Chhath Puja 2019 (Kharna Puja): हिन्दू धर्म में छठ पर्व को बेहद महत्व प्रदान किया गया है। कार्तिक मास की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पर्व नहाय-खाय के साथ 31 अक्टूबर से शुरू हो चुका है। छठ पर्व के दूसरे दिन यानी 01 नवंबर को खरना पूजा है। खरना पूजा के बाद 02 नवंबर को छठ महापर्व का संध्याकालीन अर्घ्य आयोजन होगा और 03 नवंबर को सूर्य देव को प्रातःकालीन अर्घ्य दिया जाएगा। खरना पूजा में व्रती प्रसाद के रूप में गुड़ की खीर, रोटी सहित फल इत्यादि का सेवन करते हैं। इसके बाद अगले 36 घंटे तक के लिए निर्जला व्रत रखा जाता है। मान्यता है कि खरना पूजा से षष्ठी देवी प्रसन्न होती हैं।
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छठ खरना पूजा विधि (Chhath Puja Vidhi) :
छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना पूजा की जाती है। इस दिन व्रती महिलाएं पूरे दिन व्रत रखतीं हैं। इसके बाद शाम में सूर्यास्त के बाद खीर-पूरी, केले, मिठाई और पान-सुपारी का भोग लगाया जाता है। इस प्रसाद को केले पत्ते पर लगाया जाता है। फिर इसे घर-परिवार और आस पड़ोस में बांटा जाता है।
प्रसाद को पकाने के लिए मिट्टी के चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। प्रसाद बनाने के लिए नए चूल्हे का इस्तेमाल किया जाता है। इसलिए इसके इस्तेमाल में ये ध्यान रखा जाता है कि चूल्हे पर किसी तरह की नमक वाली चीजें और मांसाहारी व्यंजन न बनाया गया हो। खरना के दिन प्रसाद के लिए बनने वाला खीर व्रती अपने हाथों से पकाते हैं। शाम को खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत शुरू हो जाता है।
इस साल छठ महापर्व के दिन षष्ठी तिथि का आरंभ 02 नवंबर (शनिवार) को 00: 51 मिनट से शुरू हो रहा है। षष्ठी तिथि का समापन 03 नवंबर को 01:31 बजे होगा। छठ पूजा के दिन सूर्योदय का समय 06 बजकर 33 मिनट है। छठ पूजा के दिन सूर्यास्त का समय शाम 5 बजकर 36 मिनट है।

Highlights
- छठ पूजा में बांस की टोकरी का विशेष महत्व होता है। इसमें सूर्य अर्घ्य का सामान पूजा स्थल तक लेकर जाते हैं और भेंट करते हैं।
- दूसरी चीज है छठ पूजा का प्रसाद ठेकुआ। गुड़ और गेहूं के आटे से बना ठेकुआ छठ पर्व का प्रमुख प्रसाद है। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
- गन्ना पूजा में प्रयोग की जाने वाली प्रमुख सामग्री होती है। क्योंकि गन्ना से अर्घ्य दिया जाता है और घाट पर घर भी बनाया जाता है।
- छठ में केले का पूरा गुच्छा छठ मइया को भेंट किया जाता है। इसलिए इसे भी पूजा में अवश्य शामिल करें।
- शुद्ध जल और दूध का लोटा... यह अर्घ्य देने के काम आता है और अर्घ्य ही इसी पूरी पूजा के केन्द्र में होता है।
एक बांस के सूप में केला एवं अन्य फल, अलोना प्रसाद, ईख आदि रखकर उसे पीले वस्त्र से ढक दें। तत्पश्चात दीप जलाकर सूप में रखें और सूप को दोनों हाथों में लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार अस्त होते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
ॐ एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भक्त्या गृहाणार्घ्य दिवाकर:॥
छठ पूजा को मुख्य रूप से बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत नेपाल में मनाया जाता है। हालांकि लोक आस्था के इस महापर्व को देश के प्रायः सभी भागों में मनाया जाता है। छठ पर्व के पीछे पौराणिक मान्यता है कि यह सूर्यवंशी राजाओं के प्रमुख पर्व में शामिल था। मान्यता है कि मगध के राजा जरासंध के पूर्वज को कुष्ट रोग हो गया था। इस रोग के छुटकारा पाने के लिए उन्होंने सूर्य की उपासना की थी। कहते हैं कि सूर्य की उपासन के कारण राजा के पूर्वज को कुष्ट रोग से मुक्ति मिल गई थी। जिसके बाद छठ पर सूर्य देव की उपासना आरंभ हुई।
छठ पूजा में प्रयोग होने वाली इन सामग्रियों को पहले ही कर लें एकत्रित - पहनने के लिए नए कपड़े, दो से तीन बड़ी बांस से टोकरी, सूप, पानी वाला नारियल, गन्ना, लोटा, लाल सिंदूर, धूप, बड़ा दीपक, चावल, थाली, दूध, गिलास, अदरक और कच्ची हल्दी, केला, सेब, सिंघाड़ा, नाशपाती, मूली, आम के पत्ते, शकरगंदी, सुथनी, मीठा नींबू (टाब), मिठाई, शहद, पान, सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम और चंदन.
