Chhath Puja 2019 Date and Time, Puja Vidhi, Shubh Muhurat: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को छठ पर्व मनाया जाता है। यह पर्व खास तौर पर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड में मनाया जाता है। इस दिन सूर्यदेव की विशेष उपासना की जाती है। छठ पूजा के दौरान 36 घंटों तक व्रत रखा जाता है और डूबते हुए और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ सूर्य देव की बहन हैं। जानिए छठ पर्व का इतिहास और महत्व…
छठ पूजा का इतिहास : छठ एक पर्व ही नहीं बल्कि महापर्व है जो 4 दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत को लेकर कई कहानियां मिलती हैं।
– एक कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत किया था। जिससे उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया।
नवंबर में आने वाले व्रत-त्योहारों की लिस्ट यहां
– इसके अलावा छठ महापर्व का उल्लेख रामायण काल में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि छठ या सूर्य पूजा महाभारत काल से की जाती है।
– कहते हैं कि छठ पूजा की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण ने की थी। मान्याताओं के अनुसार, वे प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े रहकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वे महान योद्धा बने थे।
Highlights
सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में सारे व्रती घाट पर पहुंच जाते हैं। इस दौरान पकवानों की टोकरियों, नारियल और फलों को साथ में ध्यान से ले जाएं।- सभी व्रती उगते सूरज को डाल पकड़कर अर्घ्य दें।- छठी की कथा सुनें और प्रसाद का वितरण करें।- आखिर में सारे व्रती प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलें।
प्रियव्रत नाम के एक राजा थे। उनकी पत्नी का नाम मालिनी था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से राजा और उसकी पत्नी बहुत दुखी रहते थे। उन्होंने एक दिन संतान प्राप्ति की इच्छा से महर्षि कश्यप द्वारा पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया। इस यज्ञ के फलस्वरूप रानी गर्भवती हो गईं। नौ महीने बाद संतान सुख को प्राप्त करने का समय आया तो रानी को मरा हुआ पुत्र प्राप्त हुआ। इस बात का पता चलने पर राजा को बहुत दुख हुआ। संतान शोक में वह आत्म हत्या का मन बना लिया। लेकिन जैसे ही राजा ने आत्महत्या करने की कोशिश की उनके सामने एक सुंदर देवी प्रकट हुईं।
03 नवंबर: दिन रविवार- चौथा दिन: ऊषा अर्घ्य, पारण का दिन। सूर्योदय: सुबह 06:34 बजे, सूर्यास्त: शाम 05:35 बजे।
मां कात्यायनी ही हैं छठी मैया - पुराणों में छठी मैया का एक नाम कात्यायनी भी है। शेर पर सवार मां कात्यायनी की चार भुजाएं हैं। वह बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण करती हैं। वहीं, दाएं हाथ अभय और वरद मुद्रा में रहते हैं। राक्षसों के अंत के लिए माता पार्वती ने कात्यायन ऋषि के आश्रम में ज्वलंत स्वरूप में प्रकट हुई थीं, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा।
1. छठी मैया का पूजा करने से नि:संतान दंपत्तियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। 2. छठी मैया संतान की रक्षा करती हैं और उनके जीवन को खुशहाल रखती हैं। 3. छठी मैया की पूजा से कई पवित्र यज्ञों के फल की प्राप्ति होती है। 4. परिवार में सुख, समृद्धि, धन संपदा और परस्पर प्रेम के लिए भी छठी मैया का व्रत किया जाता है। 5. छठी मैया की पूजा से विवाह और करियर संबंधी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
