दिपावली शब्द दीप एवं आवली की संधि से बना है। दीप का अर्थ दीपक और आवली का अर्थ पंक्ति से है। इस प्रकार दिपावली का मतलब हुआ दीपों की पंक्ति। दीपों का यह त्योहार अमावस्या के दिन मनाया जाता है। जिस दिन आसमान में अंधेरा छाया रहता है और दीपों की इस रोशनी से पूरा संसार जगमगा उठता है। दीपावली मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित है। जो इसके महत्व के बारे में बताती हैं…
दिवाली पूजन मुहूर्त (Diwali Puja Muhurat 2019) :
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त – 06:43 पी एम से 08:15 पी एम
अवधि – 01 घण्टा 32 मिनट्स
प्रदोष काल – 05:41 पी एम से 08:15 पी एम
वृषभ काल – 06:43 पी एम से 08:39 पी एम
अमावस्या तिथि प्रारम्भ – अक्टूबर 27, 2019 को 12:23 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त – अक्टूबर 28, 2019 को 09:08 ए एम बजे
भगवान राम की घर वापसी : त्रेतायुग में भगवान राम जब लंकापति रावण का वध करके अयोध्या वापस लौटे थे। तब सभी अयोध्यावासियों ने उनके स्वागत की खुशी में घी का दीपक जलाकर दिवाली मनाई थी। यही भारत की पहली दिवाली मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि कार्तिक मास की अमावस्या को भगवान राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ घर वापस लौटे थे।
दिवाली की पूजन सामग्री, विधि, मुहूर्त, कथा और अन्य जानकारी जानने के लिए बने रहिए हमारे इस ब्लॉग पर…
Highlights
मूर्तियों को एक दूसरे के सामने या प्रवेश द्वार पर कभी न रखें। इसके अलावा, एक ही भगवान की कई मूर्तियों से बचें।
दिवाली वाले दिन किसी से उधार लेने और देने से बचें। इस दिन भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, सरस्वती, विष्णु जी और राम दरबार की पूजा की जाती है। दिवाली वाले दिन लक्ष्मी गणेश की नई मूर्तियों की पूजा होती है। पूजन के समय अपने गहनों और पैसों की भी पूजा करें और माता लक्ष्मी से हमेश घर में वास करने की प्रार्थना करें। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन श्री यंत्र की भी पूजा करें। घर में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें और कोने कोने को दीपक की रोशनी से भर दें।
भारत के पूर्वी क्षेत्र उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में हिन्दू लोग लक्ष्मी की जगह काली की पूजा करते हैं। दिवाली की जगह इस त्योहार को काली पूजा कहते हैं। मथुरा और उत्तर मध्य क्षेत्रों में इसे भगवान कृष्ण से जुड़ा मानते हैं। अन्य क्षेत्रों में, गोवर्धन पूजा (या अन्नकूट) की दावत में कृष्ण के लिए 56 या 108 विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है और सांझे रूप से स्थानीय समुदाय द्वारा मनाया जाता है।
दिवाली के लिए पूजा का दो समय है। पहला समय फैक्ट्री और कारखानों के लिए तो दूसरा दुकानों और घरों के लिए। ज्योतिषाचार्य पंडित अवध नारायण द्विवेदी के अनुसार फैक्ट्री, कारखानों में पूजन के लिए उपयुक्त समय दोपहर 2:10 से 3:40 बजे के बीच होगा। इस समय स्थिर लग्न कुम्भ होगी। जबकि दूसरा मुहूर्त शाम 6:40 से रात 8:40 बजे के बीच होगा। इस समय स्थिर लग्न वृषभ लग्न होगी।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 06:43 पी एम से 08:15 पी एमअवधि - 01 घण्टा 32 मिनट्सप्रदोष काल - 05:41 पी एम से 08:15 पी एमवृषभ काल - 06:43 पी एम से 08:39 पी एमअमावस्या तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 27, 2019 को 12:23 पी एम बजेअमावस्या तिथि समाप्त - अक्टूबर 28, 2019 को 09:08 ए एम बजे
