Dev Uthani Ekadashi 2019 Date, Puja Vidhi, Muhurat, Time, Samagri: देवोत्थान एकादशी हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक है। हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी पर ये पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु अपनी चार महीने की निद्रा से जाग जाते हैं। ये देव के जागने यानी उठने की तिथि है, इसीलिए इसे देवउठनी एकादशी या प्रबोधिनी एकादशी भी कहा जाता है। इस साल ये एकादशी 8 नवंबर को पड़ रही है। इस तिथि पर भगवान विष्णु और महालक्ष्मी के साथ ही तुलसी की भी विशेष पूजा की जाती है। कई स्थानों पर इस दिन तुलसी जी का विवाह भगवान शालिग्राम के साथ करवाने की भी परंपरा है। जानिए इस एकादशी का महत्व, कथा और पूजा विधि…
देव उठनी एकादशी की अपने प्रियजनों को ऐसे दें बधाई
तुलसी विवाह कब है? जानिए इसकी पूजा विधि, मुहूर्त और महत्व
देवउठनी एकादशी की कथा (Dev Uthani Ekadashi Katha) :
एक बार माता लक्ष्मी भगवान विष्णु से पूछती हैं कि स्वामी आप या तो रात-दिन जगते ही हैं या फिर लाखों-करोड़ों वर्ष तक योग निद्रा में ही रहते हैं, आपके ऐसा करने से संसार के समस्त प्राणी उस दौरान कई परेशानियों का सामना करते हैं। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा। लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- ‘देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष 4 माह वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा।
मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं आपके साथ निवास करूंगा।’
देव उठनी एकादशी की पूजा विधि, मंत्र, शादी के मुहूर्त और सभी जानकारी जानने के लिए बने रहिए हमारे इस ब्लॉग पर…

Highlights
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
पतिव्रत धर्म के कारण जलंधर अजेय हो गया था। इसने एक युद्ध में भगवान शिव को भी पराजित कर दिया। अपने अजेय होने पर इसे अभिमान हो गया और स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा। दुःखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आतंक को समाप्त करने की प्रार्थना करने लगे।
एकादशी पर भगवान की पूजा में सिंघाड़ा, बेर, मूली, गाजर, केला और बैंगन सहित अन्य मौसमी सब्जियां अर्पित की जाती हैं। धार्मिक मान्यता है कि सिंघाड़ा माता लक्ष्मी का सबसे प्रिय फल है। इसका प्रसाद लगाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है। वहीं भगवान विष्णु को केला अर्पित किया जाता है। इससे घर में हमेशा धन की वृद्धि रहती है। वहीं बैंगन, मूली, गाजर स्वास्थ्य का प्रतीक है।
कभी भी सूर्यास्त के बाद तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। -शास्त्रों के अनुसार तुलसी के पत्ते अमावस्या, चतुर्दशी तिथि, रविवार, शुक्रवार और सप्तमी तिथि को तोड़ना वर्जित माना गया है।-अकारण तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ने चाहिए। यदि बताए गए वर्जित दिनों में तुलसी के पत्तों की जरुरत हो तो तुलसी के झड़े हुए पत्तों का उपयोग किया जा सकता है। तुसली के पत्ते न तोड़े। -यदि वर्जित की गई तिथियों में से किसी दिन तुलसी के पत्तों की आवश्यकता हो तो उस दिन से एक दिन पहले ही तुलसी के पत्ते तोड़कर अपने पास रख लें। पूजा में चढ़े हुए तुलसी के पत्ते धोकर फिर से पूजा में उपयोग किए जा सकते हैं।
