शरीर का कोई अंग कट जाता है या उसे काट कर अलग करना पड़ता है तो भी अलग किए जा चुके अंग में दर्द, खुजली या सुन्न हो जाने का एहसास लंबे समय तक घायल व्यक्ति के दिमाग में बना रहता है। कहने को यह भुतहा ख्याल लग सकता है कि जो अंग रहा ही नहीं उसमें दर्द हो रहा है। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो मरीज को गंवा चुके अंगों के छद्म दर्द का एहसास काफी दिनों तक बना रहता है। इसे ‘फैंटम पेन’ कहा जाता है। एम्स के ट्रामा सेंटर का दावा है कि ऐसे दर्द के इलाज में योग मददगार हो सकता है। ट्रामा सर्जन डॉक्टर सुषमा सागर ने कहा कि योग का शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य से गहरा संबंध है। योग व सेहत से जुड़े कुछ अध्ययनों में यह साबित भी हुआ है। उन्होंने कहा कि दुर्घटना या बीमारी से जुड़ा जो सदमा सामान्य व्यक्ति बर्दाश्त नहीं कर पाता या जीवन से जुड़े कड़वे अनुभव को स्वीकार नहीं कर पाता उससे वह शारीरिक व मानसिक स्तर पर लंबे समय तक जूझता रहता है। उसे नियमित योगाभ्यास करने वाले अपेक्षाकृत आसानी से बर्दाश्त कर पाते हैं।

ट्रामा सेंटर के मनोविज्ञानी डॉक्टर मसूद मकबूल ने कहा कि घायलों के अंग चले जाने के बावजूह उन्हें उस अंग में दर्द का एहसास इसलिए होता है कि व्यक्ति का दिमाग इस सदमे भरे तथ्य को आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता कि उसका जन्मजात अंग अब उसके शरीर का हिस्सा नहीं रहा। जब दिमाग यह स्वीकार नहीं कर पाता तो वह उस अंग में संवेदना के हर अहसास को महसूस करता है फि रवह चाहे खुजली होने, चुनचुनाहट होने या असहनीय दर्द होने का अहसास हो। सभी कुछ सचमुच जैसा उसके दिमाग में एहसास के स्तर पर आता है। ऐसे में मरीज पैर की उंगली में सुन्नपन या दर्द की शिकायत करता है जबकि उसका घुटने के नीचे का पैर कट चुका होता है।

डॉक्टर मकबूल ने कहा कि यह एहसास दुर्घटना के दिन से लेकर हफ्ते भर या महीनों भी बना रहता है। दिमाग मांसपोशियों को कट चुके पैर या हाथ को फैलाने, मोड़ने या उठाने का आदेश भी देता है। जबकि वह अंग शरीर में रहा ही नहीं। यह सब तब तक चलता है जब तक कि घायल का दिमाग इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर ले। मनोविज्ञानी मरीजों की इसी में मदद करते हैं। इस झटका देने वाले तथ्य को मजबूत मन व दिमाग ही स्वीकार कर पाता है। कुछ अंतरराष्ट्रीय शोध में देखा गया है कि योग मन व शरीर को वह मजबूती देता है। ट्रामा सेंटर की योग प्रशिक्षक उज्ज्वला शर्मा ने बताया कि बिस्तर पर पड़े मरीजों के शरीर की मांसपेशियां धीरे-धीरे शिथिल व कमजोर पड़ने लगती हैं। ऐसे में योग का बिस्तर पर पड़े मरीजों के मासपेशियों को मजबूती देने व उनमें रक्त संचार को बढ़ाने में मददगार होता है।