दीपावली को विभिन्न ऐतिहासिक घटनाओं, कहानियों या मिथकों के रूप में हिंदू, जैन सहित सिखों द्वारा मनायी जाती है। लेकिन सबमें एक ही संदेश छिपा होता है-बुराई पर अच्छाई, अंधकार पर प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान और निराशा पर आशा की विजय।हिंदू दर्शन में योग, वेदांत, और सामख्या विद्यालय सभी में यह विश्वास है कि इस भौतिक शरीर और मन से परे वहां कुछ है जो शुद्ध अनंत, और शाश्वत है जिसे आत्मन् या आत्मा कहा गया है। दीवाली, आध्यात्मिक अंधकार पर आंतरिक प्रकाश, अज्ञान पर ज्ञान, असत्य पर सत्य और बुराई पर अच्छाई का उत्सव है।
दिवाली शरद ऋतु यानी कार्तिक मास के खास त्योहारों में शामिल है। वेदों में भी इस पर्व की खासियत को बताया गया है और कहा गया है- जीवेम शरद: शतम्। मान्यता है कि वर्षा ऋतु के बाद आने वाली शरद ऋतु उमस और गर्मी से त्राण देकर जनमानस में प्रफुल्लता का संचार करने का काम करती है। वर्षा ऋतु में जलजमाव, गंदगी और बाढ़ से वातावरण प्रदूषित हो जाता है। दूषित जलवायु के प्रभाव से स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और लोग इससे मुक्ति पाने के लिए कई तरह के अनुष्ठान करते हैं।
दिवाली के दिन लोग ताश और जुआ भी खेलते हैं लेकिन इस दिन किसी से भी उधार लेने से बचना चाहिए। ऐसा क्यों? मालूम हो कि भगवान गणेश, माता लक्ष्मी, सरस्वती, विष्णु जी और राम दरबार की पूजा की जाती है। दिवाली वाले दिन लक्ष्मी गणेश की नई मूर्तियों की पूजा होती है। पूजन के समय अपने गहनों और पैसों की भी पूजा करें और माता लक्ष्मी से हमेश घर में वास करने की प्रार्तना करें। देवी लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस दिन श्री यंत्र की भी पूजा करें। घर में साफ सफाई का विशेष ध्यान रखें और कोने कोने को दीपक की रोशनी से भर दें।
दीपावली को लेकर देश के कई जगहों पर अलग अलग परंपराएं सुनने या देखने को मिलती हैं। ग्रामीण अंचल में कहीं कच्ची मिट्टी से तैयार काजल लगाने की परंपरा है तो कहीं इस रात सूप पीटने का भी चलन है। एक और परंपरा अलाय-बलाय निकालने की है। शाम के समय तारा देखकर अलाय-बलाय (जलती हुईं सन की टहनियां) घर से निकाली जाती हैं। कुछ जगहों पर कम उम्र के बच्चों को दिवाली रात जादू की माला भी पहनाई जाती है। सबसे ज्यादा जो परंपरा है वह दिवाली रात को जुआ खेलने की है।
हिंदू मान्यताओं में दिवाली को भगवान विष्णु की पत्नी तथा उत्सव, धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी की जन्मदिवस के रूप में भी मनाते हैं। दिवाली पांच दिनों तक चलने वाले महोत्सव की शुरुआत देवताओं और राक्षसों द्वारा दूध के लौकिक सागर के मंथन से पैदा हुई लक्ष्मी के जन्म दिवस से होती है। दिवाली की रात लक्ष्मी ने अपने पति के रूप में विष्णु को चुना और फिर उनसे शादी की। वहीं इस दिन भक्त बाधाओं को दूर करने के प्रतीक गणेश, संगीत, साहित्य की प्रतीक सरस्वती और धन प्रबंधक कुबेर को भी पूजा जाता है।
