नवरात्र-पूजन के आखिरी दिन यानि कि नवमी को दुर्गाजी की नौवीं शक्ति मां सिद्धिदात्री की उपासना होती है। इस बार नवमी 2 अप्रैल को है। देवी सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं। इस दिन जो भक्त विधि-विधान और पूरी निष्ठा के साथ मां की पूजा करते हैं उन्हें सभी सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। सृष्टि में कुछ भी उसके लिए अगम्य नहीं रह जाता है। ब्रह्मांड पर पूर्ण विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य उनमें आ जाता है। सिद्धियों की प्राप्ति के लिए मनुष्य ही नहीं, देव, गंदर्भ, असुर, ऋषि आदि सभी इनकी पूजा करते हैं। इतना ही नहीं, मां सिद्धिदात्री शोक, रोग एवं भय से मुक्ति भी देती हैं। जानिए नवरात्रि के नौंवे दिन की पूजा विधि, व्रत कथा, आरती, मंत्र, मुहूर्त…
पूजा विधि: दुर्गा पूजा में इस तिथि को विशेष हवन किया जाता है। यह नौ दुर्गा का आखिरी दिन भी होता है तो इस दिन माता सिद्धिदात्री के बाद अन्य देवताओं की भी पूजा की जाती है। सर्वप्रथम माता जी की चौकी पर मां सिद्धिदात्री की तस्वीर या मूर्ति रख आरती और हवन किया जाता है। हवन करते वक्त सभी देवी दवताओं के नाम से आहुति देनी चाहिए। बाद में माता के नाम से आहुति देनी चाहिए।
दुर्गा सप्तशती के सभी श्लोक मंत्र रूप हैं अत:सप्तशती के सभी श्लोक के साथ आहुति दी जा सकती है। देवी के बीज मंत्र “ऊँ ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे नमो नम:” से कम से कम 108 बार आहुति दें। भगवान शंकर और ब्रह्मा जी की पूजा के बाद अंत में आरती करनी चाहिए। हवन में जो भी प्रसाद चढ़ाया जाता है उसे समस्त लोगों में बांटना चाहिए।
मां सिद्धिदात्री की कथा: देवी पुराण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि भगवान शंकर ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। ये कमल पर आसीन हैं और केवल मानव ही नहीं बल्कि सिद्ध, गंधर्व, यक्ष, देवता और असुर सभी इनकी आराधना करते हैं। संसार में सभी वस्तुओं को सहज और सुलभता से प्राप्त करने के लिए नवरात्र के नवें दिन इनकी पूजा की जाती है। भगवान शिव ने भी सिद्धिदात्री देवी की कृपा से तमाम सिद्धियां प्राप्त की थीं। इस देवी की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था। इसी कारण शिव अर्द्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए। इस देवी का पूजन, ध्यान, स्मरण हमें इस संसार की असारता का बोध कराते हैं और अमृत पद की ओर ले जाते हैं।
मां सिद्धिदात्री की आरती:
जय सिद्धिदात्री तू सिद्धि की दाता
तू भक्तों की रक्षक तू दासों की माता,
तेरा नाम लेते ही मिलती है सिद्धि
तेरे नाम से मन की होती है शुद्धि!!
कठिन काम सिद्ध कराती हो तुम
जब भी हाथ सेवक के सर धरती हो तुम,
तेरी पूजा में तो न कोई विधि है
तू जगदम्बे दाती तू सर्वसिद्धि है!!
रविवार को तेरा सुमरिन करे जो
तेरी मूर्ति को ही मन में धरे जो,
तुम सब काज उसके कराती हो पूरे
कभी काम उसके रहे न अधूरे!!
तुम्हारी दया और तुम्हारी यह माया
रखे जिसके सर पर मैया अपनी छाया,
सर्व सिद्धि दाती वो है भाग्यशाली
जो है तेरे दर का ही अम्बे सवाली!!
हिमाचल है पर्वत जहां वास तेरा
महा नंदा मंदिर में है वास तेरा,
मुझे आसरा है तुम्हारा ही माता
वंदना है सवाली तू जिसकी दाता!!
