Chhath Puja 2019 Puja
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छठ पूजा सूर्य अर्घ्य 2019 (Chhath Puja) :
छठ पूजा 02 नवम्बर संध्या अर्घ्य : इस दिन छठ पूजा का प्रसाद तैयार किया जाता है और निर्जला व्रत रखा जाता है। शाम को पूजन की तैयारियां की जाती है और नदी, तालाब में खड़े होकर ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर पूजा के बाद अगली सुबह की पूजा की तैयारी करते हैं।
03 नवंबर ऊषा अर्घ्य (छठ पूजा संपन्न) : छठ पूजा के चौथे दिन उगते हुए सूर्य को गंगा घाट, नदी में खड़े होकर अर्घ्य दिया जाता है। इसी दिन महिलाएं अपने 36 घंटे के व्रत का पारण करती हैं।
छठ पूजा मुहूर्त (Chhath Puja Muhurat 2019) :
छठ पूजा शनिवार, नवम्बर 2, 2019 को
सूर्योदय समय छठ पूजा के दिन – 06:34 ए एम
सूर्यास्त समय छठ पूजा के दिन – 05:37 पी एम
षष्ठी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 02, 2019 को 12:51 ए एम बजे
षष्ठी तिथि समाप्त – नवम्बर 03, 2019 को 01:31 ए एम बजे
03 नवंबर सूर्योदय समय : 06:35 ए एम
छठ पूजा की सामग्री, विधि, मुहूर्त, महत्व, कथा, संध्या अर्घ्य का समय और सभी जानकारी जानने के लिए बने रहिए हमारे इस ब्लाग पर…
- छठ पूजा में बांस की टोकरी सबसे जरूरी चीज है। इसमें अर्घ्य का सामान और प्रसाद पूजा स्थल तक लेकर जाते हैं और भेंट करते हैं।
- दूसरी चीज होती है ठेकुआ। गुड़ और गेहूं के आटे से बनता है ये प्रसाद। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
- गन्ना पूजा में प्रयोग किया जाना वाला प्रमुख सामग्री होता है। गन्ना से अर्घ्य दिया जाता है और घाट पर घर भी बनाया जाता है।
- छठ में केले का पूरा गुच्छा छठ मइया को भेंट किया जाता है।
- शुद्ध जल और दूध का लोटा... यह अर्घ्य देने के काम आएगा और अर्घ्य ही इसी पूरी पूजा के केन्द्र में होता है।
आम्रपाली दुबे का छठी मईया वरतिया सफल करिहा (Chhathi Maiya Varatiya Safal Kariha) गाना भी काफी पॉपुलर हो रहा। यह छठ गीत एसआरके म्यूजिक के यूट्यूब चैनल पर एक दिन पहले ही लॉन्च हुआ है। इसके बोल प्यारे लाल यादव और इसका म्यूजिक ओम ओझा ने कंपोज किया है। Chhathi Maiya Varatiya Safal Kariha
कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती घर पर बनाए गए पकवानों और पूजन सामग्री लेकर आस पास के घाट पर पहुंचते हैं। घाट पर ईख का घर बनाकर बड़ा दीपक जलाया जाता है। व्रती घाट में स्नान करते हैं और पानी में रहकर ही ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर घर जाकर सूर्य देवता का ध्यान करते हुए रात्रि भर जागरण किया जाता है। जिसमें छठी माता के गीत गाये जाते हैं। सप्तमी के दिन यानी व्रत के चौथे और आखिरी दिन सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचें। इस दौरान अपने साथ पकवानों की टोकरियां, नारियल और फल भी रखें। फिर उगते हुए सूर्य को जल दें। छठी की कथा सुनें और प्रसाद बांटे। आखिर में व्रती प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलें।
पटना
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 05:08 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 5:58 बजे
रांची
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 5:10 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 5:55 बजे
दिल्ली
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 5:36 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 6:35 बजे
मुंबई
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 6:05 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 6:39 बजे
लखनऊ
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 5:23 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 6:17 बजे
जय छठी मैया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥मंडराए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा। षष्ठी ब्रह्मा जी की मानस कन्या मानी जाती हैं। वह कार्तिकेय की पत्नी भी हैं। षष्ठी देवी देवताओं की देवसेना भी कही जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की पराबैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।
प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं। नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं। पूरी कथा पढ़ें यहां