एक पौराणिक कथा अनुसार वृंदा ने विष्णु जी को यह शाप दिया था कि तुमने मेरा सतीत्व भंग किया है। अत: तुम पत्थर के बनोगे। यही पत्थर शालिग्राम कहलाया। विष्णु ने कहा, ‘हे वृंदा! मैं तुम्हारे सतीत्व का आदर करता हूं लेकिन तुम तुलसी बनकर सदा मेरे साथ रहोगी। जो मनुष्य कार्तिक एकादशी के दिन तुम्हारे साथ मेरा विवाह करेगा, उसकी हर मनोकामना पूरी होगी।’ शालिग्राम और तुलसी का विवाह भगवान विष्णु और महालक्ष्मी का ही प्रतीकात्मक विवाह माना जाता है।
सबसे सुंदर वो नजारा होगा,दिवार पे दीयों का माला होगा,हर आंगन में तुलसी मां विराजेंगी और आपके लिए पहला विश हमारा होगा।।देवउठनी एकादशी की शुभकामनाएं।।
एकादशी पर भगवान की पूजा में सिंघाड़ा, बेर, मूली, गाजर, केला और बैंगन सहित अन्य मौसमी सब्जियां अर्पित की जाती हैं। धार्मिक मान्यता है कि सिंघाड़ा माता लक्ष्मी का सबसे प्रिय फल है। इसका प्रसाद लगाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है। वहीं भगवान विष्णु को केला अर्पित किया जाता है। इससे घर में हमेशा धन की वृद्धि रहती है। वहीं बैंगन, मूली, गाजर स्वास्थ्य का प्रतीक है।
एकादशी के व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है और इसमें सिर्फ एक समय फलाहार लेने का प्रावधान बताया गया है। एकादशी का व्रत करने वाले को इस दिन अनाज के साथ नमक, लाल मिर्च और दूसरे मसाले नहीं खाना चाहिए। इस दिन व्रत करने वाले को दूध, दही, फल, दूध से बनी मिठाइयां, ही कुटू और सिंघाड़े के आटे से बने व्यंजन ग्रहण करना चाहिए। इसके साथ ही द्वादशी तिथि को व्रत का पारण करने के साथ एक व्यक्ति के लिए एक समय की भोजन सामग्री यानी सीदा दान करने का भी विधान है।
शास्त्रों में एकादशी के दिन चावल या चावल से बनी चीजों के खाने मनाही है। मान्यता है कि इस दिन चावल खाने वाला व्यक्ति रेंगने वाले जीव की योनि में जन्म पाता है। लेकिन द्वादशी को चावल खाने से इस योनि से मुक्ति भी मिल जाती है। भगवान विष्णु और उनके किसी भी अवतार वाली तिथि में चावल का प्रयोग नहीं करना चाहिए।
चार महीने के बाद देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागेंगे। माना जाता है कि उनके जागने के साथ ही सारे शुभ कार्य शुरू हो जाते हैं। लेकिन इस साल देवोत्थान एकादशी ग्रहों के राशि परिवर्तन के चलते बताया जा रहा है कि इस बार विवाह के मुहू्र्त 19 नवंबर से रहेंगे। इससे पहले शादी के मुहूर्त का समय काफी कम है। जिस कारण विवाह के लिए इससे पहले की तिथियां शुभ नहीं मानी जा रही हैं।
देवउठनी एकादशी विवाह शुभ मुहूर्त: देव उठनी एकादशी से शादी के शुभ मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। लेकिन ग्रहों के राशि परिवर्तन के कारण शादी ब्याह के सबसे सर्वोत्तम मुहूर्त 19 नवंबर से शुरू होंगे। जो इस प्रकार है…
19 नवंबर – दिन मंगलवार, तिथि सप्तमी, नक्षत्र मघा, मुहूर्त: 11:10 पी एम से 06:48 ए एम तक (20 नवंबर)
