Chaitra Navratri Ashtami 2020: चैत्र माह की अष्टमी 01 अप्रैल को मनाई जायेगी। इस दिन कई लोग कन्या पूजन भी करते हैं। नवरात्रि के आठवें दिन देवी दुर्गा के महागौरी स्वरूप की पूजा की जाती है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं। जो भक्त अपने घर में माता की स्थापना करते हैं, नौ दिनों तक पूजा करते हैं, व्रत रखते हैं, उनकी नवरात्रि पूजा कन्या पूजन (Kanya Pujan 2020) के साथ ही पूरी मानी जाती है। लेकिन इस बार लॉकडाउन के चलते व्रती परेशान हैं कि कैसे कन्या पूजन किया जाए। तो आपकी इस समस्या का समाधान मिलेगा यहां…
लॉकडाउन का पालन करते हुए घर पर ही ऐसे कर सकते हैं कन्या पूजन (How To Do Kanya Pujan At Home):
– इस बार नवरात्रि में घर पर बाहर से किसी भी कन्या को आमंत्रित नहीं कर सकते हैं तो ऐसे में आप कन्या पूजन के लिए घर की बेटी, भतीजी और कोई भी कन्या को भोजन करवाकर उनका पूजन करें। पूजन करने से पहले संकल्प लें कि नवरात्रि में मैं अपनी पुत्री को देवी मानकर उनका पूजन कर रही हूं या कर रहा हूं।
– कन्या को मीठा भोजन जरूर कराएं और उन्हें भेंट दें।
– अगर घर में छोटी कन्या न हो तो उस स्थिति में घर के मंदिर में माता का पूजन करें और उन्हें विभिन्न प्रकार के भोग लगाएं और माता को भेंट सामग्री चढ़ाएं।
– जो प्रसाद माता को चढ़ाएं उसका कुछ हिस्सा गाय को भी खिला दें। फिर माता के प्रसाद को घर के सभी लोग ग्रहण करें।
– कन्या पूजन में प्रसाद के तौर पर सूखे नारियल, मखाना, मूंगफली, मिसरी आदि चीजों की भी भेंट कर सकते हैं। ये चीजें जल्दी खराब नहीं होतीं जिस कारण आप स्थिति सामान्य होने के बाद इन्हें किसी कन्या को या फिर मंदिर में भेंट कर सकते हैं।
– नवरात्रि में देवी को सुहाग की सामग्री भी चढ़ाई जाती है। ज्यादातर लोग इसे माता के मंदिर में चढ़ाते हैं लेकिन इस बार मंदिर बंद होने के कारण आप सुहाग की सामग्री घर पर ही माता की मूर्ति को चढ़ा सकती हैं।
इसके लिए एक लाल वस्त्र में चावल, सिंदूर, हल्दी का टुकड़ा, चूड़ियां, बिंदी, काजल और कुछ पैसे रखकर माता के सामने रखें और उनसे सौभाग्य वृद्धि की प्रार्थना करें।
– नवरात्रि के बाद इस सुहाग की सामग्री को किसी सुहागन स्त्री को भेंट कर दें या खुद भी प्रयोग कर सकते हैं।
Highlights
सर्वसंकट हंत्री त्वंहि धन ऐश्वर्य प्रदायनीम्।
ज्ञानदा चतुर्वेदमयी महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
सुख शान्तिदात्री धन धान्य प्रदीयनीम्।
डमरूवाद्य प्रिया अद्या महागौरी प्रणमाभ्यहम्॥
त्रैलोक्यमंगल त्वंहि तापत्रय हारिणीम्।
वददं चैतन्यमयी महागौरी प्रणमाम्यहम्॥
अष्टमी के दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिए देवी मां को चुनरी भेंट करती हैं। सबसे पहले लकड़ी की चौकी पर या मंदिर में महागौरी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर महागौरी यंत्र रखें और यंत्र की स्थापना करें। मां सौंदर्य प्रदान करने वाली हैं। हाथ में श्वेत पुष्प लेकर मां का ध्यान करें।