छठ पूजा करने या उपवास रखने के सबके अपने अपने कारण होते हैं लेकिन मुख्य रूप से छठ पूजा सूर्य देव की उपासना कर उनकी कृपा पाने के लिये की जाती है। सूर्य देव की कृपा से सेहत अच्छी रहती है। सूर्य देव की कृपा से घर में धन धान्य के भंडार भरे रहते हैं। छठ माई संतान प्रदान करती हैं। सूर्य सी श्रेष्ठ संतान के लिये भी यह उपवास रखा जाता है। अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिये भी इस व्रत को रखा जाता है।
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 05:08 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 5:58 बजे
02 नवंबर: दिन शनिवार- तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य। सूर्योदय: सुबह 06:33 बजे, सूर्यास्त: शाम 05:35 बजे।
03 नवंबर: दिन रविवार- चौथा दिन: ऊषा अर्घ्य, पारण का दिन। सूर्योदय: सुबह 06:34 बजे, सूर्यास्त: शाम 05:35 बजे।
मां कात्यायनी ही हैं छठी मैया - पुराणों में छठी मैया का एक नाम कात्यायनी भी है। शेर पर सवार मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। वह बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण करती हैं। वहीं, दाएं हाथ अभय और वरद मुद्रा में रहते हैं। राक्षसों के अंत के लिए माता पार्वती ने कात्यायन ऋषि के आश्रम में ज्वलंत स्वरूप में प्रकट हुई थीं, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा।
1. छठी मैया का पूजा करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है।2. छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन को खुशहाल रखती हैं।3. छठी मैया की पूजा से कई पवित्र यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है।4. परिवार में सुख, समृद्धि, धन संपदा और परस्पर प्रेम के लिए भी छठी मैया का व्रत किया जाता है।5. छठी मैया की पूजा से विवाह और करियर संबंधी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
ऊषा अर्घ्य और पारण: 03 नवंबर रविवार की सुबह यानी कार्तिक शुक्ल सप्तमी को सूर्य देव को अर्घ्य देने के बाद व्रती प्रसाद ग्रहण करके छठ व्रत का पारण करते हैं। इस दिन सूर्य उदय का समय सुबह 06:35 बजे का है। इससे पहले संध्या अर्घ्य दिया जाता है।
02 नवंबर: दिन शनिवार- छठ पर्व का तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य। सूर्यास्त: शाम 05:35 बजे।सूर्य को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का करें उच्चारण : ओम सूर्याय नमः या फिर ओम घृणिं सूर्याय नमः, ओम घृणिं सूर्य: आदित्य:, ओम ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा
छठ व्रत पूजन का महत्व (Chhath Puja Significance) : छठ पर्व में छठ मैया की पूजा की जाती है। इन्हें भगवान सूर्यदेव की बहन माना जाता है। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग मां गंगा-यमुना या किसी नदी के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। जिसमें सूर्य की पूजा अनिवार्य है साथ ही किसी नदी में स्नान करना भी। इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है। छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है। पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधनसंपन्न होता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत उत्तम माना गया है। इस व्रत को 36 घंटों तक निर्जला रखा जाता है।
- कार्तिक शुक्ल षष्ठी को यानी कि छठ व्रत के तीसरे दिन पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और शाम के समय पास के नदी या तालाब में जाकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है।
- शाम को बांस की टोकरी में फलों, ठेकुआ, चावल के लड्डू से अर्घ्य का सूप सजाया जाता है, तत्पश्चात दीप जलाकर सूप में रखें और सूप को दोनों हाथों में लेकर निम्न मन्त्र का उच्चारण करते हुए तीन बार अस्त होते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
ऊं एहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकम्पया मां भवत्या गृहाणार्ध्य नमोअस्तुते॥
- अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है और प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
- फिर छठ पर्व के अगले दिन सुबह के समय उगते हुए सूर्य को नदी या तालाब में खड़े रहकर एक बार फिर से उसी विधि से अर्घ्य दिया जाता है। इस दिन व्रती सुबह सूर्योदय से पहले नदी के घाट पर पहुंच जाते हैं। इसके बाद छठ माता से संतान की रक्षा और पूरे परिवार की सुख शांति की कामना की जाती है। सूर्य को अर्घ्य देने और पूजा करने के बाद व्रती कच्चे दूध का शरबत पीकर और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत खोलते हैं।