20 नवंबर – दिन बुधवार, तिथि अष्टमी, नक्षत्र मघा, मुहूर्त: 06:48 से 07:17 ए एम तक
21 नवंबर – दिन गुरुवार, तिथि नवमी, नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी, मुहूर्त: 06:29 पी एम से 10:17 पी एम तक
22 नवंबर – दिन शुक्रवार, तिथि एकादशी, नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी, मुहूर्त: 09:01 ए एम से 06:50 ए एम तक (23 नवंबर)
23 नवंबर – दिन शनिवार, तिथि द्वादशी, नक्षत्र हस्त, मुहूर्त: 06:50 ए एम से 02:46 पी एम तक
24 नवंबर – दिन रविवार, तिथि त्रयोदशी, नक्षत्र स्वाती, मुहूर्त: 12:48 पी एम से 01:06 ए एम (नवंबर 25) तक
28 नवंबर – दिन गुरुवार, तिथि द्वितीया, नक्षत्र मूल, मुहूर्त: 08:22 ए एम से 04:18 पी एम तक, दूसरा मुहूर्त: 06:18 पी एम से 06:55 ए एम तक (29 नवंबर)
30 नवंबर – दिन शनिवार, तिथि पंचमी, नक्षत्र उत्तराषाढ़ा, मुहूर्त: 06:05 ए एम से 06:56 ए एम तक (1 दिसंबर)
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु समेत सभी देवता योग निद्रा से बाहर आते हैं, ऐसे में इस दिन भगवान विष्णु समेत अन्य देवों की पूजा की जाती है। देवउठनी एकादशी को तुलसी विवाह भी कराने का विधान है। इस दिन दान, पुण्य आदि का भी विशेष फल प्राप्त होता है।
“उत्तिष्ठो उत्तिष्ठ गोविंदो, उत्तिष्ठो गरुणध्वज।
उत्तिष्ठो कमलाकांत, जगताम मंगलम कुरु।।”
आसान शब्दों में इसे कहते हैं: “देव उठो, देव उठो! कुंआरे बियहे जाएं; बीहउती के गोद भरै।।”
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवोत्थान एकादशी के रूप में मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं। देवोत्थान एकादशी के दिन चातुर्मास का समापन होता है। जिसके बाद से सभी शुभ कार्य जैसे मुंडन, उपनयन और विवाह आदि मांगलिक कार्यों का आरंभ हो जाता है। इस बार देवोत्थान एकादशी 08 नवंबर दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। देवोत्थान एकादशी के दिन भगवान विष्णु सहित अन्य देवताओं की पूजा की जाती है। भगवान विष्णु अपने शरीर में कुछ आभूषण और शस्त्र धारण करते हैं जानिए इनके बारे में
तुलसी संग शालिग्राम ब्याहे
सज गई उनकी जोड़ी
तुलसी विवाह संग लगन शुरू हुए
जल्दी ले के आओ पिया डोली
देवउठनी एकादशी की शुभकामनाएं।।
इस वर्ष एकादशी पर बड़ा ही शुभ संयोग बना है। एकादशी शुक्रवार के दिन है। इस दिन की स्वामिनी विष्णु प्रिया देवी लक्ष्मी हैं। इस दिन व्रत करने से एक साथ लक्ष्मी और नारायण के व्रत का फल व्रतियों को प्राप्त होगा। जो व्रती वैभव लक्ष्मी व्रत करते हैं उनके लिए अच्छी बात यह है कि उन्हें एक साथ दो व्रत का लाभ मिलेगा।
इस दिन जगत के पालनकर्ता भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जाग जाते हैं और सृष्टि का कार्यभार फिर से संभालते हैं। इसी के साथ चार महीने से रूके हुये शादी ब्याह के मुहूर्त और सभी मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इस दिन भगवान विष्णु, माता लक्ष्मी और तुलसी जी की विधि विधान पूजा की जाती है। Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi
ज्योतिष शास्त्र में भी भगवान विष्णु (नारायण) की पूजा का महत्व बताया गया है। जिसके अनुसार नारायण की पूजा भौतिक सुख-सुविधा, धन-वैभव की प्राप्ति, अच्छी सेहत और लंबी आयु की कामना के लिए की जाता है। आमतौर पर लोग इन सभी सुख के साधनों को पाने के लिए लक्ष्मी की पूजा करते हैं, परंतु कहते हैं कि घर में लक्ष्मी का आगमन बिना नारायण का नहीं होता है। इसलिए पंडित देव उठनी एकादशी के बारे में यह सलाह देते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा जरूर करनी चाहिए। धार्मिक मान्यता है कि देवउठनी एकादशी के दिन विष्णु की विधिवत पूजा करने से जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति होती है। लाइफ में पैसा और पावर चाहिए तो प्रसन्न करें लक्ष्मी नारायण को, इस पूजा विधि से
एकादशी का व्रत करने वालों के पितृ मोक्ष को प्राप्त कर स्वर्ग में चले जाते हैं। एकादशी का व्रत करने वालों के पितृपक्ष के दस पुरुष, मातृपक्ष के दस पुरुष और दूसरे पितृजन बैकुण्ठवासी होते हैं। एकादशी का व्रत यश, कीर्ति , वैभव, धन, संपत्ति और संतान को उन्नति देने वाला है।
बोधिनी एकादशी व्रत। तुलसी विवाह। पंचक चालू है। सूर्य दक्षिणायन। सूर्य दक्षिण गोल। हेमंत ऋतु। प्रात: 10.30 से मध्याह्न 12 बजे तक राहुकालम्।
08 नवंबर, शुक्रवार, 17 कार्तिक (सौर) शक 1941, 24 कार्तिक मास प्रविष्टे 2076, 10 रवि-उल-अव्वल सन् हिजरी 1441, कार्तिक शुक्ल एकादशी मध्याह्न 12.25 बजे तक उपरांत द्वादशी, पूर्वा भाद्रपदा नक्षत्र मध्याह्न 12.12 बजे तक तदनंतर उत्तरा भाद्रपदा नक्षत्र, व्याघात योग प्रात: 9.33 बजे तक पश्चात् हर्षण योग, विष्टि (भद्रा) करण मध्याह्न 12.25 बजे तक। चंद्रमा मीन राशि में (दिन-रात)।
एकादशी पर भगवान की पूजा में सिंघाड़ा, बेर, मूली, गाजर, केला और बैंगन सहित अन्य मौसमी सब्जियां अर्पित की जाती हैं। धार्मिक मान्यता है कि सिंघाड़ा माता लक्ष्मी का सबसे प्रिय फल है। इसका प्रसाद लगाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती है। वहीं भगवान विष्णु को केला अर्पित किया जाता है। इससे घर में हमेशा धन की वृद्धि रहती है। वहीं बैंगन, मूली, गाजर स्वास्थ्य का प्रतीक है।
देवोत्थान एकादशी के दिन पूर्ण और शुद्ध मंत्रोच्चारण, स्त्रोत पाठ, शंख घंटा ध्वनि के साथ भजन-कीर्तन कर नारायण को विधि विधान के साथ ही जगाना चाहिए। भगवान को जगाने के लिए इन मंत्रों का उच्चारण कर सकते हैं-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥ उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥ शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।
पदम् पुराण में लिखा है कि देवोत्थान एकादशी व्रत रखने से एक हज़ार अश्वमेघ यज्ञ और सौ राजसूय यज्ञ जैसा फल और धर्म प्राप्त होता है। इसलिए इस दिन नदी में स्नान से लेकर भगवान विष्णु की उपासना और विधि विधान से पूजा का खास महत्व है। इस दिन सायं काल के शुभ मुहूर्त में चूना और गेरू से रंगोली बनाई जाती है। घी के ग्यारह दीये जलाकर भगवान का आह्वान किया जाता है। उन्हें उठाया जाता है। फिर उन्हें प्रसाद स्वरूप ईख,अनार,केला,सिंघाड़ा,लड्डू,पतासे,मूली आदि ऋतुफल के साथ सीजन के नए अनाज से पूजा की जाती है।