दिवाली पूजा के दौरान सबसे पहले गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इसके लिए हाथ में फूल लेकर गणेश जी का ध्यान करें। इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- गजाननम्भूतगणादिसेवितं कपित्थ जम्बू फलचारुभक्षणम्। उमासुतं शोक विनाशकारकं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्। आवाहन मंत्र- हाथ में अक्षत लेकर बोलें -ऊं गं गणपतये इहागच्छ इह तिष्ठ।। अक्षत पात्र में अक्षत छोड़ें। मंत्र के उच्चारण के बाद गणेश जी को मिठाई अर्पित करें।
उत्तर भारत में जहां रावण पर विजय पाने के बाद राम के अयोध्या वापसी के रूप में दिवाली मनाने की परंपरा है वहीं दक्षिण में इस त्योहार से जुड़ी दूसरी मान्यता है। इसके अनुसार असम के शक्तिशाली राजा, जिसने हजारों निवासियों को कैद कर लिया था, पर विजय की स्मृति में मनाया जाता है। माना जाता है कि ये श्री कृष्ण ही थे, जिन्होंने अंत में नरकासुर का दमन किया व कैदियों को आजाद किया। इस घटना की स्मृति में प्रायद्वीपीय भारत के लोग सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं, व कुमकुम अथवा हल्दी के तेल में मिलाकर नकली रक्त बनाते हैं। वहीं नरकासुर यानी राक्षस के प्रतीक के रूप में एक कड़वे फल को अपने पैरों से कुचलकर वे विजयोल्लास के साथ रक्त को अपने मस्तक के अग्रभाग पर लगाते हैं। ऐसा करने के बाद वह धर्म-विधि विधान के साथ तैल स्नान करते हैं और चन्दन का टीका लगाते हैं। मन्दिरों में पूजा अर्चना के बाद फलों व बहुत सी मिठाइयों के साथ बड़े पैमाने पर परिवार का जलपान होता है।
लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करने के बाद सारी चीजें खत्म नहीं हो जातीं। लक्ष्मी जी को प्रसन्न करना है तो पूजा के बाद सभी कमरों में शंख और घंटी बजाएं ताकि घर की सारी नकारात्मकता दूर हो जाएं इसके बाद पूजा में पीली कौड़ियां रखें। पीली कौड़ी रखने से आर्थिक परेशानियां दूर होती हैं। वहीं शिवलिंग पर अक्षत यानी चावल चढ़ाएं। साथ में हल्दी की गांठ जरूरी रखें और पूजा के बाद इसे अपनी तिजोरी में रखें। इस दिन पीपल के पेड़ में जल चढ़ाएं इससे शनि का दोष और कालसर्प दोष खत्म हो जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार दिवाली के दिन ही मां लक्ष्मी ने जन्म लिया था। मान्यता है कि दिवाली के दिन ही माता लक्ष्मी का विवाह भगवान विष्णु से हुआ था। वहीं इसी दिन विघ्नहर्ता श्री गणेश के साथ मां सरस्वती की भी पूजा होती है। इन सभी की विधिवत पूजा करने से घर से दरिद्रता दूर हो जाती है।
दीवाली कार्तिक मास की अमावस्या की रात आती है। अमावस्या सिद्धि की रात मानी जाती है। कई लोग इस दिन साधना करके सिद्धियां प्राप्त करते हैं। दिवाली की रात को तंत्र मंत्र की रात भी इसलिए ही माना जाता है। यह रात्रि तंत्रिकों के लिए भी विशेष मानी जाती है। वहीं इस रात लोग अपने ईष्ट की आराधना करते हैं और मंत्र सिद्धि करते हैं। यही कारण है कि इसे दिवाली की रात को सिद्धि की रात्रि के लिए भी जाना जाता है।
500 ईसा वर्ष पूर्व की मोहनजोदड़ो में सभ्यता के प्राप्त अवशेषों में मिट्टी की एक मूर्ति के अनुसार, उस समय भी दिवाली मनाई जाती थी, उस मूर्ति में मातृदेवी के दोनों और दीप जलते दिखाई देते हैं।
त्रेता युग में भगवान राम, जब रावण को हराकर अयोध्या वापस लौटे थे तब श्रीराम के आगमन पर दीप जलाकर उनका स्वागत किया गया और खुशियां मनाई गई थी, इस दिन यह भी कथा प्रचलित है कि जब श्रीकृष्ण ने आताताई नराकसुर जैसे दुष्ट का वध किया तब ब्रजवासियों ने अपनी प्रसन्नता दीपों को जलाकर प्रकट की। कृष्ण ने अत्याचारी नरकासुर का वध दीपावली के एक दिन पहले चतुर्दशी को किया, इसी खुशी में अगले दिन अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थी।