शुक्रवार 1 नवंबर यानी आज व्रती संध्या के समय छठ मैय्या के लिए माटी के चूल्हे पर नए बर्तन में गुड़ और चावल से खीर बनाएंगे। यही खरना का मुख्य प्रसाद है। इसके अलावा गुड़ की पूड़ियां, सादी पूरियां और विभिन्न तरह की मिठाइयां बनाकर केले के पत्तों पर छठ मैय्या को भोग लगाया जायेगा। भोग लगाने के बाद व्रती इसी प्रसाद को ग्रहण करेंगे। पूरे दिन में यही व्रती का आहार होगा। इस पवित्र भोजन को ग्रहण करने के बाद व्रती अगले 36 से 40 घंटे तक कुछ भी नहीं खाएंगे जबतक कि वह उगते सूर्य को अर्घ्य ना दे लें। खरना के दिन भी पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और शाम के समय छठी मैया की पूजा कर प्रसाद ग्रहण किया जाता है।
आमतौर पर खरना का प्रसाद बनाने के लिए मिट्टी का चुल्हा और आम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है। – सबसे पहले चावल को पानी में भिगोकर छोड़ दें। – अब दूध को आधे से एक घंटे तक उबालें और फिर उसमें भिगोए हुए चावल को डाल दें। – इसके बाद इसे कवर कर के उबलने के लिए छोड़ दें। ध्यान रहे बीच-बीच में चलाते रहें वरना चिपकने लगेगा। – इसमें गुड़ डाल दें और अच्छी तरह मिला लें। इसमें आप मेवा भी डाल सकते हैं। – इसके बाद रोटी बनाएं और फिर उसपर अच्छी तरह शुद्ध घी लगा लें।
छठ के दूसरे दिन खरना होता है। इस दिन व्रती सुबह से निर्जला व्रत रखकर यानी कि अन्न जल कुछ भी ग्रहण नहीं करके शाम को मिट्टी के चूल्हे पर गुड़ और चावल की खीर बनाते हैं। खीर के साथ रोटी भी बनाई जाती है। रोटी और खीर के साथ मौसमी फल जिसमें केला जरूर शामिल किया जाता है और मिठाई के साथ एक केले के पत्ते पर रखकर इस प्रसाद को छठ माता को चढ़ाया जाता है। इसके बाद व्रती खुद भी इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं और परिवार के बाकी लोगों को भी प्रसाद बांटा जाता है। बता दें, यह प्रसाद चूल्हें पर आम की लकड़ियों में ही बनाया जाता है।
- खरना के दिन से महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
- इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं शाम को स्नान करके विधि-विधान से रोटी और गुड़ की खीर का प्रसाद तैयार करती हैं। खरना के दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और शाम के समय इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद से ही 36 घंटों का निर्जला व्रत रखा जाता है।
- खीर के अलावा पूजा के प्रसाद में मूली, केला भी रखा जाता है।
- इस दिन मिट्टी के चूल्हे पर आम की लकड़ी जलाकर प्रसाद तैयार किया जाता है।
- व्रती महिलाएं भगवान सूर्य की पूजा-अर्चना करने के बाद प्रसाद ग्रहण करती हैं।
सूर्य उपासना के छठ पर्व की शुरूआत नहाय-खाय से होती है। इसके अगले दिन खरना किया जाता है। खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण। छठ का व्रत करने वाले व्रती नहाय खाय के दिन पूरा दिन उपवास रखते हैं और केवल एक ही समय भोजन करके अपने शरीर और मन तक को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है। यही वजह है कि इसे खरना के नाम से बुलाया जाता है। इस दिन व्रती साफ मन से अपने कुलदेवता और छठ मैय्या की पूजा करके उन्हें गुड़ से बनी खीर का प्रसाद चढ़ाते हैं। आज के दिन शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद ही व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
चावल के लड्डू छठी मैय्या को खूब प्रिय है। इन लड्डुओं को विशेष चावल तैयार किया जाता है जो धान की कई परतों से तैयार होते हैं।