आज देवोत्थान एकादशी है। इसे प्रबोधिनी एकादशी व्रत, देव उठनी एकादशी भी कहा जाता है। इसी दिन तुलसी विवाह का महत्व है, हालांकि इसमें विवाह तिथि को लेकर संशय की स्थिति है। आज पूरे दिन भगवान विष्णु की आराधना और उपवास के बाद सायं काल उत्तम बेला में आरती और षोडशोपचार विधि से पूजा की जाएगी। इसमें गन्ने और केला के साथ पूजा का अलग विधान है। इसके अलावा ध्यान रहे पूजा में तुलसी को अवश्य शामिल करें। आज शालिग्राम स्वरूप की पूजा होती है और उनका तुलसी के साथ विवाह संपन्न कराया जाता है।
वैसे तो साल में तीन बार ऐसे मौके आते हैं जब शादी, मुंडन या अन्य मांगलिक कार्यों के लिए सर्वोत्तम दिन माना जाता है। वो है बसंत पंचमी, देवउठान एकादशी व फुलैरा दौज। पर इस बार देवोत्थान एकादशी पर कोई अबूझ मुहूर्त नहीं पड़ रहा है। सालों बाद राशियों का कुछ ऐसा हेरफेर हुआ है कि देवउठान एकादशी पर शादी का मुहूर्त नहीं है। देवोत्थान एकादशी के बाद पहला विवाह मुहूर्त 18 नवंबर है।
देवोत्थान एकादशी या प्रबोधनी एकादशी शुक्रवार यानी 8 नवंबर को है। इस दिन भगवान को पूरे विधि-विधान के साथ जगाया जाएगा। दिनभर भक्त भगवान विष्णु की उपासना करेंगे और शाम को विधि विधान से पूजा के बाद उन्हें जगाया जाएगा और प्रसाद वितरण होगा। इस दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम स्वरूप की तुलसी के साथ विवाह की मान्यता है।
देवउठनी एकादशी शुक्रवार 8 नवंबर को है। इस दिन जगत के पालनहार भगवान विष्णु योग निद्रा से जागेंगे, उनके साथ ही सभी देव योग निद्रा से बाहर आएंगे। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी कहते हैं। इस दिन तुलसी और शालिग्राम के विवाह का भी प्रचलन है। इस दिन उपवास रखने का भी विशेष महत्व है। कहते हैं- इससे मोक्ष की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि भगवान विष्णु की पूजा माता तुलसी के बिना अधूरी मानी जाती है। कहा जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग भी नहीं चखते हैं।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार एक बार भगवान श्री हरि विष्णु से लक्ष्मी जी ने पूछा- “हे नाथ! आप दिन रात जागा करते हैं और सोते हैं तो लाखों-करड़ों वर्ष तक सो जाते हैं तथा इस समय में समस्त चराचर का नाश कर डालते हैं। इसलिए आप नियम से प्रतिवर्ष निद्रा लिया करें। इससे मुझे भी कुछ समय विश्राम करने का समय मिल जाएगा।” लक्ष्मी जी की बात सुनकर नारायण मुस्कुराए और बोले- “देवी! तुमने ठीक कहा है। मेरे जागने से सब देवों और खासकर तुमको कष्ट होता है। तुम्हें मेरी वजह से जरा भी अवकाश नहीं मिलता। अतः तुम्हारे कथनानुसार आज से मैं प्रतिवर्ष चार मास वर्षा ऋतु में शयन किया करूंगा। उस समय तुमको और देवगणों को अवकाश होगा। मेरी यह निद्रा अल्पनिद्रा और प्रलय कालीन महानिद्रा कहलाएगी। मेरी यह अल्पनिद्रा मेरे भक्तों के लिए परम मंगलकारी होगी। इस काल में मेरे जो भी भक्त मेरे शयन की भावना कर मेरी सेवा करेंगे और शयन व उत्थान के उत्सव को आनंदपूर्वक आयोजित करेंगे उनके घर में, मैं तुम्हारे साथ निवास करूंगा।”
