंकार से युक्त महाज्ञान और मधुर स्वर से अपने भक्तों को सम्मोहित करती हैं।
सामान्य रूप से इस दिन दो साल से लेकर 10 साल तक की नौ कन्याओं और एक बालक को आमंत्रित किया जाता है, परंतु इस लॉकडाउन के चलते मानक पूजन के लिए कन्याओं के स्थान पर पाटे पर नौ सुपारी रख कर उनकी पूर्ण विधि से पूजा करें और श्रद्धा अनुसार दक्षिणा चढ़ायें। इस राशि को ही अलग अलग लिफाफों में रख कर उचित समय आने पर कन्याओं को सौंप दें।
देश में कोरोना वायरस के कारण लॉकडाउन है। ऐसे में पंडित पुरोहित का उपलब्ध होना कठिन है, तो आपको परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। आप घर पर स्वयं भी हवन कर सकते हैं। हम आपको हवन साम्रगी और हवन की आसान विधि की जानकारी दे रहे हैं। आज महानवमी की पूजा-अर्चना के बाद हवन कुंड को पूजा स्थल पर ही एक साफ स्थान पर स्थापित करें। इसके बाद सभी हवन सामग्री को एक बड़े पात्र में ठीक से मिला लें। अब आम की सूखी लकड़ी को कर्पूर की मदद से जला लें। इसके बाद अग्नि प्रज्ज्वलित हो जाए तो मंत्रों का उच्चारण कर बारी बारी आहुति देना शुरू करें।
देवी की कृपा तभी होती है जब मन से उनको बुलाया जाता है। जो भक्त पूरी श्रब्धा और विश्वास से देवी दुर्गा काे पुकारते हैं तो देवी उनको अपने यहां शरण देती हैं। भक्त तभी उनके दरबार में जा सकता है, जब वह पूरे मन से उनको याद करता है।
देवी दुर्गा लोगों के हृदय में वास करती हैं। वह भक्तों के कष्ट को दूर करने के लिए कहीं भी चली आती हैं, बस इतना ध्यान रहे कि देवी को पूरे मन से बुलाया जाए। मन से बुलाएं तो देवी चली आती हैं।
दुर्गा स्तुति से न केवल सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, बल्कि लोगों की जीवन में खुशियां भी आती हैं। मां के दरबार में जो कोई भी हाजिरी लगाता है, वह कभी भी खाली हाथ नहीं लौटता है। यहां सबकी सुनवाई होती है।
देवी दुर्गा के हर दिन का अपना अलग महत्व है। ये नौ दिन बहुत शुभ माने जाते हैं। इस दौरान 9 दिन तक नौ अलग-अलग रंग के कपड़े पहनकर भक्त देवी दुर्गा को प्रसन्न कर सकते हैं। पूरे नौ दिन मां के लिए अलग-अलग रंग निर्धारित हैं। उसके अनुसार, नवमी के दिन मां सिद्धिदात्री का आशीर्वाद पाने के लिए बैंगनी रंग के कपड़े पहनें।
मां सिद्धिदात्री की अराधना से ये सिद्धियां होती हैं पूरी-
अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व
वहीं, ब्रह्मवैवर्तपुराण के श्रीकृष्ण जन्म खंड में यह संख्या अठारह बताई गई है। इसमें इनके अलावा ये शामिल हैं-
सर्वकामावसायिता, सर्वज्ञत्व, दूरश्रवण, परकायप्रवेशन, वाक्सिद्धि, कल्पवृक्षत्व, सृष्टि, संहारकरणसामर्थ्य, अमरत्व, सर्वन्यायकत्व, भावना और सिद्धि
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता|
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:||
अर्थात– हे मां ! सर्वत्र विराजमान और मां सिद्धिदात्रि के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बारम्बार प्रणाम है। हे मां, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।
मान्यता है कि मां दुर्गा का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है। कहते हैं कि सिद्धिदात्री की आराधना करने से सभी प्रकार के ज्ञान आसानी से मिल जाते हैं। साथ ही उनकी उपासना करने वालों को कभी कोई कष्ट नहीं होता है।
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां सिद्धिदात्री का स्वरूप बहुत सौम्य और आकर्षक है। उनकी चार भुजाएं हैं। मां ने अपने एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख धारण किया हुआ है। देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है।
