Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र के जरिए लोगों को सही जीवन जीने का सलीका और तरीका बताया है। अपनी नीतियों के जरिए नंद वंश का विनाश और चंद्रगुप्त मौर्य को सम्राट बनाने वाले आचार्य चाणक्य ने सामाजिक शास्त्र से संबंधित भी कई बातों का जिक्र किया है। उनके नीति शास्त्र में दिए गए सुझाव भले ही लोगों को कठोर लगें, लेकिन उन्होंने मनुष्य को जीवन की सच्चाई से रूबरू करवाया है। आचार्य चाणक्य ने श्लोकों के माध्यम से ऐसी बातें बताई हैं, जो आज के समय में भी प्रासंगिक हैं।

आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में श्लोक से माध्यम से मनुष्य की ऐसी स्थिति का जिक्र किया है, जिसमें अपने भी इंसान का साथ छोड़ देते हैं।

त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं पुत्राश्च दाराश्च सुहृज्जनाश्च। 
तमर्शवन्तं पुनराश्रयन्ति अर्थो हि लोके मनुषस्य बन्धु:।।

इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य बताते हैं कि केवल धन ही मनुष्य का सच्चा साथी और मित्र है। इस श्लोक के मुताबिक मनुष्य के धनहीन हो जाने पर पत्नी, पुत्र, मित्र और करीबी सम्बन्धी सभी उसका त्याग कर देते हैं और उसके धनवान बन जाने पर वे सभी दोबारा उसके आश्रय में आ जाते हैं। इस संसार में धन ही मनुष्य का बन्धु है।

इसके अलावा आचार्य चाणक्य ने में धन को लेकर कई बातें कही हैं। उन्होंने बताया है कि अगर कोई मनुष्य लगत काम करके धन कमाता है, तो यह कुछ समय ठहरने के बाद उसका संपूर्ण विनाश कर देता है।

अन्यायोपार्जितं वित्तं दशवर्षाणि तिष्ठति।
प्राप्ते चैकादशे वर्षे समूलं तद् विनश्यति।।

लक्ष्मी वैसे ही चंचल होती है, परन्तु चोरी, जुआ, अन्याय और धोखा देकर कमाया हुआ धन भी स्थिर नहीं रहता। वह केवल 10 वर्ष तक ही मनुष्य के पास रहता है, 11वें वर्ष के शुरू होते ही मूल और ब्याज समेत संपूर्ण धन नष्ट हो जाता है। अतः व्यक्ति को कभी अन्याय से धन नहीं कमाना चाहिए ।

इसके अलावा आचार्य चाणक्य ने अपने नीति शास्त्र में धन को लेकर कई बातें बताई हैं।

– धन की बचत: महान राजनीतिज्ञ आचार्य चाणक्य ने कहा है कि मनुष्यों को अपने बुरे दिनों के लिए हमेशा धन की बचत करनी चाहिए। क्योंकि समय का कोई भरोसा नहीं होता। मनुष्य का बुरा वक्त आते देर नहीं लगती।

-धन की परीक्षा: पत्नी, रिश्तेदारों और मित्रों की परीक्षा धन के खो जाने पर ही होती है। पत्नी की परीक्षा धन-संपत्ति खोने के बाद करनी चाहिए। वहीं, दोस्त की आवश्यकता के समय, और नौकर को महत्वपूर्ण कार्य देने के बाद परखना चाहिए।

-गरीबी एक रोग: आचार्य चाणक्य का मानना है कि गरीबी एक रोग है। गरीबी के साथ जीवन व्यतीत करना जहर के समान है। वहीं, अगर व्यक्ति अपने धन में वृद्धि चाहता है तो उसे अपने लक्ष्य की ओर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।