इस दिन पूजा स्थल को साफ करके सांयकाल में वहां चूना और गेरू से रंगोली बनाएं। साथ ही घी के 11 दीपक देवताओं को निमित्त करते हुए जलाएं। द्राक्ष,ईख,अनार,केला,सिंघाड़ा,लड्डू,पतासे,मूली आदि ऋतुफल इत्यादि पूजा सामग्री के साथ ही रख दें। यह सब श्रद्धापूर्वक श्री हरि को अर्पण करने से व्यक्ति पर उनकी कृपा सदैव बनी रहती है।
देवउठनी एकादशी के दिन स्नान करने के बाद भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की भी विधिवत पूजा जरूर होता है। याद रखें ऐसा करने पर ही आपकी पूजा पूर्ण मानी जाती है और व्यक्ति को मां लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
पीपल के वृक्ष में दीपक जलाएं -
ऐसा माना जाता है कि पीपल के वृक्ष में देवताओं का वास होता है। यही वजह है कि देवउठनी एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष के पास सुबह गाय के घी का दीपक जलाना शुभ माना जाता है।
शास्त्रों के मुताबिक भगवान विष्णु ये चार महीनो के लिए सो जाते हैं और इस दौरान सभी मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं। जब देव (भगवान विष्णु) जागते हैं तभी कोई मांगलिक कार्य शुरू होते है। इस दिन भगवान विष्णु के उठने के कारण ही देव जागरण या उत्थान होने के कारण ही इसे देवोत्थान एकादशी कहते हैं। इस दिन उपवास रखने का विशेष महत्व है।
निर्जला या सिर्फ जूस और फल पर ही उपवास रखना चाहिए।
अगर रोगी,वृद्ध,बालक,या व्यस्त व्यक्ति हैं तो वह कुछ घंटों का उपवास रखकर अपना व्रत खोल सकता है।
इस दिन भगवान विष्णु या दूसरे किसी भी भगवान की उपासना कर सकते हैं।
इस दौरान बिलकुल तामसिक और मसालेदार खाना न खाए।
देवउठनी एकादशी के दिन "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः मंत्र का लगातार जाप करना चाहिए।
आपका चन्द्रमा कमजोर है या किसी प्रकार की मानसिक समस्या है तो जल और फल खाकर एकादशी का उपवास करें।
देव उठनी एकादशी पर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-
उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा। >
इसका भावार्थ है - हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भी देव को जगाया जा सकता है-
'उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥'
'उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥'
'शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।'
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी को देव विश्राम करने चले जाते हैं और फिर चार महीने बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी यानी देवउठनी एकादशी के दिन उठते हैं। इस दिन भगवान विष्णु भी अपनी योग निद्रा से जाग जाते हैं। भगवान हरि के जागने के साथ ही सभी तरह के मांगलिक कार्य फिर से शुरू हो जाते हैं। इस दिन तुलसी विवाह कराना काफी शुभ माना जाता है। इस दिन व्रत भी रखा जाता है।
- एकादशी के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान कर साफ सुथरे वस्त्र धारण कर लें।
- इसके बाद भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत का संकल्प लें।
- अब घर के आंगन में भगवान विष्णु के चरणों की आकृति बनाएं।
- एक ओखली में गेरू से भगवान विष्णु का चित्र बना लें।
- अब ओखली के पास फल, मिठाई सिंघाड़े और गन्ना रखें। फिर उसे डलिया से ढक दें।
