इस 14 मार्च से चैत्र महीना शुरू हो चुका है और इस महीने और इस दौरान चलने वाले व्रत त्योहारों खास कर चैत्र नवरात्रि को लेकर हिमाचल प्रदेश के लोगों में खासा उत्साह रहता है। अन्य व्रत त्योहारों के अलावा 25 मार्च से शुरू होने वाले नवरात्रि के नौ दिन भी यहां खास आयोजन किए जाते हैं। चैत्र महीने को लेकर देवभूमि हिमाचल में आम धारणा है कि इसका नाम सीधे-सीधे नहीं लिया जाता। परंपरा रही है कि इस महीने का नाम एक विशेष जाति के लोगों के मुंह से ही सबसे पहले सुनना शुभ माना जाता है। यही कारण है कि हिमाचल में यह परंपरा है कि चैत्र महीने में इस जाति के लोग जो अपने को गंधर्व गोत्र व शिव का भक्त मानते हैं और शिव द्वारा दिए आदेश का पालन करते हुए ही इस काम को करते आ रहे हैं।

यूं तो हिमाचल में ऐसे हजारों परिवार हैं मगर अभी लगभग 100 परिवार ही ऐसे हैं जो इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं। चैत्र महीना शुरू होते ही ये लोग बुराह के पेड़ से बनी शहनाई और भेखली के पेड़ से बने ढोल जिस पर मरे हुए जानवर का चमड़ा चढ़ा होता है, के साथ अपने-अपने क्षेत्र में घर-घर गांव-गांव जाकर मंगलोच्चारण करते हैं। ये लोग छींज गीत सुनाते हैं तथा लोग इसके बदले उन्हें वस्त्र, अनाज, धन के साथ साथ उनके माथे पर कुंगू का टीका लगाकर फूलों व धूप से स्वागत करते हैं। मंडी के पुलघराट में इस परंपरा का निर्वहन कर रहे परिवार के 55 वर्षीय सदस्य बीरी सिंह ने बताया कि केवल मंगल कार्य यानी शुभ काम में ही वह शहनाई का वादन करते हुए मंगलगान करते हैं। लोग आज भी इस महीने में उनके मुख से छींज गीत सुन कर अपने को धन्य समझते हैं।

देवभूमि हिमाचल में उत्तरी भारत के प्रसिद्ध देव स्थल बाबा बालक नाथ दियोट सिद्ध जो हमीरपुर जिले में है, में पूरे चैत्र महीने में मेले लगते हैं जिसमें पंजाब के दोआबा व अन्य क्षेत्रों से लाखों लोग दर्शनों को आते हैं। अनूठी श्रद्धा का एक सैलाब उमड़ता है जो देखते ही बनता है। यह स्थान बाबा बालक नाथ का है जो इतिहास के अनुसार बिलासपुर जिले की शाहतलाई में 12 साल तक रह कर फिर वहां से मोर बन कर दियोट सिद्ध की एक गुफा में चले गए थे। लोग यहां अपने साथ बकरे के रूप में मन्नत लेकर आते हैं मगर यहां पर बकरे की बलि नहीं दी जाती बल्कि उसे पानी डालकर बाबा की स्वीकृति लेकर अर्पित कर दिया जाता है। इसी तरह से चैत्र मास में प्रदेश के शक्ति पीठों में भी मेले लगते हैं जो सप्ताह भर चलते हैं। इन नवरात्रों में रामनवमी मनाए जाने की परंपरा नहीं है।

इस बार यह चैत्र नवरात्रि 25 मार्च से शुरू होकर 2 अप्रैल तक हैं। कांगड़ा जिले में महिलाएं इस महीने और नवरात्रों में रली पूजन करती हैं ताकि उनका पति व परिवार सुखी रहे। देवभूमि में इसे नए संवत की शुरुआत के तौर पर मनाया जाता है। यानी चैत्र नवरात्रों से ही हिंदू धर्म का नया वर्ष यानी नया संवत शुरू होगा।