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा महागौरी यशस्वनीम्॥
पूर्णन्दु निभां गौरी सोमचक्रस्थितां अष्टमं महागौरी त्रिनेत्राम्।
वराभीतिकरां त्रिशूल डमरूधरां महागौरी भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर किंकिणी रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वाधरां कातं कपोलां त्रैलोक्य मोहनम्।
कमनीया लावण्यां मृणांल चंदनगंधलिप्ताम्॥
भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए देवी ने कठोर तपस्या की थी जिससे इनका शरीर काला पड़ जाता है। देवी की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान इन्हें स्वीकार करते हैं और शिव जी इनके शरीर को गंगा-जल से धोते हैं तब देवी विद्युत के समान अत्यंत कांतिमान गौर वर्ण की हो जाती हैं तथा तभी से इनका नाम गौरी पड़ा। महागौरी रूप में देवी करूणामयी, स्नेहमयी, शांत और मृदुल दिखती हैं। देवी के इस रूप की प्रार्थना करते हुए देव और ऋषिगण कहते हैं “सर्वमंगल मंग्ल्ये, शिवे सर्वार्थ साधिके। शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोस्तुते।।” महागौरी जी से संबंधित एक अन्य कथा भी प्रचलित है इसके जिसके अनुसार, एक सिंह काफी भूखा था, वह भोजन की तलाश में वहां पहुंचा जहां देवी उमा तपस्या कर रही होती हैं। देवी को देखकर सिंह की भूख बढ़ गयी परंतु वह देवी के तपस्या से उठने का इंतजार करते हुए वहीं बैठ गया। इस इंतजार में वह काफी कमज़ोर हो गया। देवी जब तप से उठी तो सिंह की दशा देखकर उन्हें उस पर बहुत दया आई और माँ ने उसे अपना वाहन बना लिया, क्योंकि एक प्रकार से उसने भी तपस्या की थी। इसलिए देवी गौरी का वाहन बैल और सिंह दोनों ही हैं।
चावल, कुमकुम, दीपक, धूपबत्ती, दूध, दही, घी, शहद, शकर, साफ जल, श्रीगणेश और देवी दुर्गा के लिए वस्त्र-आभूषण, फूल, प्रसाद के लिए मिठाई और फल, जनेऊ, सुपारी, पान, मोदक के लड्डू, सिंदूर, इत्र, दूर्वा, केले, कर्पूर आदि। अगर ये चीजें घर में न हों तो जो चीजें हैं, उनसे ही पूजा कर सकते हैं।
घर के मंदिर में पूजा की व्यवस्था करें। सबसे पहले मूर्तियों में श्रीगणेश और देवी दुर्गा का आवाहन करें। आवाहन यानी देवी-देवता को अपने घर आमंत्रित करें। आसन दें। मूर्तियों को स्नान कराएं। दूध, दही, घी, शहद और शकर मिलाकर पंचामृत बनाएं और इससे स्नान कराएं। इसके बाद जल से स्नान कराएं। मूर्तियों को वस्त्र और आभूषण अर्पित करें। गणेशजी को जनेऊ पहनाएं। माताजी और गणेशजी को हार पहनाएं। इत्र अर्पित करें। तिलक लगाएं। धूप, कर्पूर और दीप जलाएं। आरती करें। परिक्रमा करें। भोग लगाएं, पान चढ़ाएं। गणेशजी को दूर्वा और माताजी को लाल चुनरी अर्पित करें। दक्षिणा अर्पित करें। गणेश के मंत्र श्री गणेशाय नम: और दुर्गा मंत्र दुं दुर्गायै नम: मंत्र का जाप करें। पूजा के अंत में अनजानी भूल के लिए क्षमा याचना करें। अन्य भक्तों को प्रसाद दें और स्वयं भी लें।