02 नवंबर: दिन शनिवार- छठ पर्व का तीसरा दिन: संध्या अर्घ्य। सूर्यास्त: शाम 05:35 बजे।सूर्य को अर्घ्य देते समय इस मंत्र का करें उच्चारण : ओम सूर्याय नमः या फिर ओम घृणिं सूर्याय नमः, ओम घृणिं सूर्य: आदित्य:, ओम ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा
सूर्य और छठी मैया का संबंध भाई बहन का है। मूलप्रकृति के छठे अंश से प्रकट होने के कारण इनका नाम षष्ठी पड़ा। षष्ठी ब्रह्मा जी की मानस कन्या मानी जाती हैं। वह कार्तिकेय की पत्नी भी हैं। षष्ठी देवी देवताओं की देवसेना भी कही जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार षष्ठी की पहली पूजा सूर्य ने की थी। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो षष्ठी के दिन विशेष खगोलिय परिवर्तन होता है। तब सूर्य की पराबैगनी किरणें असामान्य रूप से एकत्र होती हैं और इनके कुप्रभावों से बचने के लिए सूर्य की ऊषा और प्रत्यूषा के रहते जल में खड़े रहकर छठ व्रत किया जाता है।
ये पर्व सूर्य देव की उपासना का होता है जिसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से हो जाती है। चार दिनों तक चलने वाला ये पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर भारत में मनाया जाता है। इस पर्व के गानों की भी काफी डिमांड रहती है। छठ से पहले ही कई गीत इंटरनेट पर वायरल होने लगे हैं जिनकी धूम छठ पर्व के अंतिम दिन तक रहेगी। यहां देखिए इस दौरान कौन-कौन से गीत लोगों को खूब आ रहे हैं पसंद
कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। इस दिन व्रती घर पर बनाए गए पकवानों और पूजन सामग्री लेकर आस पास के घाट पर पहुंचते हैं। घाट पर ईख का घर बनाकर बड़ा दीपक जलाया जाता है। व्रती घाट में स्नान करते हैं और पानी में रहकर ही ढलते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। फिर घर जाकर सूर्य देवता का ध्यान करते हुए रात्रि भर जागरण किया जाता है। जिसमें छठी माता के गीत गाये जाते हैं। सप्तमी के दिन यानी व्रत के चौथे और आखिरी दिन सूर्योदय से पहले घाट पर पहुंचें। इस दौरान अपने साथ पकवानों की टोकरियां, नारियल और फल भी रखें। फिर उगते हुए सूर्य को जल दें। छठी की कथा सुनें और प्रसाद बांटे। आखिर में व्रती प्रसाद ग्रहण कर अपना व्रत खोलें।
छठ पर्व के तीासरे दिन (शनिवार यानी आज) छठव्रती सूर्यास्त के समय नदी, तालाबों या किसी अन्य जलाशय पर पहुंचकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य अर्पित करेंगे। पर्व के चौथे दिन (रविवार को) की सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद व्रत समाप्त हो जाएगा। इसके बाद व्रती अन्न-जल ग्रहण यानी ‘पारण’ करेंगे।
सूर्य को अर्घ्य देने का मंत्र - सूर्य को अर्घ्य देते समय ओम सूर्याय नमः या फिर ओम घृणिं सूर्याय नमः, ओम घृणिं सूर्य: आदित्य:, ओम ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा मंत्र का जाप करें।
अर्घ्य देने की विधि - सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए तांबे के पात्र का प्रयोग करें। इसमें दूध और गंगा जल मिश्रित करके पूजा के पश्चात सूर्य देव को अर्घ्य दें।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से छठ पूजा शुरू हो जाती है। ये पर्व पूरे चार दिनों तक चलता है। जिसमें पहले दिन नहाय खाय, दूसरे दिन खरना, तीसरे दिन निर्जला व्रत रहकर शाम के समय अस्त होते सूर्य को नदी या तालाब में खड़े रहकर अर्घ्य देते हैं और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है। व्रत वाले दिन रात्रि जागरण होता है। जिनमें छठ गीतों की काफी डिमांड रहती है। जानिए भोजपुरी के फेमस छठ गीतों की लिस्ट यहां...Chhath Special Song
- छठ पूजा में बांस की टोकरी सबसे जरूरी चीज है। इसमें अर्घ्य का सामान और प्रसाद पूजा स्थल तक लेकर जाते हैं और भेंट करते हैं।
