बरसों के संघर्ष के बाद हालात बदल रहे हैं। मगर आधी दुनिया के सामने संघर्ष अभी बाकी है। महिलाओं को बराबरी का हक देने की कोशिश हो रही है। बावजूद इसके चुनौतियां दूर नहीं हुई हैं। गृहणियों से लेकर कामकाजी महिलाओं के काम को आज भी कम कर के आंका जाता है। दूसरी ओर देश की उद्यमी महिलाओं ने हार नहीं मानी है और तमाम रुढ़ियों और असमानता से मुकाबकला करते हुए अपनी पहचान बना रही हैं।

उनका कहना है कि देश में मौजूदा स्टार्ट-अप अनुकूल माहौल से स्त्री-पुरुष असमानता की रुढ़ियों से निपटने और जोखिम लेने में मदद मिलेगी और उन्हें सशक्त बनाएगा।

महिलाओं को नौकरी से जुड़ी सूचनाएं मुहैया कराने वाले पोर्टल, शीरोज की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी साइरी चहल ने अपने शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा कि उन्हें कारोबार खड़ा करने में स्त्री-पुरुष असमानता से जुड़ी बहुत सी रुढ़ियों का मुकाबला करना पड़ा। साइरी ने कहा, ‘मुझे ऐसे सवालों से जूझना पड़ा कि क्या तुम ये सब कर सकोगी। खुशी है कि हालात बदल रहे हैं और वे अब मुझे अपना काम करते देख सकते हैं।’ टेÑड वक्ता साइरी ने 2012 में महिलाओं को रोजगार देने के लिए शीरोज की सह-स्थापना की थी।
उन्होंने कहा, ‘जब मैंने शुरू किया तो लोग सोचते थे कि यह गैर-सरकारी संगठन है। शायद इसलिए कि कारोबार का स्वरूप ऐसा खड़ा करना चाहते थे या फिर शायद इसलिए कि एक महिला इसका नेतृत्व कर रही थी।’ चालीस साल की साइरी के मुताबिक ऐसी नीतियों पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है जो विशेष तौर पर महिला उद्यमियों के लिए हों। उन्होंने कहा, ‘महिलाओं उद्यमियों को विशेष तौर पर मदद करने से और महिलाओं का अपना कारोबार खड़ा करने, और अधिक रोजगार सृजन और कुल वृद्धि में योगदान करने में मदद मिलेगी।’
नासकॉम के मुताबिक पिछले साल स्टार्टअप की दुनिया से जुड़ने वाली महिलाओं की तादाद 50 प्रतिशत बढ़ी है। घरेलू मरम्मत सेवा कारोबार के एक आनलाईन पोर्टल से जुड़ीं शेफाली अग्रवाल होलानी ने अपने अनुभव के आधार पर कहा कि महिलाओं की अग्रणी भूमिका का स्वीकार करने में लोगों को तकलीफ होती है।
भारत की पहली कार साझा करने वाली और खुद चलाने के लिए कार मुहैया करने वाली कंपनी, माइल्स की संस्थापक और मुख्य कार्यकारी साक्षी विज का लक्ष्य है शहरों में भीड़भाड़ कम करने में मदद करना हालांकि उनका महिलाओं द्वारा चलाए जाने वाले स्टार्टअप की चुनौतियों के बारे में अलग राय है। साक्षी ने 2013 में अपना कारोबार 14 कार से शुरू किया था और अब पूरे देश में उनके पास करीब 1000 कारें हैं।

उन्होंने कहा, ‘स्टार्ट-अप का मौजूदा माहौल सभी उद्यमियों को का समान मौके प्रदान करता है।’ विज (32) का मानना है कि सरकार की स्टार्ट-अप नीतियों से महिलाओं को सशक्त बनाने में मदद मिलेगी।
एक अन्य उद्यमी देवदत्ता उपाध्याय का मानना है कि जहां तक स्टार्टअप का सवाल है चुनौतियां महिला-पुरुष सभी के सामने हैं। उपाध्याय ने कहा, ‘कोई विशेष चुनौती नहीं है, सिर्फ इसे छोड़ कर कि महिलाओंं को हर चीज से ज्यादा परिवार की मदद की जरूरत होती है। इसके अलावा स्टार्ट-अप का माहौल विचार, कार्यान्वयन और वृद्धि से जुड़ा है।’
महिलाओं द्वारा अपना स्टार्टअप शुरू करने की संभावना के बारे में साइरी ने कहा कि महिलाएं स्टार्टअप कारोबारी माहौल के लिए बिल्कुल सही हैं।

उन्होंने कहा ‘पुरुष तीन चीजों के लिए काम करते हैं, मसलन धन, नाम और काम के संतोष के लिए। इधर महिलाएं भी इन्हीं तीन चीजों के लिए काम करती हैं लेकिन इनका क्रम उलटा होता है यानी पहले काम से जुड़ा संतोष फिर नाम और आखिर में धन। इसी वजह स्टार्टअप का माहौल महिलाओं के लिए सबसे अच्छा है।’

शेफाली ने हालांकि कहा कि महिलाएं काम से जुड़े संतोष के लिए तो काम करती हैं लेकिन हर उद्यमी का लक्ष्य होता धन अर्जित करना और महिलाओं वित्तीय स्थिति पर नियंत्रण और जोखिम लेने के मामले में उतनी ही सशक्त होती हैं।