मां सिद्धदात्री को विद्या की देवी मां सरस्वती का भी स्वरूप माना जाता है। नवरात्रि में जिन देवियों के अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है उनमें मां सिद्धदात्री को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। इन्हें सम्पूर्णता की देवी भी कहा गया है। इनकी पूजा और उपासना विद्यार्थियों के बहुत ही लाभकारी बताई गई है। सभी विद्याओं में सफलता और श्रेष्ठता प्राप्त करने के लिए मां सिद्धदात्री का आशीर्वाद अत्यंत आवश्यक होता है।
भगवान शिव ने भी देवी सिद्धिदात्री की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इनकी कृपा से ही महादेव का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वाशित्व ये आठ सिद्धियां हैं
नवरात्र के प्रमुख आकर्षण में से एक कन्यापूजन भी है। ऐसी मान्यता है कि मां दुर्गा के सिद्धिदात्री रूप की उपासना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। जो भक्त नौ दिन का व्रत रखते हैं, उनका नवरात्र व्रत नौ कन्याओं को नौ देवियों के रूप में पूजने के बाद ही पूरा होता है। उन्हें अपने सामर्थ्य के अनुसार भोग लगाकर दक्षिणा देने से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं।
या देवी सर्वभूतेषु मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
1. ओम देवी सिद्धिदात्र्यै नमः॥
2. सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
मान्यता है कि मां सिद्धिदात्री को लाल और पीला रंग पसंद है। उनका मनपसंद भोग नारियल, खीर, नैवेद्य और पंचामृत है। मां सिद्धिदात्री को प्रसन्न करने के लिए इस दिन चंडी हवन करना शुभ माना जाता है
- नवमी के दिन नवरात्रि की पूर्णता के लिए हवन भी किया जाता है.
- नवमी के दिन पहले पूजा करें, फिर हवन करें.
- हवन सामग्री में जौ और काला तिल मिलाएं.
- इसके बाद कन्या पूजन करें.
- कन्या पूजन के बाद सम्पूर्ण भोजन का दान करें.
- मां के समक्ष दीपक जलाएं.
- मां को नौ कमल के या लाल फूल अर्पित करें.
- इसके बाद मां को नौ तरह के खाद्य पदार्थ भी अर्पित करें.
- अर्पित किए हुए फूल को लाल वस्त्र में लपेट कर रखें.
- पहले निर्धनों को भोजन कराएं.
- इसके बाद स्वयं भोजन करें.
माता सिद्धिदात्री के नाम से ही पता चलता है कि वह सभी सिद्धियों का देने वाली हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्माण्ड के प्रारंभ में भगवान रूद्र ने देवी आदि पराशक्ति की आराधना की। ऐसी मान्यता है कि देवी आदि पराशक्ति का कोई स्वरूप नहीं था। शक्ति की सर्वशक्तिमान देवी आदि पराशक्ति सिद्धिदात्री स्वरूप में भगवान शिव के शरीर के बाएं भाग पर प्रकट हुईं।
महानवमी के सुबह स्नानादि से निवृत हो जाएं। फिर माता सिद्धिदात्री की विधि विधान से पूजा करें। पूजा में माता को तिल का भोग लगाएं, ऐसा करने से आपके साथ कोई अनहोनी नहीं होगी। माता सिद्धिदात्री आपकी हमेशा रक्षा करेंगी। कई जगहों पर महानमी के दिन भी कन्या पूजन होता है। आपने दुर्गाष्टमी के दिन कन्या पूजन नहीं किया है तो विधिपूर्वक कन्या पूजन करें और कुंवारी कन्याओं से आशीर्वाद प्राप्त करें।
या देवी सर्वभूतेषु माँ सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
माता सिद्धिदात्री कमल के पुष्प पर विराजमान रहती हैं और उनका वाहन सिंह है। उनकी चार भुजाएं हैं। वह एक दाएं हाथ में गदा और दूसरे दाएं हाथ में च्रक धारण करती हैं। माता सिद्धिदात्री अपने एक बाएं हाथ में कमल का पुष्प और दूसरे बाएं हाथ में शंख धारण करती हैं।