- रात के समय घर के बाहर और पूजा स्थल पर दीपक जरूर जलाएं।
- इस दिन परिवार के सभी सदस्यों को भगवान विष्णु समेत सभी देवताओं की पूजा करनी चाहिए।
- इसके बाद शंख और घंटी बजाकर भगवान विष्णु को यह कहते हुए उठाएं- उठो देवा, बैठा देवा, आंगुरिया चटकाओ देवा, नई सूत, नई कपास, देव उठाए कार्तिक मास।
एकादशी की शाम को तुलसी के पौधे के गमले को गेरु आदि से सजाते हैं। फिर उसके चारों ओर ईख का मण्डप बनाया जाता है। उसके ऊपर सुहाग की प्रतीक चुनरी ओढ़ाते हैं। गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को चूड़ी पहनाकर उनका श्रृंगार करते हैं। इसके बाद तुलसी जी और शालिग्राम जी की विधिवत पूजा की जाती है। इसके बाद एक नारियल दक्षिणा के साथ टीका के रूप में रखते हैं तथा भगवान शालिग्राम की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसी जी की सात परिक्रमा कराएं और आरती के पश्चात विवाहोत्सव पूर्ण करें।
देव उठनी एकादशी से शादी के शुभ मुहूर्त शुरू हो जाते हैं। लेकिन ग्रहों के राशि परिवर्तन के कारण शादी ब्याह के सबसे सर्वोत्तम मुहूर्त 19 नवंबर से शुरू होंगे। जो इस प्रकार है… 19 नवंबर – दिन मंगलवार, तिथि सप्तमी, नक्षत्र मघा, मुहूर्त: 11:10 पी एम से 06:48 ए एम तक (20 नवंबर) 20 नवंबर – दिन बुधवार, तिथि अष्टमी, नक्षत्र मघा, मुहूर्त: 06:48 से 07:17 ए एम तक 21 नवंबर – दिन गुरुवार, तिथि नवमी, नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी, मुहूर्त: 06:29 पी एम से 10:17 पी एम तक 22 नवंबर – दिन शुक्रवार, तिथि एकादशी, नक्षत्र उत्तरा फाल्गुनी, मुहूर्त: 09:01 ए एम से 06:50 ए एम तक (23 नवंबर) 23 नवंबर – दिन शनिवार, तिथि द्वादशी, नक्षत्र हस्त, मुहूर्त: 06:50 ए एम से 02:46 पी एम तक 24 नवंबर – दिन रविवार, तिथि त्रयोदशी, नक्षत्र स्वाती, मुहूर्त: 12:48 पी एम से 01:06 ए एम (नवंबर 25) तक 28 नवंबर – दिन गुरुवार, तिथि द्वितीया, नक्षत्र मूल, मुहूर्त: 08:22 ए एम से 04:18 पी एम तक, दूसरा मुहूर्त: 06:18 पी एम से 06:55 ए एम तक (29 नवंबर) 30 नवंबर – दिन शनिवार, तिथि पंचमी, नक्षत्र उत्तराषाढ़ा, मुहूर्त: 06:05 ए एम से 06:56 ए एम तक (1 दिसंबर)
देवउठनी एकादशी व्रत मुहूर्त-
7 नवंबर 2019 प्रात: 09:55 से 8 नवंबर 2019 को रात 12:24 तक
देव उठनी एकादशी के दिन ऐसे करें पूजा: इस दिन पूजा स्थल को साफ करके शाम में वहां चूना और गेरू से रंगोली बनाएं। साथ ही घी के 11 दीपक देवताओं को निमित्त करते हुए जलाएं। फिर भगवान को ईख यानी गन्ना, अनार, केला, सिंघाड़ा, लड्डू, बताशे, मूली आदि ऋतुफल अर्पित करें। यह सब श्रद्धापूर्वक श्री हरि को अर्पण करने से व्यक्ति पर उनकी कृपा सदैव बनी रहती है।
श्री हरि को इस मंत्र का उच्चारण करते हुए जगाएं:
भगवान को जगाने के लिए इन मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए-
उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये। त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥
उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव। गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥
शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।