दक्षिण के केरल के कालड़ी गांव में करीब ढाई हजार वर्ष पहले 788 ईसवी में वैशाख शुक्ल पंचमी को जन्मे आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने भारत को आध्यात्मिक रूप से एक सूत्र में पिरोने का महान कार्य किया। आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में चार मठों की स्थापना की थी। उनमें से उत्तर दिशा में स्थित हिमालय में बदरीनाथ में ज्योतिर्मठ ,दक्षिण दिशा में कर्नाटक में शृंगेरी शारदा मठ, पूरब दिशा में उड़ीसा के पुरी में गोवर्धन मठ तथा पश्चिम दिशा में गुजरात में द्वारका धाम में शारदा मठ की स्थापना की थी

शंकराचार्य को ज्योतिर्मठ बद्रिकाश्रम से खासा लगाव था। उन्होंने हिमालय के केदारनाथ धाम में 820 ईसवी में महासमाधि ले ली थी। उन्होंने पूरे देश का तीन बार पैदल भ्रमण किया और 12 ज्योतिर्लिंगों की स्थापना की और उनमें से एक ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम को उन्होंने महाप्रयाण के लिए चुना क्योंकि वे आदि योगी भगवान शिव के अवतार माने जाते थे इसलिए केदारनाथ धाम में वे आशुतोष भगवान शिव में समाहित हो गए। केदारनाथ धाम में जहां उनकी पावन समाधि है वही बदरीनाथ धाम में ऐतिहासिक ज्योतिर्मठ सदियों से वैदिक शिक्षा तथा ज्ञान का एक ऐसा केंद्र है जिसकी स्थापना 8वीं सदी में उन्होंने की थी।

ज्योतिर्मठ में दीक्षा लेने वाले संन्यासियों के नाम के बाद दशनामी परंपरा के संन्यासी गिरि, पर्वत और सागर नाम का विशेष विशेषण अपने नाम के बाद लगाते हैं। उत्तराखंड के चारों धाम गंगोत्री यमुनोत्री केदारनाथ बदरीनाथ के कपाट वैशाख शुक्ल पक्ष तीन अक्षय तृतीया से खोले जाते हैं। सबसे पहले अक्षय तृतीया को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट वैदिक विधान के साथ खोले जाते हैं और उसके बाद केदारनाथ और बदरीनाथ के कपाट खोले जाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है धाम में मुख्य पुजारी केरल के नंबूदरीपाद ब्राह्मण होते हैं जिन्हें रावल कहा जाता हैं और जो आदि शंकराचार्य के वंशज माने जाते हैं।

रावल की शैक्षिक योग्यता वेद-वेदांग विद्यालय का स्नातक और कम से कम शास्त्री की उपाधि होने के साथ ब्रह्मचारी भी होना चाहिए। बदरीनाथ धाम में भगवान बदरीश के विग्रह की पूजा का अधिकार केवल रावल को है वहीं इनकी पूजा अर्चना में गढ़वाल के स्थानीय डिमरी समुदाय के ब्राह्मण सहायक के तौर पर सहयोग करते हैं।

ज्योतिर्मठ के बद्रिकाश्रम के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना है कि भारत को सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से एकता के सूत्र में पिरोने की आदि शंकराचार्य ने व्यवस्था की थी कि उत्तर भारत के हिमालय में स्थित बदरीनाथ धाम में दक्षिण का पुजारी और दक्षिण भारत के मंदिर में उत्तर, पूर्वी भारत के मंदिर में पश्चिम का तथा पश्चिम भारत के मंदिर में पूर्वी भारत का ब्राह्मण पुजारी हो जिससे भारत चारों दिशाओं में आध्यात्मिक और सांस्कृतिक रूप से सुदृढ़ रूप से एकता के सूत्र में बंध सके।

श्री निरंजनी पंचायती दशनामी नगा संन्यासी अखाड़ा के सचिव महंत रवींद्र पुरी महाराज बताते हैं कि बदरीनाथ धाम भगवान विष्णु का पवित्र धाम है। यहां उनकी 1 मीटर ऊंची प्रतिमा शालिग्राम है। इसे आदि शंकराचार्य ने 8वीं शताब्दी में गंगा की सहायक नदी अलकनंदा नदी में स्थित नारद कुण्ड से निकालकर स्थापित किया था।