धनतेरस वाले दिन लाए गए नए बही खातों की दिवाली पर पूजा करनी चाहिए। इसके लिए शुभ मुहूर्त जरूर देख लें। नवीन खाता पुस्तकों में लाल चंदन या कुमकुम से स्वास्तिक का चिह्न बनाना चाहिए। इसके बाद स्वास्तिक के ऊपर श्री गणेशाय नमः लिखना चाहिए। इसके साथ ही एक नई थैली लेकर उसमें हल्दी की पांच गांठे, कमलगट्ठा, अक्षत, दुर्गा, धनिया व दक्षिणा रखकर, थैली में भी स्वास्तिक का चिन्ह लगाकर सरस्वती मां का स्मरण करना चाहिए।
(1) लक्ष्मी, (2) गणेश, (3-4) मिट्टी के दो बड़े दीपक, (5) कलश, जिस पर नारियल रखें, वरुण (6) नवग्रह, (7) षोडशमातृकाएं, (8) कोई प्रतीक, (9) बहीखाता, (10) कलम और दवात, (11) नकदी की संदूकची, (12) थालियां, 1, 2, 3, (13) जल का पात्र, (14) यजमान, (15) पुजारी, (16) परिवार के सदस्य, (17) आगंतुक।
सबसे पहले भगवान गणेशजी, लक्ष्मीजी का पूजन करें। उनकी प्रतिमा के आगे 7, 11 अथवा 21 दीपक जलाएं तथा मां को श्रृंगार सामग्री अर्पण करें। मां को भोग लगा कर उनकी आरती करें। श्रीसूक्त, लक्ष्मीसूक्त व कनकधारा स्रोत का पाठ करें। खील, बताशे, मिठाई और फल का भोग लगाएं। इस तरह से आपकी पूजा पूर्ण होती है।
दिवाली वाले दिन महालक्ष्मी के महामंत्र ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद् श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मयै नम: का कमलगट्टे की माला से कम से कम 108 बार जाप करेंगे तो आपके ऊपर मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहेगी। दिवाली पर महालक्ष्मी के पूजन में पीली कौड़ियां जरूर रखें। ये महालक्ष्मी की काफी प्रिय मानी जाती है। इससे धन संबंधी सभी परेशानियां दूर होने की मान्यताएं हैं।
दिवाली के लिए पूजा का दो समय है। पहला समय फैक्ट्री और कारखानों के लिए तो दूसरा दुकानों और घरों के लिए। ज्योतिषाचार्य पंडित अवध नारायण द्विवेदी के अनुसार फैक्ट्री, कारखानों में पूजन के लिए उपयुक्त समय दोपहर 2:10 से 3:40 बजे के बीच होगा। इस समय स्थिर लग्न कुम्भ होगी। जबकि दूसरा मुहूर्त शाम 6:40 से रात 8:40 बजे के बीच होगा। इस समय स्थिर लग्न वृषभ लग्न होगी।
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 11:40 पी एम से 12:32 ए एम, अक्टूबर 28अवधि - 00 घण्टे 51 मिनट्सनिशिता काल - 11:40 पी एम से 12:32 ए एम, अक्टूबर 28सिंह लग्न - 01:13 ए एम से 03:31 ए एम, अक्टूबर 28लक्ष्मी पूजा मुहूर्त स्थिर लग्न के बिनाअमावस्या तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 27, 2019 को 12:23 पी एम बजेअमावस्या तिथि समाप्त - अक्टूबर 28, 2019 को 09:08 ए एम बजे
कृष्ण ने किया था नरकासुर का वध: दीपावली से एक दिन पहले यानी चतुर्दशी को भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था। इस खुशी में अगले दिन यानी अमावस्या को गोकुलवासियों ने दीप जलाकर खुशियां मनाई थीं।समुद्रमंथन से मां लक्ष्मी का प्रकट होना: मान्यता है कि इसी दिन समुद्रमंथन से देवी लक्ष्मी की उत्पत्ति हुई थी। माता ने सम्पूर्ण जगत को सुख-समृद्धि का वरदान दिया। इसलिए दिवाली के दिन देवी लक्ष्मी की पूजा होती है।
