Amarnath Yatra 2020: कोरोना महामारी के चलते इस साल बाबा बर्फानी की यात्रा कई कड़े नियमों के साथ शुरू किये जाने की तैयारी चल रही है। नये नियम के अनुसार हर रोज 500 श्रद्धालु ही बाबा अमरनाथ के दर्शन कर सकेंगे। पहले यह जानकारी सामने आ रही थी कि इस साल अमरनाथ यात्रा स्थगित हो सकती है लेकिन अब सरकार ने इस यात्रा की मंजूरी दे दी है। ये बात भी सामने आ रही है कि यात्रा के लिए जाने वाले यात्रियों का कोरोना टेस्ट भी कराया जा सकता है। अमरनाथ यात्रा 21 जुलाई से शुरू हो सकती है।
अमरनाथ यात्रा का इतिहास: अमरनाथ हिंदुओं का एक प्रमुख तीर्थस्थल है। मान्यताओं अनुसार यहां शिवलिंग प्राकृतिक रूप से बनता है। गुफा में एक एक बूंद पानी नीचे गिरता है और वही धीरे धीरे बर्फ के रूप में बदल जाता है। जो थोड़ा थोड़ा करके 15 दिन तक रोजाना बढ़ता रहता है जिसकी ऊंचाई दो गज से भी अधिक होती है। चंद्रमा के घटने के साथ साथ यह शिवलिंग भी घटना शुरू हो जाता है और चांद के लुप्त होने के साथ शिवलिंग विलुप्त हो जाता है।
आषाढ़ पूर्णिमा से शुरू होकर रक्षाबंधन तक पूरे सावन महीने में पवित्र हिमलिंग के दर्शन के लिए लाखों लोग यहां आते हैं। श्रावण पूर्णिमा के दिन शिवलिंग अपने पूरे आकार में आ जाता है और अमावस्या तक इसका आकार धीरे-धीरे कम होता चला जाता है। आश्चर्य की बात यही है कि यह शिवलिंग ठोस बर्फ का बना होता है, जबकि गुफा में आमतौर पर कच्ची बर्फ ही होती है। मूल अमरनाथ शिवलिंग से कई फुट दूर गणेश, भैरव और पार्वती के हिमखंड भी हैं।
जनश्रुति प्रचलित है कि इसी गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को अमरकथा सुनाई थी, जिसे दो सफेद कबूतरों ने भी सुन लिया था जिस कारण वे अमर हो गए थे। मान्यता है कि गुफा में आज भी श्रद्धालुओं को कबूतरों का एक जोड़ा दिखाई दे जाता है, जिन्हें श्रद्धालु अमर पक्षी बताते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान शिव ने माता पार्वती को इस गुफा में एक ऐसी कथा भी सुनाई थी, जिसमें अमरनाथ की यात्रा और उसके मार्ग में आने वाले अनेक स्थलों का वर्णन था।
मान्यताओं अनुसार भगवान शंकर जब माता पार्वती को अमर कथा सुनाने ले जा रहे थे, तो उन्होंने अपने वाहन नंदी को सबसे पहले छोड़ा, जहां नंदी को छोड़ा था उस स्थान को पहलगाम कहा जाने लगा। अमरनाथ यात्रा यहीं से शुरू होती है। यहीं से थोडा आगे चलने पर शिवजी ने अपने माथे के चंद्रमा को अलग कर दिया, जिस जगह ऐसा किया गया वह स्थान चंदनवाड़ी कहलाया। इसके बाद जटाओं से गंगा जी को पंचतरणी में और कंठाभूषण सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। ऐसा माना जाता है कि अमरनाथ गुफा का सबसे पहले पता सोलहवीं शताब्दी के पूर्वाध में एक मुसलमान गडरिए को चला था।