- दूसरी चीज होती है ठेकुआ। गुड़ और गेहूं के आटे से बनता है ये प्रसाद। इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है।
- गन्ना पूजा में प्रयोग किया जाना वाला प्रमुख सामग्री होता है। गन्ना से अर्घ्य दिया जाता है और घाट पर घर भी बनाया जाता है।
- छठ में केले का पूरा गुच्छा छठ मइया को भेंट किया जाता है।
- शुद्ध जल और दूध का लोटा... यह अर्घ्य देने के काम आएगा और अर्घ्य ही इसी पूरी पूजा के केन्द्र में होता है।
जय छठी मैया ऊ जे केरवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
ऊ जे नारियर जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
अमरुदवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥मंडराए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
शरीफवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
ऊ जे सेववा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मेड़राए।
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए॥जय॥
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय।
सभे फलवा जे फरेला खबद से, ओह पर सुगा मंडराए॥जय॥
मारबो रे सुगवा धनुख से, सुगा गिरे मुरझाए।
ऊ जे सुगनी जे रोएली वियोग से, आदित होई ना सहाय॥जय॥
छठ पर्व में छठ मैया की पूजा की जाती है। इन्हें भगवान सूर्यदेव की बहन माना जाता है। छठी मैया को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना की जाती है। छठी मैया का ध्यान करते हुए लोग मां गंगा-यमुना या किसी नदी के किनारे इस पूजा को मनाते हैं। जिसमें सूर्य की पूजा अनिवार्य है साथ ही किसी नदी में स्नान करना भी। इस पर्व में पहले दिन घर की साफ सफाई की जाती है। छठ के चार दिनों तक शुद्ध शाकाहारी भोजन किया जाता है। पूरे भक्तिभाव और विधि विधान से छठ व्रत करने वाला व्यक्ति सुखी और साधनसंपन्न होता है। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए भी ये व्रत उत्तम माना गया है। इस व्रत को 36 घंटों तक निर्जला रखा जाता है।
पटना
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 05:08 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 5:58 बजे
रांची
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 5:10 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 5:55 बजे
दिल्ली
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 5:36 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 6:35 बजे
मुंबई
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 6:05 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 6:39 बजे
लखनऊ
02 नवंबर को सूर्यास्त का समय: शाम 5:23 बजे
03 नवंबर को सूर्योदय का समय: सुबह 6:17 बजे
प्रसाद रखने के लिए बांस की दो तीन बड़ी टोकरी, बांस या पीतल के बने 3 सूप, लोटा, थाली, दूध और जल के लिए ग्लास, नए वस्त्र साड़ी-कुर्ता पजामा, चावल, लाल सिंदूर, धूप और बड़ा दीपक, पानी वाला नारियल, गन्ना जिसमें पत्ता लगा हो, सुथनी और शकरकंदी, हल्दी और अदरक का पौधा, नाशपाती और बड़ा वाला मीठा नींबू, शहद की डिब्बी, पान और साबुत सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम, चन्दन, मिठाई
प्रसाद : ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू आदि प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाएगा।
फल सब्जी : टोकरी में नई फल सब्जियां भी रखी जाती हैं जैसे कि केला, अनानास, सेब, सिंघाड़ा, मूली, अदरक पत्ते, गन्ना, कच्ची हल्दी, नारियल।
पहनने के लिए नए कपड़े, दो से तीन बड़ी बांस की टोकरी, सूप, पानी वाला नारियल, गन्ना, लोटा, लाल सिंदूर, धूप, बड़ा दीपक, चावल, थाली, दूध, गिलास, अदरक और कच्ची हल्दी, केला, सेब, सिंघाड़ा, नाशपाती, मूली, आम के पत्ते, शकरगंदी, सुथनी, मीठा नींबू (टाब), मिठाई, शहद, पान, सुपारी, कैराव, कपूर, कुमकुम और चंदन