अगर आपके घर में कन्या नहीं है तो घर के मंदिर में माता की पूजा करके उन्हें विभिन्न प्रकार के भोग लगाएं और माता को भेंट सामग्री अर्पित करें। आप चाहें तो कन्याओं के नाम से कुछ धनराशि निकालकर मंदिर में रख दें और फिर स्थिति सामान्य हो जाने के बाद 5 कन्याओं को इस धन राशि से कुछ उपहार लाकर दे सकते हैं।
हवन पूर्ण होने के बाद माताजी की कपूर और घी के दीपक से आरती करें। उसके बाद माता रानी को खीर, हलवा, पूड़ी और चने का भोग लगाएं। हवन पूर्ण होने के बाद कन्या भोज करवाया जाता है। लेकिन इस बार कन्या भोज करवा पाना संभव नहीं होगा, इसलिए आप चाहें तो अपने घर की कन्या को भी पूज सकते हैं और भोजन करवाकर दक्षिणा दे सकते हैं।
कुछ लोग अष्टमी पर तो कुछ लोग नवमी पर हवन करते हैं। हवन करने के लिए आप सबसे पहले हवन कुंड को एक साफ स्थान पर स्थापित कर दें। इसके बाद आम की लकड़ी और कर्पूर से हवन कुंड में अग्नि को प्रज्जवलित करें। इसके बाद बाद घी से ‘ऊं ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डयै विच्चै नमः’ मंत्र से माता के नाम से आहुति दें फिर सभी देवी-देवताओं से नाम से 3 या 5 बार आहुति दें। इसके बाद संपूर्ण हवन सामग्री से 108 बार हवन करें।
आम की लकड़ी और आम का पल्लव। पीपल का तना और छाल, बेल, नीम, पलाश गूलर की छाल, चंदन की लकड़ी, अश्वगंधा ब्रह्मी, मुलैठी की जड़, कर्पूर, तिल, चावल, लौंग, गाय का घी, गुग्गल, लोबार, इलाइची, शक्कर, नवग्रह की लकड़ी, पंचमेवा, सूखा नारियल और गोला और जौ। आपको यह सब सामान सामान्य किराने की दुकान पर मिल जाएगा। सरकार ने भी जरूरी सामान की दुकानों को खुला रखने की इजाजत दी है।
राम नवमी मध्याह्न मुहूर्त - 10:48 ए एम से 01:15 पी एम
अवधि - 02 घण्टे 28 मिनट्स
राम नवमी मध्याह्न का क्षण - 12:02 पी एम
नवमी तिथि प्रारम्भ - अप्रैल 02, 2020 को 03:40 ए एम बजे
नवमी तिथि समाप्त - अप्रैल 03, 2020 को 02:43 ए एम बजे
इस वर्ष राम नवमी इसलिए भी विशेष है क्योंकि यह गुरुवार के दिन पड़ी है। गुरुवार के दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना की जाती है और भगवान श्री राम विष्णु के अवतार हैं।
- इस बार नवरात्रि में घर पर बाहर से किसी भी कन्या को आमंत्रित नहीं कर सकते हैं तो ऐसे में आप कन्या पूजन के लिए घर की बेटी, भतीजी और कोई भी कन्या को भोजन करवाकर उनका पूजन करें। पूजन करने से पहले संकल्प लें कि नवरात्रि में मैं अपनी पुत्री को देवी मानकर उनका पूजन कर रही हूं या कर रहा हूं।
– कन्या को मीठा भोजन जरूर कराएं और उन्हें भेंट दें।
– अगर घर में छोटी कन्या न हो तो उस स्थिति में घर के मंदिर में माता का पूजन करें और उन्हें विभिन्न प्रकार के भोग लगाएं और माता को भेंट सामग्री चढ़ाएं।
– जो प्रसाद माता को चढ़ाएं उसका कुछ हिस्सा गाय को भी खिला दें। फिर माता के प्रसाद को घर के सभी लोग ग्रहण करें।
– कन्या पूजन में प्रसाद के तौर पर सूखे नारियल, मखाना, मूंगफली, मिसरी आदि चीजों की भी भेंट कर सकते हैं। ये चीजें जल्दी खराब नहीं होतीं जिस कारण आप स्थिति सामान्य होने के बाद इन्हें किसी कन्या को या फिर मंदिर में भेंट कर सकते हैं।
- अष्टमी के दिन कन्या पूजन के दिन सुबह-सवेरे स्नामन कर भगवान गणेश और महागौरी की पूजा करें।
- अगर नवमी के दिन कन्या पूजन कर रहे हैं तो भगवान गणेश की पूजा करने के बाद मां सिद्धिदात्री की पूजा करें।
--कोरोना वायरस के खतरे के चलते इस बार कन्या पूजन की जगह दान करें।
- आप नौ कन्याओं का खाना निकालकर किसी जरुरतमंद को दे सकते हैैं।
- जानवरों की भूख का ख्याल रखते हुए आप कुत्ते, गाय आदि को भी कन्या पूजन वाला प्रसाद खिला सकते हैं।