पश्चिम बंगाल में बेहतर शैक्षणिक माहौल और छात्रों के उच्च-शिक्षा के लिए दूसरे राज्यों में पलायन पर रोक लगाने के सरकारी दावे खोखले साबित हो रहे हैं। यहां नए सत्र में संयुक्त प्रवेश परीक्षा बोर्ड की काउंसलिंग के बाद भी राज्य में इंजीनियरिंग कॉलेजों की दो-तिहाई सीटें खाली रह गई हैं। हालत यह है कि जादवपुर जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भी दो सौ सीटें खाली हैं। इनको भरने के लिए विश्वविद्यालय प्रबंधन ने 12 एवं 14 अगस्त को नए सिरे से काउंसलिंग का फैसला किया है।
बंगाल में सरकारी और गैर-सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेजों में कुल 32 हजार 700 सीटें हैं। बीते साल इनमें से 16 हजार यानी लगभग आधी सीटें खाली रही थीं। वहीं इस बार खाली सीटों की संख्या 22 हजार 700 पहुंच गई है। राज्य के तमाम निजी इंजीनियरिंग कॉलेज मौलाना अब्दुल कलाम आजाद तकनीकी विश्वविद्यालय से संबद्ध है। विश्वविद्यालय के एक अधिकारी के मुताबिक ज्यादातर खाली सीटें सिविल, मेकेनिकल और आॅटोमोबाइल इंजीनियरिंग विभाग में हैं।
अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआइसीटीइ) की कंप्यूटर साइंस पाठ्यक्रम संशोधन समिति के अध्यक्ष रहे अनुपम बसु कहते हैं कि मध्यम-स्तर के कॉलेजों में संकट ज्यादा है। अच्छे शिक्षकों की कमी, आधारभूत ढांचे का अभाव और कई कॉलेजों में बेहतर प्लेसमेंट नहीं होने से छात्र दूसरे राज्यों का रुख कर रहे हैं। अब दाखिला लेने से पहले छात्र कॉलेज, उसकी फैकल्टी, आधारभूत सुविधाओं और प्लेसमेंट आदि के बारे में पूरी छानबीन के बाद ही फैसला लेते हैं।
बसु कहते हैं कि देश में इंजीनियरिंग की डिग्री के प्रति छात्रों का आकर्षण कम हो रहा है।
एआइसीटीइ की ओर से पिछले साल गठित एक समिति ने अपने एक रिपोर्ट में कहा था कि देश में इंजीनियरिंग की 14 लाख सीटें हैं। लेकिन हर साल इनमें महज दस लाख छात्र ही दाखिला ले रहे हैं। बसु कहते हैं कि पाठ्यक्रमों में सुधार समय की मांग है। अब इन पाठ्यक्रमों में आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस, मशीन लर्निंग और डाटा साइंस से संबंधित अध्यायों को शामिल किया जाना चाहिए।
कलकत्ता विश्वविद्यालय में भी इंजीनियरिंग की खाली सीटों को भरने के लिए अलग से काउसलिंग आयोजित करने का फैसला किया गया है। एक अधिकारी की मानें तो कई छात्र शुरुआती फीस जमा करने के बावजूद भी दूसरे राज्यों में पढ़ाई को तरजीह दे रहे हैं। बंगाल के हजारों छात्रों के दूसरे राज्यों की इंजीनियरिंग कॉलेजों में दाखिले के सवाल पर कहते है कि दरअसल बंगाल की संयुक्त प्रवेश परीक्षा का आयोजन काफी देरी से हुआ वहीं दूसरे राज्यों में न सिर्फ परीक्षा पहले हो गई बल्कि उनके नतीजे भी निकल गए थे।
वजह चाहे जो भी हो, साल दर साल घटते छात्रों की तादाद ने बंगाल के इंजीनियरिंग कॉलेजों के भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है। सीटें खाली रहने की कई वजहें हो सकती हैं। कई छात्र कॉलेज को तरजीह देते हैं तो कई अपने पसंदीदा पाठ्यक्रम को। ऐसी स्थिति में पसंदीदा कॉलेज या पाठ्यक्रम नहीं मिलने की स्थिति में छात्र दूसरे कॉलेज या बाहर का रुख करते हैं।