चौरचन पर्व मिथिला का एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह हर साल भाद्रपद (भादो) शुक्ल चतुर्थी (चौठ) को मनाया जाता है। इस साल यह पर्व 02 सितंबर को मनाया जाएगा। चौरचन पर्व को व्रती बहुत ही नियम-निष्ठा के साथ रखती हैं। भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी (चौठ) तिथि में शाम के समय चौरचन पूजा होती है। चौरचन (Chaurchan) पर्व के बारे में पुराणों में ऐसा वर्णन मिलता है कि इसी दिन चंद्रमा को कलंक लगा था। इसलिए इस दिन चाँद को देखना मनाही है। मान्यता है कि इस दिन चंद्रमा को देखने से कलंक लगता है। मिथिला (Mithila) में इसके निवारण के लिए रोहिणी नक्षत्र सहित चतुर्थी की चाँद की पूजा की जाती है।

चौरचन शुभ मुहूर्त: चौरचन पूजा रोहिणी नक्षत्र में करना सबसे शुभ माना गया है। मिथिला पंचांग के अनुसार इस बार रोहिणी नक्षत्र 02 सितंबर की शाम 06 बजे से रात 09 बजे तक रहेगा। इसलिए इस समय में चौरचन पूजा करनी चाहिए।

चौरचन पूजा विधि: भाद्रपद (भादो) शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन चौरचन पूजा की जाती है। पूरे दिन व्रत रखकर घर के आंगन को गाय के गोबर से लीपकर स्वच्छ करें। फिर केले के पत्ते से गोलाकार चाँद बनाएं। जिस पर विभिन्न प्रकार के पकवान, खीर और मिष्ठान आदि रखें। इसके बाद रोहिणी (नक्षत्र) सहित चतुर्थी में चंद्रमा की पूजा उजले फूल (भेंट, कुंद,तगर इत्यादि) से पश्चिम दिशा में मुंह कर करें।

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फिर परिवार के जितने सदस्य हैं उतनी संख्या में पकवान युक्त डाली और दही के बर्तन को साफ किए गए स्थान पर रखें। केला, दीप, लावन (एक प्रकार का माटी का बर्तन) आदि को भी इसी स्थान पर रखें। अब एक-एक कर डाली, दही का बर्तन, केला, खीरा आदि को हाथों में उठाकर ‘सिंह: प्रसेनमवधिस्सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमार मन्दिस्तव ह्येष स्यामन्तक: स्त’ इस मंत्र को पढ़कर चंद्रमा को समर्पित करें। (गणेश जी की आरती)

मंत्र:-
सिंह: प्रसेनमवधिस्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमार मन्दिस्तव ह्येष स्यामन्तक:।।

कथा: स्कन्द पुराण के अनुसार एक बार भगवान कृष्ण को चतुर्थी के चाँद देखने पर झूठा कलंक लगा था। परंतु भगवान श्रीकृष्ण ने ‘सिंह: प्रसेनमवधिस्सिंहो जाम्बवता हतः। सुकुमार मन्दिस्तव ह्येष स्यामन्तक:।।’ इस मंत्र से चंद्र दोष से मुक्ति पाया था। एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान गणेश को देखकर चंद्रमा ने हँस दिया। जिस पर गणेश जी ने चंद्रमा को शाप दिया कि जो आपको देखेगा उसे कलंक लगेगा। इसके बाद चंद्रमा भाद्रपद (भादो) शुक्ल चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा की। फिर गणेश जी ने उन्हें कहा कि अब आप निष्पाप हो गए। मान्यता है कि जो मनुष्य ‘ सिंह: प्रसेनमवधिस्सिंहो… इस मंत्र से चंद्रमा के दर्शन करता है उसे झूठे कलंक से मुक्ति मिल जाती है और सभी मनोरथ पूरे होते हैं।

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