मां सिद्धिदात्री के मंत्र:
सिद्ध गन्धर्व यक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
Highlights
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
इस दिन मां सिद्धिदात्री की विधि विधान से पूजा करें, जिसमें उनको पुष्प, अक्षत्, सिंदूर, धूप, गंध, फल आदि समर्पित करें। आज के दिन मां सिद्धिदात्री को तिल का भोग लगाएं। ऐसा करने से आपके जीवन में आने वाली अनहोनी से अपका बचाव होगा। मां सिद्धदात्री सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाली हैं, इनकी पूजा ब्रह्म मुहूर्त में करना उत्तम होता है।
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि यानी चैत्र नवरात्रि की महानवमी का प्रारंभ 02 अप्रैल दिन बुधवार को प्रात:काल 03 बजकर 40 मिनट पर हो रहा है। महानवमी का समापन 03 अप्रैज दिन शुक्रवार को तड़के 02 बजकर 43 मिनट पर होगा। ऐसे में आपको महानवमी के दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा ब्रह्म मुहूर्त में कर लेना चाहिए।
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि,
सेव्यमाना सदा भूयात सिद्धिदा सिद्धिदायिनी।
यह मां का प्रचंड रूप है, जिसमे शत्रु विनाश करने की अदम्य ऊर्जा समाहित होती है और इस स्वरूप को तो स्वयं त्रिमूर्ति यानी की ब्रह्मा, विष्णु, महेश भी पूजते हैं। इसका अभिप्राय यह हुआ कि यदि यह माता अपने पात्र से प्रसन्न हो जाती हैं तो शत्रु उनके इर्द-गिर्द नहीं टिकते हैं। साथ ही उसको त्रिमूर्तियों की ऊर्जा भी प्राप्त होती है। जातक की कुंडली का छठा भाव और ग्यारहवां भाव इनकी पूजा से सशक्त होता है। लेकिन साथ-साथ तृतीय भाव में भी जबरदस्त ऊर्जा आती है। शत्रु पक्ष परेशान कर रहें हो, कोर्ट-केस हो तो माता के इस स्वरूप किए पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है।
मां सिद्धिदात्री मां दुर्गा का नौवां स्वरूप है। सिद्धिदात्री का अर्थ है सिद्धि देने वाली मां। मां सिद्धिदात्री की पूजा करने से हमें आठ प्रकार की सिद्धियां प्राप्त होती हैं। भगवान शिव के द्वारा महाशक्ति की पूजा करने पर मां शक्ति ने प्रसन्न होकर उन्हें यह आठों सिद्धियां प्रदान की थी। यह मां दुर्गा का अत्यंत शक्तिशाली स्वरूप है। देवी दुर्गा का यह रूप समस्त देवताओं के तेज से प्रकट हुआ है। असुर महिषासुर के अत्याचार से परेशान होकर सब देवगण भगवान भोलेनाथ एवं विष्णु भगवान के समक्ष सहायता हेतु गए। तब वहां उपस्थित सभी देवगणों से एक-एक तेज उत्पन्न हुआ। उस तेज से एक दिव्य शक्ति का निर्माण हुआ। जिन्हें सिद्धिदात्री के नाम से जाना गया।
अम्बे तू है जगदम्बे काली,
जय दुर्गे खप्पर वाली,
तेर ही गुण गायें भारती,
ओ मैया हम सब उतारे तेरी आरती ।
तेर भक्त जानो पर मैया भीड़ पड़ी है भारी,
दानव दल पर टूट पड़ो माँ कर के सिंह सवारी ।
सो सो सिंघो से है बलशाली,
है दस भुजाओं वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।
माँ बेटे की है इस जग में बड़ा ही निर्मल नाता,
पूत कपूत सुने है पर ना माता सुनी कुमाता ।
सबपे करुना बरसाने वाली,
अमृत बरसाने वाली,
दुखिओं के दुखड़े निवारती ।
नहीं मांगते धन और दौलत ना चांदी ना सोना,
हम तो मांगे माँ तेरे मन में एक छोटा सा कोना ।
सब की बिगड़ी बनाने वाली,
लाज बचाने वाली,
सतिओं के सत को सवारती ।