अर्घ्य के समय सूर्य देव को जल और दूध चढ़ाया जाता है। गाय के दूध से अर्घ्य देना फलीत माना जाता है। प्रसाद भरे सूप से छठी मैया की पूजा की जाती है। सूर्य देव की उपासना के बाद रात्रि में छठी माता के गीत गाए जाते हैं और व्रत कथा सुनी जाती है।
छठ पर्व के बारे में एक कथा और भी है। इसके अनुसार, जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा। उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को राजपाट वापस मिल गया। लोक परंपरा के अनुसार, सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई-बहन का है। इसलिए छठ के मौके पर सूर्य की आराधना फलदायी मानी गई है।
1. छठ पूजा का त्यौहार भले ही कार्तिक शुक्ल षष्ठी को मनाया जाता है लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय खाय के साथ होती है। मान्यता है कि इस दिन व्रती स्नान आदि कर नये वस्त्र धारण करते हैं और शाकाहारी भोजन लेते हैं। व्रती के भोजन करने के पश्चात ही घर के बाकि सदस्य भोजन करते हैं।2. कार्तिक शुक्ल पंचमी को पूरे दिन व्रत रखा जाता है व शाम को व्रती भोजन ग्रहण करते हैं। इसे खरना कहा जाता है। इस दिन अन्न व जल ग्रहण किये बिना उपवास किया जाता है। शाम को चाव व गुड़ से खीर बनाकर खाया जाता है।3. षष्ठी के दिन छठ पूजा का प्रसाद बनाया जाता है। इसमें ठेकुआ विशेष होता है। कुछ स्थानों पर इसे टिकरी भी कहा जाता है। चावल के लड्डू भी बनाये जाते हैं। प्रसाद व फल लेकर बांस की टोकरी में सजाये जाते हैं। टोकरी की पूजा कर सभी व्रती सूर्य को अर्घ्य देने के लिये तालाब, नदी या घाट आदि पर जाते हैं। स्नान कर डूबते सूर्य की आराधना की जाती है।4. अगले दिन यानि सप्तमी को सुबह सूर्योदय के समय भी सूर्यास्त वाली उपासना की प्रक्रिया को दोहराया जाता है। विधिवत पूजा कर प्रसाद बांटा कर छठ पूजा संपन्न की जाती है।
छठ मइया का पूजा मंत्र -ॐ सूर्य देवं नमस्ते स्तु गृहाणं करूणा करं |अर्घ्यं च फ़लं संयुक्त गन्ध माल्याक्षतै युतम् ||छठी मइया का प्रसाद - ठेकुआ, मालपुआ, खीर, खजूर, चावल का लड्डू और सूजी का हलवा आदि छठ मइया को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य देव की पूजा शुरू की। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वह प्रतिदिन घंटों कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
षष्ठांशां प्रकृते: शुद्धां सुप्रतिष्ठाण्च सुव्रताम्।सुपुत्रदां च शुभदां दयारूपां जगत्प्रसूम्।।श्वेतचम्पकवर्णाभां रत्नभूषणभूषिताम्।पवित्ररुपां परमां देवसेनां परां भजे।।
छठ पर्व मुख्यतः बिहारवासियों का पर्व है। इसके साथ ही बिहार से सटे नेपाल तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश में भी इसे मनाया जाता है। बिहार में इसे मनाये जाने का मुख्य कारण है इसकी स्थानिकता। इससे जुड़ी एक कथा भी है। कथा इस प्रकार है- एक बार शिव भक्त माली और सोमाली सूर्य की तरफ जा रहे थे। यह बात सूर्य को नागवार लगी और सूर्य ने शिवभक्तों को जलाना शुरू किया। उन्होंने शिव जी से शिकायत की जिसपर शिव ने सूर्य पर त्रिशूल से प्रहार कर उसे खंडित कर दिया। सूर्य के तीन टुकड़े पृथ्वी पर तीन स्थानों पर गिरे , वे तीन स्थान हैं, देवार्क ( बिहार में देव नामक स्थान में) , कोणार्क ( ओड़िसा) और लोलार्क ( काशी)। चूंकि देव का मंदिर पश्चिमाभिमुख और यही एकमात्र मंदिर है जिसमें मुख्या प्रतिमा पश्चिमाभिमुख है। बाद में उससे अन्य पौराणिक साक्ष्य जुड़ गए। इसीलिए अस्ताचल गामी सूर्य की पूजा यहीं से शुरू हुई। बाद में अन्य स्थानों में भी होने लगी।
