जोमैटो ने कुछ ही दिनों पहले अपने यहां काम करने वाली महिला कर्मचारियों के लिए मेन्स्रुएशन लीव की मंजूरी दी है। इससे कई संस्थानों में महिलाओं के लिए इस तरह छुट्टी की मांगें उठना शुरू हुई हैं। प्राइवेट कंपनियों के लिए महिलाओं को दर्द के समय छुट्टी देने की संकल्पना काफी नई हो सकती है, लेकिन आज से 30 साल पहले एक राज्य में जब इस मुद्दे पर बहस शुरू हुई तो मुख्यमंत्री ने छह घंटे तक हड़ताली महिलाओं के साथ बैठक के बाद मेन्स्रुअल लीव की मंजूरी दे दी थी।
क्या था मामला?
बिहार के नॉन गज्टेड कर्मचारी संघ के महासचिव रामबाली प्रसाद के मुताबिक, 1990 में लालू प्रसाद यादव बिहार के मुख्यमंत्री बने थे। उनके सीएम बनने से बिहार की राजनीति में बड़ा बदलाव आया और ताकत का संतुलन पिछड़ी जातियों के साथ था। प्रसाद के मुताबिक, यह हड़ताल का समय था। राज्य में करीब 6 लाख कर्मचारी अच्छी तनख्वाह और प्रमोशन को लेकर हड़ताल पर थे। इनमें करीब 10 फीसदी महिलाएं थीं।
प्रसाद के मुताबिक, हड़ताल में जो महिलाएं शामिल थीं, उनमें कुछ टीचर, नर्सें, क्लर्क और टाइपिस्ट शामिल थीं। 1991 के अंत में जब हमने 32 दिन की हड़ताल का ऐलान किया तो कुछ महिलाओं ने मेन्स्रुअल लीव की मांग रख दी। इसके बाद महिलाओं की मांग बढ़ती गईं और इसमें महिलाओं के टॉयलेट, क्रेच और होस्टल की मांग भी जुड़ गई।
रात में 1-1 बजे तक हुईं सीएम के साथ बैठकें?: प्रसाद के मुताबिक, लालू प्रसाद यादव के साथ मांगों को लेकर करीब 4 दिन तक बैठक चलीं। कई बार यह बैठकें शाम 7 बजे से शुरू होकर रात 1 बजे तक चलती थीं। सीएम कई मांगों को लेकर सहमत नहीं थे। पर इसी बीच जब महिलाओं के लिए मेन्स्रुअल लीव की मांग सामने आई, तो लालू प्रसाद यादव ने पूरी मांगों को धैर्य से सुना और मेन्स्रुअल लीव की मांग मान ली।
1992 में ही मिल गई महिलाओं को मेन्स्रुअल लीव की मंजूरी: 1991 बातचीत खत्म होने के बाद सभी मांगें तो नहीं मानी गईं, पर 2 जनवरी 1992 को राज्य सरकार ने आदेश जारी कर कहा कि सभी महिला कर्मचारियों को महीने में लगातार दो दिन की मेन्स्रुअल लीव मिलेंगी। यह छुट्टियां उनकी हफ्ते की छुट्टी से अलग होंगी। बिहार सामाजिक निर्माण विभाग के निदेशकर राजकुमार के मुताबिक, बिहार पहला ऐसा राज्य था, जहां यह प्रगतिशील बदलाव लागू हुआ था। अब महिलाएं यह फैसला कर सकती हैं कि उन्हें किन दिनों में मेन्स्रुअल लीव चाहिए, वह भी सिर्फ एक ईमेल के जरिए। इसके अलावा वे यह भी फैसला कर सकती हैं कि उन्हें कब छुट्टी नहीं चाहिए, क्योंकि अलग-अलग महिलाओं में मेनोपॉज का समय अलग होता है।

