नवरात्रि के आठवें दिन देवी शक्ति के महागौरी (Mahagauri) स्वरूप की अराधना की जाती है। इनकी पूजा से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। अष्टमी के दिन कई लोग व्रत रखते हैं तो कई कन्याओं को भोजन करा अपने नवरात्रि व्रत का पारण करते हैं। नवरात्रि में अष्टमी तिथि का विशेष महत्व माना गया है। क्योंकि इस दिन मां महागौरी की पूजा से समस्त प्रकार के दुखों का नाश हो जाता है। जानिए दुर्गाअष्टमी व्रत (Durga Ashtami) की पूजा विधि और कथा…

दुर्गा अष्टमी की पूजा विधि (Durga Ashtami Puja Vidhi) :

अष्टमी के दिन मां अम्बे के महागौरी (Maa Mahagauri) स्वरूप की पूजा होती है। इस दिन सुबह जल्दी उठ कर स्नान कर स्वच्छ हो जाएं। फिर देवी दुर्गा की प्रतिमा को अच्छे वस्त्रों से सुसज्जित करें। उन्हें फूल अर्पित करें। उनके समक्ष घी का दीपक जलाएं। दुर्गा सप्तशती का पाठ करें और दुर्गा के मंत्रोच्चार करें। दुर्गा जी को पंचामृत अर्पित करें। साथ ही उन्‍हें पांच फल, किशमिश, सुपारी, पान, लौंग, इलायची आदि भी चढ़ाएं। प्रसाद स्वरूप मां को मिष्ठान अर्पित करें। इस दिन नारिलय का भोग लगाना भी शुभ माना जाता है। जिन लोगों को इस दिन व्रत का पारण करना है वे लोग कन्याओं का पूजन करें। घर में नौ कन्‍याओं को पूरी और हलवे के प्रसाद का भोग लगाएं। और फिर उनका पैर छूकर आशीर्वाद लें।

महागौरी के मंत्र (Mahagauri Mantra) :

1. श्वेत वृषे समारूढ़ा श्वेताम्बर धरा शुचि:।
महागौरी शुभं दद्यान्महादेव प्रमोददा॥

2. या देवी सर्वभू‍तेषु मां गौरी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

महागौरी की व्रत कथा (Mahagauri Katha) :

दुर्गा अष्टमी व्रत कथा के अनुसार देवी सती ने पार्वती रूप में भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। एक बार भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी को देखकर कुछ कह दिया जिससे देवी का मन आहत हो गया और पार्वती जी तपस्या में लीन हो गईं। इस प्रकार वर्षों तक कठोर तपस्या करने के बाद जब पार्वती नहीं आईं तो उनको खोजते हुवे भगवान शिव उनके पास पहुंचे। वहां पहुंचकर मां पार्वती को देखकर भगवान शिव आश्चर्यचकित रह गए। पार्वती जी का रंग अत्यंत ओझ पूर्ण था, उनकी छटा चांदनी के समान श्वेत, कुंध के फूल के समान धवल दिखाई पड़ रही थी, उनके वस्त्र और आभूषण से प्रसन्न हो कर भगवान शिव ने देवी उमा को गौर वर्ण का वरदान दिया।

दूसरी कथा के अनुसार भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे उनका शरीर काला पड़ गया। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान उन्हें स्वीकार कर लेते हैं और शिव जी उनके शरीर को गंगाजल से धोते हैं तब देवी अत्यंत गौर वर्ण की हो जाती हैं और तभी से इनका नाम गौरी पड़ा था। महागौरी रूप में देवी करुनामय स्नेहमय शांत और मृदंग दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हेतु देव और ऋषिगण कहते हैं, “सर्वमंगल मांगलये शिवे सर्वाध्य साधिके शरन्य अम्बिके गौरी नारायणी नमोस्तुते।”

एक कथा ये भी प्रचलित है कि एक सिंह काफी भूखा था। जब वो भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही थीं। देवी को देखकर सिंह की भूख और बढ़ गई। परन्तु वह देवी की तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमजोर हो गया। देवी जब तप से उठीं तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर दया आ गई और मां उसे अपनी सवारी बना लेती हैं, क्योंकि इस प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल भी है और सिंह भी है।

मां महागौरी की आरती (Mahagauri Ki Aarti) : 

जय महागौरी जगत की माया
जय उमा भवानी जय महामाया
हरिद्वार कनखल के पासा
महागौरी तेरा वहा निवास
चंदेर्काली और ममता अम्बे
जय शक्ति जय जय माँ जगदम्बे
भीमा देवी विमला माता
कोशकी देवी जग विखियाता
हिमाचल के घर गोरी रूप तेरा
महाकाली दुर्गा है स्वरूप तेरा
सती ‘सत’ हवं कुंड मै था जलाया
उसी धुएं ने रूप काली बनाया
बना धर्म सिंह जो सवारी मै आया
तो शंकर ने त्रिशूल अपना दिखाया
तभी माँ ने महागौरी नाम पाया
शरण आने वाले का संकट मिटाया
शनिवार को तेरी पूजा जो करता
माँ बिगड़ा हुआ काम उसका सुधरता
चमन’ बोलो तो सोच तुम क्या रहे हो
महागौरी माँ तेरी हरदम ही जय हो

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Highlights

    09:05 (IST)06 Oct 2019
    अष्‍टमी कैसे मनाई जाती है?

    इस दिन सुबह महागौरी की पूजा के बाद घर पर नौ कन्‍याओं और एक बालक को आमंत्रित किया जाता है। फिर कन्‍याओं और बालक की पूजा करने के बाद उन्‍हें हल्‍वा, पूरी और चने का भोजन कराया जाता है। भोजन के बाद उन्‍हें उपहार देकर उनके पैर छूकर आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है। वहीं बंगाली परिवारों में दुर्गा अष्‍टमी के दिन लोग सुबह-सवेरे नहा-धोकर नए कपड़े पहनकर पुष्‍पांजलि के लिए पंडाल जाते हैं और मां दुर्गा पर पुष्‍प वर्षा करते है। महा आसन और षोडशोपचार पूजा के बाद दोपहर में लोग अष्‍टमी भोग के लिए इकट्ठा होते हैं। पूजा पंडालों में इस दिन अस्‍त्र पूजा और संधि पूजा भी की जाती है। शाम के समय महाआरती होती है और कई रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।