षष्ठी के दिन शाम को डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। इस दौरान पांच गन्ने को छत्रनुमा आकार के साथ पानी के भीतर खड़ा किया जाता है। गन्ने की ये पांच छड़ें पांच प्राकृतिक तत्वों पृथ्वी, अग्नि, आकाश, जल और वायु को दर्शाते हैं। वहीं कुछ लोग कोसी भी भरते हैं जिनके यहां किसी बच्चे ने जन्म लिया हो या फिर शादी हुई हो। इस प्रक्रिया को व्रती घर के आंगन या फिर छत पर करते हैं और उसके बाद नदी के तट पर इसे पुनः किया जाता है। इस दौरान मिट्टी के दीए जलाए जाते हैं जो ऊर्जा के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है।
छठ पर्व में ये फल सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माने जाते हैं। डाभ नींबू- डाभ नींबू आकार में थोड़ा बड़ा होता है जिसके छिलके काफी मोटे होते हैं। रंग पीला ही होता है। इसे पवित्र फल माना जाता है। दूसरा फल के रूप में केला आता है। इस पर्व में कच्चे केले का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसे करने से इसकी पवित्रता बरकरार रहती है। तीसरा फल होता है गन्ना, गन्ने को समृद्धि का प्रतीका माना जाता है। छठ पर इसे चढ़ाना शुभ माना जाता है। चौथे फल के रूप में सुपारी आता है। सुपारी भी इस पर्व पर चढ़ाए जाने वाले फलों में खास महत्व रखता है। सख्त होने से इस फल को पक्षी जूठा नहीं कर सकता इसलिए इसे चढ़ाया जाता है। वहीं पांचवें फल जिसे कोसी में रखा जाता है वह है सिंघाड़ा। सिंघाड़ा को रोगनाशक माना जाता है यह फल पानी में ही फलता है लिहाजा इसे पवित्र फल में शामिल किया जाता है। यही कारण है कि इसे छठी माई के प्रसाद स्वरूप इस्तेमाल किया जाता है।
- सप्तमी के दिन सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में सारे व्रती घाट पर पहुंच जाते हैं। इस दौरान पकवानों की टोकरियों, नारियल और फलों को साथ में ध्यान से ले जाएं।- सभी व्रती उगते सूरज को डाल पकड़कर अर्घ्य दें।- छठी की कथा सुनें और प्रसाद का वितरण करें।- आखिर में सारे व्रती प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलें।
नहाय-खाय के दिन व्रती सिर्फ शुद्ध आहार का सेवन करते हैं और खरना या लोहंडा के दिन शाम के समय गुड़ की खीर और पूरी बनाकर छठी माता को भोग लगाया जाता है। खरना पूजा आज है। सबसे पहले इस खीर को व्रती खुद खाएं बाद में परिवार और ब्राह्मणों को दें। छठ के दिन छठी मैया का प्रसाद तैयार किया जाता है। घर में बने हुए पकवानों को बड़ी टोकरी में भरकर लोग घाट पर ले जाते हैं। घाट पर ईख का घर बनाकर एक बड़ा दीपक जलाया जाता है। व्रती घाट में स्नान कर के लिए उतरें और दोनों हाथों में डाल को लेकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दें। सूर्यास्त के बाद घर जाकर परिवार के साथ रात को सूर्य देवता का ध्यान और जागरण किया जाता है। इस जागरण में छठी मइया के गीतों (Chhathi Maiya Geet) को सुना जाता है।
भले ही घर के सभी लोग छठ का व्रत न रख रहे हों, लेकिन अगर घर में किसी एक ने भी व्रत रखा है, तो पूरे परिवार को तामसिक भोजन से परहेज करने होते हैं। पूरे परिवार को सात्विकता और स्वच्छता का पालन करना होता है। छठ को अत्यंत सफाई और सात्विकता का व्रत माना जाता है। इसलिए इसमें सबसे बड़ी सावधानी यही मानी जाती है कि इस दौरान साफ-सफाई का खास ख्याल रखा जाना चाहिए।
प्रसाद के लिए बांस की तीन टोकरी, बांस या, पीतल के तीन सूप, लोटा, थाली, गिलास, नारियल, साड़ी-कुर्ता पजामा, गन्ना पत्तों के साथ, हल्दी अदरक हरा पौधा, सुथनी, शकरकंदी, डगरा, हल्दी और अदरक का पौधा, नाशपाती, नींबू बड़ा, शहद की डिब्बी, पान सुपारी, कैराव, सिंदूर, कपूर, कुमकुम, अक्षत के लिए चावल, चन्दन, ठेकुआ, मालपुआ, खीर-पूड़ी, खजूर, सूजी का हलवा, चावल का बना लड्डू/लड्डुआ, सेब, सिंघाड़ा, मूली।