छठ पर्व के चौथे दिन कार्तिक शुक्ल सप्तमी की सबुह उगते हुए सूर्य यानी ऊषा को अर्घ्य दिया जाता है। व्रती फिर से इस दिन इकट्ठे होते हैं और अर्घ्य की तैयारी करते हैं। व्रती पानी में खड़े होकर सूर्य भगवान के निकलने का पूरी श्रद्धा से इंतजार करते हैं। जैसे ही सूर्योदय होता है सभी छठी मैया का जयकारा लगाते हुए सूर्य को अर्घ्य देते हैं। इस बार सूर्य का अर्घ्य और पारण 3 नवंबर को है।
तीसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल षष्ठी को छठ का प्रसाद बनाया जाएगा। सारे प्रसाद घर में तैयार किए जाते हैं। ठेकुआ से लेकर कसार के आलावा जितने भी प्रसाद होते हैं उसे व्रती घर पर ही तैयार करती है। वहीं छठ के लिए इस्तेमाल होने वाले बर्तन बांस या फिर मिट्टी के बने होते हैं। तीसरे दिन शाम को सूप या टोकरी(दउरी) में अर्घ्य का सूप सजाया जाता है। सभी परिवार के लोग घाट की तरफ बढ़ते हैं। फिर शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद या तो घर लौट जाते हैं नहीं तो दूर दराज के लोग घाट पर ही रात बिताते हैं और अल सुबह ही ऊषा सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी में जूट जाते हैं।
5 कप दूध,
1/4 कप चावल
1/2 गुड़ या गन्ने के रस का इस्तेमाल कर सकते हैं.
10-15 किशमिश
4 हरी इलायची
10-12 बादाम , टुकड़ों में कटा हुआ
चावल की खीर बनाने की विधि
1. पैन में चावल और दूध को उबाल लें.
2. हल्की आंच पर तब तक पकाएं जब तक चावल पक न जाए और दूध गाड़ा न हो जाए.
3. इसके बाद इसमें इलायची पाउडर, गुड़ या गन्ने का रस और किशमिश मिलाएं।
4. सारी सामग्री डालने के बाद लगातार तब तक चलाएं जब तक गुड़ पूरी तरह न घुल जाए।
5. गार्निशिंग के लिए बादाम और पिस्ता का इस्तेमाल करें।
6. ठंडी या गर्म खीर सर्व करें।
खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है और ये चूल्हा मिट्टी का बना होता है। चूल्हे पर आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है। खरना इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन जब व्रती प्रसाद खा लेती हैं तो फिर वे छठ पूजने के बाद ही कुछ खाती हैं।
छठ पर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है। इसके दूसरे दिन खरना का दिन होता है। खरना के दिन उपासक या व्रती महिलाएं गुड़ से बनी हुई खीर ग्रहण करती हैं। यह प्रसाद होता है। इसके बाद वह 36 घंटे निर्जला व्रत रहती हैं। खरना के दिन खरना के दिन नए चावल और नए गुड़ की खीर पकायी जाती हैं। खीर पकाने के लिए साठी के चावल का प्रयोग किया जाता है, जिसे पीतल या स्टील के बर्तन में बनाते हैं। भोजन बनाते समय काफी शुद्धता बरती जाती है। खीर के अलावा मूली, केला होता है। इन सभी को साथ रखकर ही पूजा की जाती है।
खरना के दिन जो प्रसाद बनता है, उसे नए चूल्हे पर बनाया जाता है और ये चूल्हा मिट्टी का बना होता है। चूल्हे पर आम की लकड़ी का प्रयोग करना शुभ माना जाता है खरना इसलिए भी खास है क्योंकि इस दिन जब व्रती प्रसाद खा लेती हैं तो फिर वे छठ पूजने के बाद ही कुछ खाती हैं। खरना के बाद आसपास के लोग भी व्रतियों के घर पहुंचते हैं और मांगकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। गौरतलब है कि इस प्रसाद के लिए लोगों को बुलाया नहीं जाता बल्कि लोग खुद व्रती के घर पहुंचते हैं।
छठ पूजा के दूसरे दिन व्रत करने वाले लोगों को दिन भर कुछ खाना या पीना नहीं होता है। शाम को पूजा के बाद गुड़ से बनी खीर का प्रसाद खाते हैं। इस दिन आस-पड़ोस के लोगों को भी बुलाया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है। खरना का मतलब है शुद्धिकरण। व्रती नहाय खाय के दिन एक समय भोजन करके अपने मन को शुद्ध करते हैं जिसकी पूर्णता अगले दिन तक होती है इसलिए इसे खरना कहते हैं। आज के दिन शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।