राजा बलि और हरि का वामन अवतार : ऐसा माना जाता है कि महाप्रतापी राजा बलि ने अपने बाहुबल से जब तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली थी तब बलि से भयभीत देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और बलि से तीन पग पृथ्वी दान के रूप में माँगी। बलि ने भगवान विष्णु की चालाकी को समझते हुए भी उन्हें निराश नहीं किया और तीन पग पृथ्वी दान में दे दी। श्री हरि ने तीन पग में तीनों लोकों को नाप लिया। राजा बलि की दानशीलता से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक का राज्य देते हुए कहा कि उनकी याद में भू लोकवासी प्रत्येक वर्ष दीपावली मनाएँगे।
बौद्ध धर्म की दीपावली : बौद्ध धर्म के प्रवर्तक गौतम बुद्ध जब 17 साल बाद अपने गृह नगर कपिल वस्तु लौटे तो उनके स्वागत में लाखों दीप जलाकर दीपावली मनाई थी।
सिखों की दिवाली: कार्तिक अमावस्या के दिन सिखों के छठे गुरु हरगोविन्दसिंहजी बादशाह जहांगीर की कैद से मुक्त होकर अमृतसर वापस लौटे थे।
पूजन शुरू करने से पहले गणेश लक्ष्मी के विराजने के स्थान पर रंगोली बनाएं। जिस चौकी पर पूजन कर रहे हैं उसके चारों कोने पर एक-एक दीपक जलाएं। इसके बाद प्रतिमा स्थापित करने वाले स्थान पर कच्चे चावल रखें फिर गणेश और लक्ष्मी की प्रतिमा को विराजमान करें। इस दिन लक्ष्मी, गणेश के साथ कुबेर, सरस्वती एवं काली माता की पूजा का भी विधान है। ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा के बिना देवी लक्ष्मी की पूजा अधूरी रहती है। इसलिए भगवान विष्ण के बांयी ओर रखकर देवी लक्ष्मी की पूजा करें।
माना जाता है कि रामायण और महाभारत काल से ही देश में दीपावली की परंपरा है। मान्यता है कि भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास से वापस अयोध्या लौटने और पांडवों के 13 वर्ष के वनवास-अज्ञातवास से लौटने पर लोगों ने दीप जलाकर अपनी खुशी का इजहार किया था। स्कंध पुराण,विष्णु पुराण के मुताबिक भगवान विष्णु और श्री लक्ष्मी के विवाह के उपलक्ष्य में दीपावली मनायी जाती है।
दीपावली पूजन के लिए जरूरी सामग्री कलावा, रोली, सिंदूर, एक नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र , फूल, पांच सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, कलश हेतु आम का पल्लव, चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी, अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली। कुशा, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार राक्षसों का वध करने के लिए देवी मां ने महाकाली का रूप धारण किया। लेकिन राक्षसों का वध करने के बाद भी जब महाकाली का क्रोध शांत नहीं हुआ तब भगवान शिव स्वयं उनके चरणों में लेट गए। भगवान शिव के शरीर को स्पर्श करते ही देवी महाकाली का क्रोध समाप्त हो गया। इसी की याद में उनके शांत रूप लक्ष्मी की पूजा की शुरुआत हुई। इसी रात इनके रौद्ररूप काली की पूजा का भी विधान है।
लक्ष्मी पूजा रविवार, अक्टूबर 27, 2019 पर
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त - 06:43 पी एम से 08:15 पी एम
अवधि - 01 घण्टा 32 मिनट्स
प्रदोष काल - 05:41 पी एम से 08:15 पी एम
वृषभ काल - 06:43 पी एम से 08:39 पी एम
अमावस्या तिथि प्रारम्भ - अक्टूबर 27, 2019 को 12:23 पी एम बजे
अमावस्या तिथि समाप्त - अक्टूबर 28, 2019 को 09:08 ए एम बजे