पौराणिक कथाओं के अनुसार 14 सालों तक वनवास के बाद जब भगवान राम अयोध्या लौटे थे तो रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए ऋषि-मुनियों ने उन्हें राजसूय यज्ञ करने को कहा। इस यज्ञ के लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रण दिया गया था, लेकिन मुग्दल ऋषि ने भगवान राम एवं सीता को अपने ही आश्रम में आने का आदेश दिया। ऋषि की आज्ञा पर भगवान राम एवं सीता स्वयं यहां आए और उन्हें इसकी पूजा के बारे में बताया गया। मुग्दल ऋषि ने मां सीता को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। यहीं रह कर माता सीता ने छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी।
1. व्रती छठ पूजा के दौरान नए कपड़े पहनें।
2. छठ पूजा के चारों दिन व्रती जमीन पर चटाई पर सोएं।
3. व्रती के साथ-साथ घर के बाकी सदस्य भी छठ पूजा के दौरान प्याज, लहसुन और मांस-मछली का सेवन न करें।
4. पूजा के लिए बांस से बने सूप और टोकरी का इस्तेमाल करें।
5. छठ पूजा में गुड़ और गेंहू के आटे के ठेकुआ, फलों में केला और गन्ना ध्यान से रखें।
छठ पर्व पर गीतों की अलग ही धूम रहती है। तभी तो इस पर्व से संबंधित एक से एक नए भोजपुरी गाने सामने आ रहे हैं। छठ पूजा 2 नवंबर को होगी। इस दिन सूर्यास्त का समय 05:37 पी एम का है। इस पर्व में डूबते हुए सूरज को अर्घ्य दिया जाता है। देखिए छठ पर्व पर वायरल हो रहे भोजपुरी गीत
छठ पूजा कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को होती है। लेकिन इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से हो जाती है। ये चार दिनों का पर्व होता है जिसमें पहला दिन नहाय खाय, दूसरा खरना पूजा जो कि आज है, तीसरे दिन छठ पूजा जिसमें अस्त होते सूरज को अर्घ्य दिया जाता है और फिर चौथे और आखिरी दिन उगते हुये सूरज को पानी में खड़े होकर अर्घ्य देकर व्रत संपन्न किया जाता है।
क्या होता है खरना- सूर्य उपासना का यह लोकपर्व छठ 4 दिनों तक मनाया जाता है। जिसके दूसरे दिन खरना किया जाता है। खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण। दरअसल, छठ का व्रत करने वाले व्रती नहाय खाय के दिन पूरा दिन उपवास रखकर केवल एक ही समय भोजन करके अपने शरीर से लेकर मन तक को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। जिसकी पूर्णता अगले दिन होती है। यही वजह है कि इसे खरना के नाम से बुलाया जाता है। इस दिन व्रती साफ मन से अपने कुलदेवता और छठ मैय्या की पूजा करके उन्हें गुड़ से बनी खीर का प्रसाद चढ़ाते हैं। आज के दिन शाम होने पर गन्ने का जूस या गुड़ के चावल या गुड़ की खीर का प्रसाद बना कर बांटा जाता है। प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतियों का 36 घंटे का निर्जला व्रत शुरू हो जाता है।
छठ पूजा के पीछे की एक कहानी राजा प्रियंवद को लेकर भी है। कहते हैं राजा प्रियंवद को कोई संतान नहीं थी तब महर्षि कश्यप ने पुत्र की प्राप्ति के लिए यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी मालिनी को आहुति के लिए बनाई गई खीर दी। इससे उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई लेकिन वो पुत्र मरा हुआ पैदा हुआ। प्रियंवद पुत्र वियोग में श्मशान पर अपने प्राण त्यागने लगे। उसी वक्त भगवान की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और उन्होंने राजा से कहा कि क्योंकि वो सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से उत्पन्न हुई हैं, इसी कारण वो षष्ठी कहलातीं हैं। उन्होंने राजा को उनकी पूजा करने और दूसरों को पूजा के लिए प्रेरित करने को कहा। राजा प्रियंवद ने पुत्र इच्छा के कारण देवी षष्ठी का व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।